Editorial Aaj Samaaj | राकेश सिंह | अफगानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी का भारत दौरा इन दिनों खूब चर्चा में है। नौ अक्टूबर को वे दिल्ली पहुंचे। उनकी यह यात्रा यहां 16 अक्टूबर तक चलेगी। तालिबान की सरकार बनने के बाद ये किसी सीनियर अफगानिस्तानी नेता का भारत का पहला दौरा है। पहले यह संयुक्त राष्ट्र के ट्रैवल बैन की वजह से मुमकिन नहीं था, लेकिन अब संयुक्त राष्ट्र कमेटी ने अस्थायी तौर पर प्रतिबंध हटा दिया है। मुत्तकी रूस से होते हुए दिल्ली आए हैं। यहां उनका स्वागत भी काफी गर्मजोशी से हुआ। रणनीतिकार भारत-अफगानिस्तान की इस यारी को एक कूटनीतिक साझेदारी के रूप में आंक रहे हैं। अब सवाल ये है कि इस दौरे के क्या मायने हैं? क्या भारत और अफगानिस्तान अब करीब आ रहे हैं? चीन और पाकिस्तान इससे परेशान क्यों हैं? इससे भारत को क्या फायदा होगा?
आइए, पहले थोड़ी पृष्ठभूमि को समझते हैं। वर्ष 2021 में तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था। उसके बाद से भारत का अफगानिस्तान से रिश्ता थोड़ा ठंडा पड़ गया था। पहले अशरफ गनी की सरकार के साथ भारत के अच्छे ताल्लुकात थे। तब भारत ने वहां स्कूल, अस्पताल, सड़कें और यहां तक की पार्लियामेंट बिल्डिंग भी बनवाई थी। करीब चार बिलियन डॉलर का निवेश किया था। लेकिन अफगानिस्तान में तालिबानी हुकूमत आने के बाद भारत ने अपनी एम्बेसी बंद कर दी। फलस्वरूप कूटनीतिक रिश्ते ठंडे बस्ते में चले गए। बावजूद इसके मानवीय मदद जारी रहा। जैसे हाल ही में भूकंप आया तो भारत ने तुरंत टेंट्स, फूड और मेडिसिन भेज दी। अब मुत्तकी का दौरा एक तरह से रिश्तों में जमी बर्फ को पिघलाने का काम कर रहा है। ये दौरा सिर्फ बैठकों के लिए नहीं है, बल्कि दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों को मजबूत करने का मौका भी है। अफगानिस्तान को ट्रेड, इन्वेस्टमेंट और डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स में भारत से मदद चाहिए। भारत चाबहार पोर्ट के जरिए अफगानिस्तान को ट्रेड रूट दे सकता है, जो पाकिस्तान को बायपास करता है।
अब सवाल है कि क्या भारत और अफगानिस्तान करीब आ रहे हैं? क्या मुत्तकी का ये दौरा भारत की स्ट्रैटेजिक मूव है। भारत हमेशा से अफगानिस्तान में स्थायित्व देखना चाहता है। क्योंकि अगर वहां अराजकता फैली तो आतंकी संगठन जैसे टीटीपी या आईएसआईएस-के मजबूत हो जाएंगे। उनका असर पाकिस्तान के रास्ते भारत तक दिखने लगता है। मुत्तकी के आने से भारत को अफगानिस्तान में अपनी पुरानी परियोजनाओं को फिर से शुरू करने का मौका मिल सकता है। जैसे शहतूत डैम, जो पानी की समस्या का निदान कर सकता है लेकिन पाकिस्तान को पसंद नहीं क्योंकि वह अमू दरिया नदी पर है। इसके अलावा, भारत-अफगान दूतावास में तालिबान के ऑफिशियल एनवॉय को पोस्ट करने की परमिशन दे सकता है, जो तालिबान की इंटरनेशनल पहचान की कोशिशों को बूस्ट देगा। भारत की पॉलिसी हमेशा से इंक्लूसिव रही है, हम तालिबान से बात कर रहे हैं, लेकिन महिलाओं के अधिकार और माइनॉरिटी प्रोटेक्शन पर भी जोर दे रहे हैं। मुत्तकी का यह दौरा दिखाता है कि भारत क्षेत्रीय शक्ति के तौर पर अफगानिस्तान को नजरअंदाज नहीं कर सकता। रूस, चीन और ईरान पहले से तालिबान से डील कर रहे हैं, तो भारत क्यों पीछे रहे? ये एक तरह की संतुलन बनाने की सकारात्मक नीति है।
