Online Gaming एक्ट पर बवाल, कंपनियों ने जताई आपत्ति, हाई कोर्ट ने मांगी सफाई
Online Gaming एक्ट पर बवाल, कंपनियों ने जताई आपत्ति, हाई कोर्ट ने मांगी सफाई
Online Gaming, आज सामज, नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को हाल ही में पारित ऑनलाइन गेमिंग (प्रचार एवं विनियमन) अधिनियम के लिए एक प्राधिकरण के गठन और नियमों की अधिसूचना में तेजी लाने का निर्देश दिया है।
यह आदेश मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने नए अधिनियमित कानून को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए जारी किया।
न्यायालय की टिप्पणी
सुनवाई के दौरान, पीठ ने केंद्र से सवाल किया कि बिना किसी कार्यान्वयन प्राधिकरण या अधिसूचित नियमों के यह अधिनियम प्रभावी रूप से कैसे कार्य कर सकता है। न्यायाधीशों ने टिप्पणी की कि जब तक ये कदम नहीं उठाए जाते, तब तक यह कानून अपनी मूल भावना के अनुसार लागू नहीं हो सकता।
केंद्र का रुख
सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अधिनियम का बचाव करते हुए कहा कि एक प्राधिकरण की स्थापना और नियम बनाने की प्रक्रिया पहले से ही चल रही है। उन्होंने आगे तर्क दिया कि सरकार ई-स्पोर्ट्स, शैक्षिक और सामाजिक रूप से सुरक्षित ऑनलाइन खेलों को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन ऑनलाइन पैसे-आधारित खेलों का बढ़ना एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है।
मेहता के अनुसार, ऐसे खेल अक्सर युवाओं में लत, मानसिक तनाव और यहाँ तक कि आत्महत्या का कारण बनते हैं, जिससे विनियमन न केवल आवश्यक बल्कि अत्यावश्यक भी हो जाता है।
अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ
21 अगस्त 2025 को संसद द्वारा पारित ऑनलाइन गेमिंग अधिनियम का उद्देश्य है:
सभी प्रकार के ऑनलाइन धन-आधारित खेलों पर प्रतिबंध लगाना।
ई-स्पोर्ट्स और सुरक्षित ऑनलाइन शैक्षिक/सामाजिक खेलों को बढ़ावा देना।
याचिकाकर्ता की आपत्ति
यह याचिका ऑनलाइन कैरम गेमिंग प्लेटफ़ॉर्म, बघीरा कैरम प्राइवेट लिमिटेड द्वारा दायर की गई थी। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि इस अधिनियम को हितधारकों के साथ पर्याप्त परामर्श किए बिना जल्दबाजी में लागू किया गया, जिससे कंपनियों और खिलाड़ियों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ।
याचिका में आगे कहा गया है कि यह व्यापक प्रतिबंध अनुचित रूप से सभी प्रकार के वास्तविक-धन वाले ऑनलाइन खेलों को कवर करता है, चाहे वे कौशल-आधारित हों या संयोग-आधारित।
आगे क्या?
दिल्ली उच्च न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई आठ सप्ताह बाद के लिए सूचीबद्ध की है। तब तक, ध्यान इस बात पर रहेगा कि क्या केंद्र नियमों को अंतिम रूप दे सकता है और अधिनियम को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए प्राधिकरण स्थापित कर सकता है।
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