नई दिल्ली। कोरोना वायरस ने देश दुनिया में तबाही मचा रखी है। कुछ देशों में तो यह महामारी काल का विक्राल रूप ले चुकी है। अब तक दुनिया में हजारों मौतें हो चुकी हैं। दुनिया केसभी देश इस वायरस की दवा खोज रहे हैं लेकिन अब तक कोविड 19 से संक्रमित मरीजों के इलाज में मलेरिया रोधी दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन प्रभावशाली साबित हो रही है। जिसकी वजह सेदुनिया में इसकी मांग बढ़ गई है। अब दुनिया की महाशक्ति अमेरिका भी भारत से हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन मांग रहा है। हालांकि भारत ने देश में फैल रहे कोरोना महामारी को देखते हुए दवाओंके निर्यात पर रोक लगा दी थी लेकिन मंगलवार को भारत ने इसके निर्यात से रोक हटा ली है। इस बीच फार्मा सेक्टर ने भरोसा दिलाया है कि देश में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का पर्याप्त स्टॉक है। साथ ही दवा कंपनियों देश और दुनिया की मांग के मुताबिक उत्पादन बढ़ाने को तैयार हैं। कोरोना मरीजों पर इसके अच्छे प्रभाव की बात सामने आने के बाद 25 मार्च को भारत सरकार ने इसके निर्यात पर रोक लगा दी थी। भारत इस दवा का सबसे बड़ा निर्यातक है। इंडियन फार्माश्युटिकल अलायंस (आईपीए) के महासचिव सुदर्शन जैन ने कहा, ‘भारत दुनिया में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के कुल खपत का 70 फीसदी उत्पादन करता है। जाइडस काडिला और आईपीसीए जैसी कंपनियां देश में इसकी बड़ी उत्पादक हैं।’ दुनिया में इसकी मांग को पूरी करने के लिए उत्पादन क्षमता पर्याप्त है। यदि आवश्यकता बढ़ती है तो कंपनियां उत्पादन बढ़ाने को तैयार हैं। जैन ने कहा, ‘सरकार ने 12 उत्पादों और इनके मिश्रण से प्रतिबंध हटा लिया है। सभी पहलुओं की समीक्षा की जा रही है। घरेलू मांग और निर्यात के लिए पैरासिटामोल और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन की मांग को पूरा किया जाएगा।’इंडियन ड्रग मैन्युफैक्चरर्स असोसिएशन के एग्जीक्युटिव डायरेक्टर अशोक कुमार मदन ने कहा, ‘भारत को एक साल में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन की 2.4 करोड़ टैबलेट की जरूरत होती है। भारत में अभी सालाना 40 मीट्रिक टन कच्चा माल से हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन बनाने की क्षमता है। इससे हम 200 एमजी के 20 करोड़ टैबलेट बना सकते हैं।’
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