न जाने क्यों, सत्ता की कमान किसी के हाथों में रहे, लेकिन देश का एक बड़ा वर्ग कांग्रेस की गतिविधियों पर ही नजर टिकाए रहता है। वह नजरें उम्मीद की होती हैं। लोगों को लगता है कि यदि कांग्रेस सक्रिय हो गई अथवा उसकी हाथों में सत्ता की कमान आ गई तो कुछ भला हो सकता है। इसके पीछे एक बड़ी वजह यह है कि कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी है और उसने देश के निर्माण में बड़ा योगदान दिया है। कांग्रेस के प्रति लोगों में मन में मोह भी है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस ने केन्द्र सरकार की कथित जनविरोधी नीतियों के खिलाफ अभियान छेड़ दिया है। ऐसे में सवाल यह है कि कांग्रेस का यह अभियान मौजूदा हालात में कितना कारगर होगा? दरअसल, कांग्रेस को किसी भी अभियान की शुरूआत करने से पहले अपनी सांगठनिक सुदृढ़ता पर ध्यान देना चाहिए। वैसे कांग्रेस के रणनीतिकारों को यह बात समझ में आ गई है कि यदि केन्द्र सरकार की विफल आर्थिक नीतियों पर उसका अक्रामक विरोध किया जाए तो वह आगामी चुनावों में बेहतर परिणाम दे सकती है।
राजनीति के जानकारों का एक सवाल यह भी है कि देश की अर्थव्यवस्था की हालत तो लंबे समय से खराब होती जा रही है, लेकिन सुस्त पड़ी कांग्रेस अब इस मुद्दे पर अचानक से तेज क्यों दिखने लगी है? कांग्रेस ने आर्थिक मंदी पर 1 से 8 नवंबर तक 35 प्रेस कॉन्फ्रÞेंस करने का फैसला लिया है। इसी मुद्दे पर ही 5 से 15 नवंबर तक वह देश भर में प्रदर्शन भी करेगी। यह वही कांग्रेस है जो लोकसभा चुनाव में जबर्दस्त हार के बाद मानो कोमा में चली गई थी। राहुल गांधी भी राजनीतिक रूप से निष्क्रिय जैसे हो गए थे। इतना तक कि उन्होंने अध्यक्ष पद भी छोड़ दिया था। पार्टी कार्यकतार्ओं में सन्नाटा पसरा था। पहले से ही पार्टी छोड़कर जा रहे नेताओं में भगदड़-सी मच गई थी। लेकिन अब महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव नतीजे आने के बाद कांग्रेस अचानक ऊजार्वान दिखने लगी है। इन चुनावों में कांग्रेस का अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन रहा है। वह भी तब जब दोनों राज्यों में पार्टी आखिरी क्षण तक अंदरूनी कलह से जूझ रही थी और चुनाव-प्रचार भी उस तरह से नहीं कर पाई थी। फिर परिणाम संतोषजनक रहे।
क्या ऐसी तेजी आने की कोई और वजह है? क्या कांग्रेस दोनों राज्यों में चुनाव और कई राज्यों में उप चुनाव के खत्म होने का इंतजार कर रही थी या संसद के शीतकालीन सत्र के शुरू होने के इंतजार में थी? संसद का शीतकालीन सत्र 18 नवंबर से शुरू होने वाला है और यह 13 दिसंबर तक चलेगा। माना जा रहा है कि कांग्रेस संसद के भीतर इस मुद्दे को जबरदस्त तरीके से उठाएगी और इसीलिए संसद सत्र के शुरू होने से पहले संसद के बाहर इस मुद्दे को जम कर उठाएगी। देश के भीतर कई ऐसे मुद्दे हैं जिसे कांग्रेस सड़क से लेकर सदन तक उठाना चाहती है। ये ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर केन्द्र सरकार की उदासीनता दिख रही है, ऐसा विपक्ष का आरोप है। सवाल यह है कि कांग्रेस इन मुद्दों को कितना प्रभावी ढंग से उठा पाएगी।
