एक नगरवधू जो बुद्ध की होकर रह गई

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पी वेंकटेश
लिच्छवी शहर की राजधानी वैशाली में एक खुबसूरत नर्तकी रहती थी, जिसका नाम था आम्रपाली। उसका नाम एक आम की प्रजाति के नाम पर रखा गया था। हर कोई उसके प्रेम को पाने के लिए उत्सुक रहता था। लेकिन उसने नगरवधु होना चुना जो पूरे शहर की सेवा करती है। एक दिन आम्रपाली ने एक युवा संत को देखा। उसके शांत और आकर्षक व्यक्तित्व से मंत्रमुग्ध होकर वह उस संत के पीछे-पीछे चल दी। संन्यासी उसकी उपस्थिति से बेखबर एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठ गया। उस संत का ध्यान आकर्षित ना कर पाने के कारण आम्रपाली ने उससे पूछा, महाशय, कृपया अपना परिचय दें। इतनी कम उम्र में आप तपस्वी जीवन क्यों व्यतीत कर रहे हैं? संन्यासी ने जवाब दिया, सच की तलाश में।
पहले तो आम्रपाली उसका जवाब सुनकर स्तब्ध रह गई। फिर उसने कटाक्ष करते हुए पूछा, ये सच ही किस काम का जिसको तलाशने में आपकी जवानी बर्बाद हो जाये? संन्यासी मुस्कुराया और कहा, महोदया, निरपेक्ष खुशी इसी चीज में है। वो खुशी जो आप तलाश रही हैं, वो तो क्षणभंगुर है। आम्रपाली फिर भी अपनी बात पर कायम रही और कहा, प्रिय, इस भ्रम को त्याग दें और मेरे आतिथ्य का आनंद लें जिसका अनुभव राजसी लोग भी पाना चाहते हैं। संन्यासी ने एक क्षण के लिए सोचा और कहा, मैं अपने गुरु से पूछूंगा। अगर वह मुझे अनुमति देते हैं, तो मैं आउंगा। फिर उसने अपने थैले से एक पका हुआ आम्रफल (आम) निकाला और उसे आम्रपाली को इस निर्देश के साथ दिया कि जब तक वह लौट कर नहीं आता, तब तक वो आम सड़े नहीं और संरक्षित रहे। संन्यासी बुद्ध के आश्रम लौट गया और उसने यह घटना बुद्ध को बताई। बुद्ध ने उसे आम्रपाली के साथ रहने की अनुमति दे दी लेकिन यह बात अन्य शिष्यों के लिए उलझन बन गई। बुद्ध ने उनसे शांतिपूर्वक कहा, मैंने उसकी आंखों में देखा है। उसमें किसी प्रकार की इच्छा का भाव नहीं था। अगर वो ना कहते तो वो उनकी आज्ञा मान लेता लेकिन मुझे उसके ध्यान पर पूरा विश्वास है।
आम की गुठली
इस बीच आम्रपाली ने हर तरह से आम को ताजा रखने की कोशिश की लेकिन उसमें वो नाकाम रही। एक महीने बाद वो युवा संन्यासी लौट आया। भावनामुग्ध हो वह उसके पास पहुंची। संन्यासी ने आदेश दिया, महोदया! वो आम्रफल लेकर आएं। वो ले आयी लेकिन आम पूरी तरह सड़ चुका था। उससे बदबू आ रही थी और उसमें कई कीड़े भी लग चुके थे। आम्रपाली ने पूछा, प्रिय, अब इस सड़े फल का आप क्या करेंगे? संन्यासी ने सड़े छिलके को हटाते हुए उसमें से धीरे-धीरे आम की गुठली निकाली। उसने आम्रपाली को सड़ा हुआ छिलका दिखाते हुए कहा, इस फल की खुशबू और स्वाद तो नष्ट हो चुका है, फिर इसकी खुबसूरती कहां है? वो इस गुठली में है क्योंकि गुठली ज्यों का त्यों है और सड़ा भी नहीं है। लेकिन इस गुठली का क्या उपयोग है?, वेश्या ने तर्क देते हुए पूछा। संन्यासी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, आम की गुठली ही सबसे उपयोगी है। एक बीज के रूप में इसके पास क्षमता है कि यह एक नये पौधे को जन्म दे सके। इसी तरह मनुष्य का किया हुआ ध्यान कभी भी व्यर्थ नहीं जाता। यह आम की गुठली अनंत आत्मा का प्रतीक है। आत्मा का संरक्षण ही वास्तविक ढ़ाल है और वही निरपेक्ष खुशी है। इस सच को पहचानो आम्रपाली। तुम इस आम्रफल को सड़ने से नहीं बचा सकी तो तुम कब तक अपने इस नश्वर शरीर की रक्षा कर पाओगी?
परिवर्तन
नगरवधू अवाक थी। ऐसा लग रहा था जैसे कि वो एक गहरी निंद्रा से जागी हो। आगे बढ़कर उसने उस युवा संन्यासी से माफी मांगी। उसने खुद को शुद्ध महसूस किया। उसने उस संन्यासी के गुरु से मिलने की इच्छा जाहिर की। बाद में, बुद्ध वैशाली आये और वो आम्रपाली के यहां ही ठहरे। उसने बुद्ध के पैर छुये और कहा, मैंने आपके संन्यासी को लुभाने की बहुत कोशिश की लेकिन उसने मुझे अपनी जागरुकता से आश्वस्त कर दिया कि मेरा वास्तविक जीवन आपकी छाया में ही है। उसने वेश्या का जीवन त्याग दिया और अपना सारा सामान बुद्ध संघ को दान कर दिया। बुद्ध ने संघम् शरणम् गच्छामि, धम्मम् शरणम् गच्छामि मंत्र का जाप करने के लिए अपने मठ में आम्रपाली को एक शिष्य के रूप में जगह दे दी।

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