Chandigarh News: जीवन मे मिठास खोलने का कार्य करती है विनम्रता

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Chandigarh News:  विनम्रता मनुष्य के व्यवहार को उजागर करती है। विनम्र प्रवृति का व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में आसानी से उत्कृष्ट कार्य कर सकता है। विनम्रता ही मानव को इस संसार में सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति बनाती है। हम सभी को विनम्रता पूर्वक जीवन यापन करना चाहिए। सेवा भाव का असल उद्देश्य समाज के दबे कुचले लोगों की मदद करना है। ऐसे में हमारी एक छोटी सी पहल भी बड़े सामाजिक परिवर्तन का प्रतिरूप बनकर उभर सकती है। हम सभी को सदैव सेवाभाव के पथ पर अग्रसर रहना चाहिए। हम सभी महान कार्य तो नहीं कर सकते लेकिन नि:स्वार्थ सेवा कर अपने समाज व परिवार का नाम जरूर रोशन कर सकते हैं। हम सभी को निस्वार्थ भाव से जीवन को जीने की कला अपने भीतर विकसित करनी चाहिए। निस्वार्थ भाव रखते हुए समाज हित में लगातार कार्य करना ही मानव जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है। ये शब्द मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजीआलोक ने खरड मे सुभाष जैन के आवास पर कहे।
मनीषीसंत ने आगे कहा साधक के लिए माला का और संसारी के लिए माल का बड़ा महत्व होता है। माला की प्रतिष्ठा में ही मंत्र की प्रतिष्ठा है। जप करते समय माला और मन का गिरना अच्छा नही है। माला मालिक की प्रार्थना है। नोट गिनने के लिए भी दो उंगली चाहिए फिर माला क्यों नहीं गिनते भाई! वरमाला के लिए आप सभी कैसे उत्सुक रहते हैं? और कर-माला के लिए? माला फेरते समय न स्वयं हिलना चाहिए, ना ही माला को हिलाना चाहिए? यह नहीं कि वह नीचे जमीन पर पड़ी रहे। माला से माल मिलता है, फिर व्यक्ति मालामाल होता है। क्रोध इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन है। क्रोध एक बार दिमाग पर हावी हो गया तो दीवाला निकालकर ही दम लेता है।क्रोध जहां है, वहां दीवाली कैसे? वहां तो दीवाला ही होगा। हर क्रोधी को एक दिन क्रोध का खामियाजा उठाना पड़ता है। इसलिए क्रोध करें भी तो रोज नहीं, सप्ताह में एक दिन। कभी-कभी क्रोध करोगे तो सामने वाले पर उसका असर भी पड़ेगा। रोज दिन में दस बार क्रोध करोगे तो सामने वाला कहेगा इनकी तो चिल्लाने की आदत पड़ गई है। हां, हो सके तो कभी-कभी खुद पर क्रोध और शत्रुओं को क्षमा करें। अपने विरोधियों के साथ समय बिताएं और मित्रों को पहचानने की कोशिश करें।

मनीषीसंत ने अंत मे फरमाया बिना सेवा भाव के किसी भी पुनीत कार्य को अंजाम तक नहीं पहुंचाया जा सकता। सेवा भाव के जरिए समाज में व्याप्त कुरीतियों को जड़ से समाप्त करने के साथ ही आम लोगों को भी उनके सामाजिक दायित्वों के प्रति जागरूक किया जा सकता है। असल में सेवा भाव आपसी सद्भाव का वाहक बनता है। जब हम एक-दूसरे के प्रति सेवा भाव रखते हैं तब आपसी द्वेष की भावना स्वत: समाप्त हो जाती है और हम सभी मिलकर कामयाबी के पथ पर अग्रसर होते हैं। सेवा से बड़ा कोई परोपकार इस विश्व में नहीं है, जिसे मानव सहजता से अपने जीवन में अंगीकार कर सकता है। प्रारंभिक शिक्षा से लेकर हमारे अंतिम सेवा काल तक सेवा ही एक मात्र ऐसा आभूषण है, जो हमारे जीवन को सार्थक सिद्ध करने में अहम भूमिका निभाता है। बिना सेवा भाव विकसित किए मनुष्य जीवन को सफल नहीं बना सकता। हम सभी को चाहिए कि सेवा के इस महत्व को समझें व दूसरों को भी इस ओर जागरूक करने की पहल करें।