कौतूहल इस बात की है कि मुत्तकी के इस दौरे से चीन और पाकिस्तान परेशान क्यों हैं? पाकिस्तान हमेशा से अफगानिस्तान को अपना बैकयार्ड मानता रहा है। तालिबान को पाकिस्तान ने ही नर्चर किया था, लेकिन अब तालिबान पाकिस्तान की नहीं सुन रहा। टीटीपी जैसे ग्रुप अफगानिस्तान से पाकिस्तान पर हमला कर रहे हैं और पाकिस्तान का आरोप है कि तालिबान उन्हें संरक्षण दे रहा है। मुत्तकी का भारत दौरा पाकिस्तान के लिए डबल झटका है। एक तो तालिबान भारत की तरफ झुक रहा है, जो पाकिस्तान की स्ट्रैटेजिक डेप्थ थ्योरी को चुनौती देता है। दूसरा, ठीक उसी दिन जब मुत्तकी दिल्ली में थे, पाकिस्तान ने काबुल पर एयर स्ट्राइक कीं। वह भी टीटीपी नेताओं को लक्षित करते हुए। ये कोई को-इंसिडेंस नहीं लगता। पाकिस्तान शायद सिग्नल दे रहा है कि अगर तालिबान भारत से करीब जाएगा तो अंजाम भुगतेगा। पाकिस्तानी मीडिया और एक्सपर्ट्स कह रहे हैं कि मुत्तकी का यह दौरा पाकिस्तान के खिलाफ साजिश है, और भारत टीटीपी को आर्थिक मदद दे रहा है। पाकिस्तान को डर है कि भारत-अफगानिस्तान संबंध से सीमा पर तनाव बढ़ेगा। कारोबार के रास्ते बंद होंगे और विस्थापितों के मामले पहले अधिक बिगड़ेंगे।
अब इस मुद्दे पर चीन की चालाकी पर नजर दौड़ाते हैं। चीन अफगानिस्तान में अपने निजी हितों की रक्षा करना चाहता है। जैसे सीपीईसी का विस्तार, माइनिंग प्रोजेक्ट्स और बीआरआई। लेकिन भारत का अफगानिस्तान के करीब आना चीन की रीजनल डोमिनेंस को चुनौती देता है। चीन को डर है कि भारत अफगानिस्तान को इस्तेमाल करके पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाएगा जो चीन का करीबी साझेदार है। इसके अलावा, अगर अफगानिस्तान भारत की तरफ झुकता है तो चीन के निवेश पर रिस्क बढ़ेगा, क्योंकि तालिबान को इंटरनेशनल पहचान की जरूरत है और भारत उसमें उसकी मदद कर सकता है। कुछ रिपोर्ट्स कहती हैं कि मुत्तकी के दौरे से चीन और पाकिस्तान दोनों मिलकर कूटनीतिक दबाव बनाने की कोशिश कर सकते हैं। जैसे बॉर्डर्स टाइट करना या ट्रेड रोकना। कुल मिलाकर, मुत्तकी का ये दौरा साउथ एशिया की जियोपॉलिटिक्स को शिफ्ट कर रहा है। पाकिस्तान और चीन को लगता है कि भारत अफगानिस्तान को अपने कैंप में खींच रहा है, जो उनके स्ट्रैटेजिक योजना को बिगाड़ सकता है।
अब सबसे जरूरी सवाल कि क्या इससे भारत को फायदा होगा? जी हां। सबसे बड़ा फायदा तो सिक्योरिटी का है। अफगानिस्तान से अगर टेरर थ्रेट्स कम होंगे तो भारत की वेस्टर्न बॉर्डर सेफ रहेगी। भारत टीटीपी और आईएसआईएस-के जैसे ग्रुप्स पर इंटेलिजेंस शेयरिंग कर सकता है, जो पाकिस्तान को काउंटर करेगा। आर्थिक तौर पर भारत अफगानिस्तान को चाबहार पोर्ट के जरिए सेंट्रल एशिया से कनेक्ट कर सकता है, जो ट्रेड बूस्ट करेगा। अफगानिस्तान के मिनरल रिसोर्सेज, जैसे लिथियम, कॉपर में भारत निवेश कर सकता है, जो ईवी और टेक इंडस्ट्री के लिए जरूरी हैं। मानवीय दृष्टिकोण से भारत की छवि भी अच्छी बनेगी और अफगानी लोगों के साथ रिश्ते प्रगाढ़ होंगे। कूटनीतिक तौर पर मुत्तकी का ये दौरा भारत को रीजनल लीडर के तौर पर पोजिशन करता है। अमेरिका, रूस, चीन सब अफगानिस्तान में इंटरेस्टेड हैं, लेकिन भारत की पॉलिसी बैलेंस्ड है। अगर तालिबान भारत से करीब आएगा तो पाकिस्तान पर दबाव बढ़ेगा, जो एलओसी पर तनाव कम कर सकता है। यदि भविष्य की बात करें तो यह भारत की पड़ोसी फर्स्ट नीति को मजबूती देगा और दक्षिण एशिया में स्थायित्व आएगा। (लेखक आईटीवी नेटवर्क के प्रबंध संपादक हैं।)
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