आज है गुरुओं की पूजा का दिन गुरु पूर्णिमा

0
1116
guru purnima
guru purnima

गुरु पूर्णिमा को वेद्यास पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है जिसे वेदव्यास के जन्मदिन पर मनाया जाता है। जैसे नाम से स्पष्ट होता है ,ये गुरु पूर्णिमा पर्व गुरु के लिए समर्पित है। गुरु पूर्णिमा शब्द किसी भी कार्य की या भाव कि पूर्णता को प्रदर्शित करता है। जिस में कुछ भी अधूरा ना रहे, पूरी गुणों के और भावों के ज्ञान का समावेश हो। गुरु पूर्णिमा का अर्थ : जिस में कुछ भी अधूरा ना रहे, पूरी गुणों के और भावों के ज्ञान का समावेश हो ’

भारतीय संस्कृति में गुरु का को सम्मान है। वह भगवान तुल्य माना जाता है। या हम ऐसा कहे की गुरु को ही भगवान माना गया है। गुरु ही हमारे जीवन से अज्ञान अंधकार को मिटाता है। गुरु हमे इस लायक बनाते है कि हम हमारी जीवन को सही तरह से,सही दिशा में और सही अर्थों के साथ जी सके। इस दिन का हिन्दू धर्म में बहुत महत्व है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद व्यास जी के चित्र को फूल या माला चढ़ाकर अपने गुरु के पास जाना चाहिए। और उन्हें आसन पर बैठाकर पुष्पमाला पहनानी चाहिए। फिर अपने गुरु के चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद लें। गुरु से मन्त्र प्राप्त करने के लिए भी इस दिन को उत्तम माना गया है। गुरुओं को समर्पित गुरु पूर्णिमा का पर्व 23 और 24 जुलाई को मनाया जायेगा। इस दिन हमें ज्ञान देने वाले और हमारे मार्गदर्शक गुरुओं की पूजा की जाती है। वैसे तो हिंदू धर्म में हर महीने पूर्णिमा आती है लेकिन आषाढ़ मास में आने वाली इस पूर्णिमा का खास महत्व होता है। क्योंकि शास्त्रों अनुसार ऐसा बताया गया है कि इस दिन महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था। जिन्होंने महाभारत की रचना की थी इतना ही नहीं उन्होंने 18 पुराओं की भी रचना की। वेदों को विभाजित किया। जिस कारण इनका नाम वेद व्यास प्रसिद्ध हुआ। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है।

यहां जानें इस दिन कैसे करें गुरुओं की पूजा और व्रत कथा।

पूजा की विधि – इस दिन का हिन्दू धर्म में बहुत महत्व है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद व्यास जी के चित्र को फूल या माला चढ़ाकर अपने गुरु के पास जाना चाहिए। और उन्हें आसन पर बैठाकर पुष्पमाला पहनानी चाहिए। फिर अपने गुरु के चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद लें। यदि आपके गुरू आपके पास नहीं है तो उनकी तस्वीर के सामने सिर झुकाकर उनकी पूजा करें। इस दिन अपने गुरु को वस्त्र, फल, फूल व माला अर्पण कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। गुरु से मन्त्र प्राप्त करने के लिए भी इस दिन को उत्तम माना गया है। साथ ही इस दिन गुरुओं की सेवा करनी चाहिए।

क्यों कहते हैं व्यास पूर्णिमा: गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह दिन महर्षि व्यास का जन्म हुआ था। ऋषि वेदव्यास जी ने मानव कल्याण के लिए वेदों को विभाजित करके उन्हें सरल बनाया। जिस कारण इनका नाम वेद व्यास प्रसिद्ध हुआ। माना जाता है कि इनका बचपन का नाम कृष्णद्वैपायन था। इनकी माता मछुआरे की पुत्री सत्यवती और पिता ऋषि पराशर थे। महाभारत काल में मां के कहने पर महर्षि वेदव्यास ने विचित्रवीर्य की रानियों और एक दासी के साथ नियोग किया। जिसके बाद पांडु, धृतराष्ट्र और विदुर का जन्म हुआ। व्यासजी ने 6 शास्त्रों और 18 पुराणों की रचना की। और इसी तिथि पर व्यासजी ने सबसे पहले अपने शिष्यों और मुनियों को शास्त्रों का ज्ञान भी दिया। इसी कारण गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। कई लोग इस दिन व्यास जी के चित्र का पूजन कर उनके द्वारा रचित ग्रंथों का अध्ययन करते हैं। व्यास जी को प्रथम गुरु की भी उपाधि दी जाती है क्योंकि गुरु व्यास ने ही पहली बार मानव जाति को चारों वेदों का ज्ञान दिया था। इसके उपलक्ष में गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा को भारत में बहुत ही श्रद्धा-भाव से मनाया जाता है। वैसे तो प्रत्येक पूर्णिमा पुण्य फलदायी होती है। परंतु हिंदी पंचांग का चौथा माह आषाढ़, जिसके पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इसी दिन महर्षि वेद व्यास जी का जन्म हुआ था। व्यास जी को प्रथम गुरु की भी उपाधि दी जाती है क्योंकि गुरु व्यास ने ही पहली बार मानव जाति को चारों वेदों का ज्ञान दिया था। गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व इस वजह से मनाया जाता है। इसे व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। आइये जानते हैं पूजा-विधि और गुरु पूर्णिमा के महत्व के बारे में।
शुभ मुहूर्त
गुरु पूर्णिमा तिथि प्रारंभ- शुक्रवार 23 जुलाई को सुबह 10:34 बजे
गुरु पूर्णिमा तिथि समाप्त- शनिवार 24 जुलाई को सुबह 08:06 बजे

पूजा विधि
प्रात:काल सुबह-सुबह घर की सफाई करके स्नानादि से निपटकर पूजा का संकल्प लें। किसी साफ सुथरे जगह पर सफेद वस्त्र बिछाकर उसपर व्यास-पीठ का निर्माण करें। गुरु की प्रतिमा स्थापित करने के बाद उन्हें चंदन, रोली, पुष्प, फल और प्रसाद आदि अर्पित करें। इसके बाद व्यासजी, शुक्रदेवजी, शंकराचार्यजी आदि गुरुओं को याद करके उनका आवाहन करना चाहिए। इसके बाद
‘गुरुपरंपरासिद्धयर्थं
व्यासपूजां करिष्ये’ मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।

गुरु पूर्णिमा का महत्व
भारतीय सभ्यता में गुरुओं का विशेष महत्व है। भगवान की प्राप्ति का मार्ग गुरु के बताए मार्ग से ही संभव होता है क्योंकि एक गुरु ही है, जो अपने शिष्य को गलत मार्ग पर जाने से रोकते हैं और सही मार्ग पर जाने के लिए प्रेरित करते हैं। इस वजह से गुरुओं के सम्मान में आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है।

SHARE