प्रार्थना का उदय

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sudhansu ji
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(जब भी अपने भगवान को पुकारें तो अपने हृदय मंदिर के समस्त द्वार खोलकर)

सुधांशु जी महाराज
सृ ष्टि के आरंभ से ही मनुष्य जब कभी अपने कार्यों में असफल हुआ, दुख से संतप्त हुआ या फिर कभी किसी कारण उसे हानि उठानी पड़ी, जहां सम्मान की अपेक्षा थी, वहां अपमानित होना पड़ा, आगे बढ़ने की चाह थी, पीछे हटना पड़ गया, ऊपर उठने की कामना थी लेकिन नीचे गिर गया, जब बहुत कुछ पाने की चाह में बहुत कुछ खो बैठा, जिनका बहुत भरोसा था, उनसे ही धोखा खा बैठा और उसका मन संत्रस्त होकर, पीड़ित होकर अंदर से कचोटने लगा और द्रवित हो उठा तो उसके हृदय में प्रार्थना का उदय हुआ।हम सबके जीवन में ऐसे कई क्षण आते हैं, जब हम परम सत्ता के समक्ष सहायता के लिए प्रार्थना करने बैठते हैं, जब हमें अनुभव होता है कि हमारी शक्ति कम पड़ने लगी है हमें किसी सहारे की आवश्यकता है।

ऐसा सहारा जो मिलकर कभी दूर नहीं हो, जो स्थायी रूप से हमारे साथ रहे। एक ऐसे मित्र की तलाश होती है जो सदा अपना स्नेह बरसाये और कभी अपने प्रेम को कम न होने दे। एक ऐसे धन की कामना हमें होती है जो एक बार मिल जाए तो फिर कभी निर्धनता हमें सताये नहीं। उस स्थिति में हम सभी अपना हृदय खोलकर जिस परम सत्ता को पुकारते हैं और याद रखते हैं, वही परम सत्ता इस संसार की स्वामिनी है, वही हमारा भगवान है, परमात्मा है। वही सर्वोत्तम धन, परम शक्ति और समस्त ज्ञानों का ज्ञान है। निर्धनों का धन, निर्बलों का बल, अज्ञानियों का ज्ञान है। इन भावों को संजोकर जब हम प्रभु से जुड़ जाते हैं, हमें संतुष्टि और आनंद का अनुभव होता है, और तब कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए भी हम प्रार्थना करते हैं। धन्यवाद करते हैं उस परम सत्ता का, जिसने हमें जीवन में बहुत कुछ दिया है। हम जब भी अपने भगवान को पुकारें तो अपने हृदय मंदिर के समस्त द्वार खोलकर, पूरी निर्मलता से पुकारें। अपनी प्रार्थना में बल भरें, अपनी प्रार्थना को शक्ति दें।

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