जानकार बताते हैं कि फिलहाल विरोध-प्रदर्शन आर्थिक मंदी को लेकर है। इसी मुद्दे पर केंद्र की मोदी सरकार को घेरने के लिए कांग्रेस जुटी हुई है। इसको लेकर कांग्रेस विपक्षी दलों को भी साथ लेने की कोशिश में है। आपको बता दें कि कांग्रेस ने प्रदर्शन की घोषणा तो पहले ही यानी 12 सितंबर को कर दी थी कि आर्थिक मंदी के मुद्दे पर पार्टी 15 से 25 अक्टूबर तक देशव्यापी प्रदर्शन करेगी, लेकिन बाद में इसे टाल दिया गया था। पार्टी ने इसे टालने का कारण त्योहार और दो राज्यों में चुनाव को बताया था। कांग्रेस आर्थिक मंदी पर इसलिए प्रदर्शन कर रही है क्योंकि उसे लगता है कि यह हर देशवासी को बहुत जबरदस्त तरीके से प्रभावित कर रही है। धीमी रफ्तार और तेजी से सिकुड़ती भारतीय अर्थव्यवस्था पर चौतरफा संकट मंडरा रहा है। हर क्षेत्र में मांग और खपत कम होती जा रही है, उत्पादन गिरता जा रहा है। वाणिज्यिक कामकाज लगभग हर क्षेत्र में धीमी गति से चल रहा है। देश के 22 में से 15 सेक्टर मंदी की चपेट में हैं। आठ कोर सेक्टर में से 5 में नकारात्मक यानी शून्य से कम वृद्धि है। देश का औद्योगिक उत्पादन सूचकांक साढ़े छह साल में सबसे कम है। जुलाई के मुकाबले अगस्त में औद्योगिक विकास 4.3 प्रतिशत से घटकर -1.10 प्रतिशत पर आ गया है।
ये आंकड़े फरवरी 2013 के बाद सबसे कमजोर हैं। देश के 23 औद्योगिक समूहों में से 15 में निर्माण वृद्धि घटती हुई नकारात्मक हो गई है। भारत की जीडीपी पांच फीसदी पर पहुंच गई है। विश्व बैंक ने भारत की अनुमानित वृद्धि दर 6.9 फीसदी से घटाकर 6 फीसदी कर दी है। अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेन्सी मूडीज ने 2019-2020 के लिए भारत के जीडीपी की अनुमानित वृद्धि दर घटाकर 5.8 फीसदी कर दी थी। मूडीज ने वृद्धि दर कम रहने के पीछे निवेश और मांग में कमी, ग्रामीण इलाकों में मंदी और रोजगार के मौके बनाने में नाकामी को कारण बताया था। मूडीज ने कहा था कि ये कारण लंबे समय तक बने रहेंगे। हाल के दिनों में आॅटो सेक्टर की हालत खराब है ही। बेरोजगारी भी रिकॉर्ड स्तर पर है। हर अंतरराष्ट्रीय संस्था की रिपोर्ट भारत की खराब आर्थिक हालत की ओर इशारा कर रही हैं। सबसे बड़ी समस्या तो बेरोजगारी की है। देशभर में पढ़े-लिखे बेरोजगारों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। शिक्षित युवा रोजगार के लिए यत्र-तत्र भटक रहे हैं, लेकिन उन्हें कहीं से कोई रास्ता नहीं दिख रहा है। शायद यही वजह है कि देश के बेरोजगारों की एक बड़ी संख्या केन्द्र सरकार खिलाफ अपनी नजरें टेढ़ी किए हुए हैं। यह कहते हुए सरकार पर साफ-साफ आरोप लगाया जा रहा है कि मोदी सरकार ने हर वर्ष दो करोड़ युवाओं को रोजगार देने की बात कही थी। जबकि बेरोजगारी लगातार बढ़ती गई। यानी यहां ठीक इसके उलटा हो रहा है। लगातार रोजगार घट रहे हैं।
राजनीति के जानकारों का मानना है कि कांग्रेस को यह बात समझ में आ गई है कि यदि देश के बेरोजगारों की एक बड़ी भीड़ कांग्रेस के साथ खड़ा हो जाए तो उसका बेड़ा पार हो सकता है। शायद यही वजह है कि पार्टी ने देश की बिगड़ती अर्थव्यवस्था और बेरोजगारों पर फोकस करने का निर्णय लिया है। सबके बावजूद फिर वही सवाल मुंह बाए खड़ा है कि क्या लचर सांगठनिक तंत्र के सहारे कांग्रेस का केन्द्र सरकार विरोधी अभियान कारगर हो पाएगा? हालांकि पार्टी की सांगठनिक सुदृढ़ता के लिए महासचिव प्रियंका गांधी द्वारा लगातार कोशिशें की जा रही हैं। समझा जा रहा है कि प्रियंका की सक्रियता से कांग्रेसजनों के उत्साह में वृद्धि हुई है। इसका असर महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनावों में भी दिखा है। इन राज्यों के चुनाव परिणाम के संदेश से भी देश के अन्य राज्यों के कांग्रेसजन उत्साहित हैं। अब देखना यह है कि कांग्रेसजनों का यह उत्साह कितना और कबतक कायम रह पाता है?
Home संपादकीय How effective Congress’s anti-government campaign is: कांग्रेस का सरकार विरोधी अभियान कितना कारगर
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