Gehlot emerged as the real warrior of the Battle of Corona: कोरोना की लड़ाई के असल योद्धा बन कर उभरे गहलोत

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नई दिल्ली।राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत एक बार फिर आपदा प्रबंधन के असल योद्वा बन कर उभरे।इस बार यह कारनामा उन्होंने कोरोना की लड़ाई में कर के दिखाया।।इससे पूर्व जब राजस्थान 90 दशक में भीषण सूखे से जूझ रहा था तो गहलोत ने राज्य के मुख्यमंत्री रहते हुए यह कारनामा किया।1998 से लेकर 2003 के दौरान केंद्र में विपक्ष की सरकार होने के बाद भी उन्होंने अपने राज्य में एक भी भूख से मौत नही होने दी।हालांकि तब  भाजपा  ने भूख से मौत के मामले में उन्हें घेरने की कोशिश की,लेकिन उस समय संसद में आये जवाब से विपक्ष ही घिर गया।गहलोत के अकाल के समय के आपदा प्रबंधन की आज तक चर्चा होती है।अब जब कोरोना का पहला मामला सामने आया था तो तमाम तरह के सवाल उठने लगे।

    भीलवाड़ा को लेकर तो विदेशी न्यूज़ एजेंसियों जिसमे बीबीसी भी शामिल थी ने खबरे चला दी कि हालात काबू से बाहर हैं।चिंताजनक हैं।हॉट स्पॉट बन गया।झुंझुन,कोटा जैसे कई इलाक़ों को लेकर तरह तरह की खबरे आने लगी।मुख्यमंत्री गहलोत ने पहला मामला आते ही खुद मोर्चा संभाला।एक टीम तैयार की ओर खुद फैसले कर देश के अंदर सबसे पहले लॉक डाउन की घोषणा की।तेजी से कर्फ्यू लगाने के आदेश दिए।हफ्ते भर में नतीजे सामने आने लगे।भीलवाड़ा देशभर में मॉडल बन गया।केंद्र ने भीलवाड़ा मॉडल की जमकर सराहना की।कई राज्य इसे अब अपना भी रहे हैं।गहलोत का राजनीति करने का अलग तरीका है।वह ठकराव की राजनीति में ज्यादा विश्वास नही करते हैं।अकाल के समय केंद्र में भाजपा की सरकार थी।जो मदद वह चाहते थे नही मिल रही थी इसके बाद भी उनका कोई ठकराव नही था।उन्होंने अपने तरीके से दबाव बना केंद्र से मदद लेते थे।इस बार जब कोरोना में केंद्र की बात आई तो उन्होंने सीधा हमला नही बोला।कोई कुछ भी बोलता रहा वह अपने तरीके से चले।
   लॉक डाउन में छूट ,उद्योग खोलने,मजदूरों और छात्रों की मदद ,हिसाब से छूट यह सब गहलोत ने अपने तरीके से फैसले किये।केंद्र पर दबाव नही डाला।यही कहते रहे कि राज्यों पर फैसला छोड़ देना चाहिये।गहलोत नेअपने हिसाब से फैसले किये।केंद्र ने उन्हें स्वीकारा।कोरोना को लेकर राजस्थान सबसे संवेदन शील राज्य था क्योंकि जिस समय कोरोना ने दस्तक दी राजस्थान में पर्यटन का पीक समय था।बड़ी संख्या में विदेशी राजस्थान घूमने आए हुये थे।देश का बड़ा राज्य जहाँ पर आबादी भी घनी बस्तियों में रहती गहलोत के लिये चुनोती थी।इसलिये उन्होंने सामाजिक ,धार्मिक संगठनों को भरोसे में ले कड़े फैसले लेने शुरू किए।मरकज का मामला सामने आने के बाद प्रदेश में माहौल बिगाड़ने की कोशिश भी हुई।लेकिन गहलोत सरकार ने एक भी कोशिश को सफल नही होने दिया।पुलिस प्रशासन को सख्त आदेश दे हमले की घटनाएं नही होने दी।जयपुर रामगंज का मामला आया तो एक बार के लिए लगा कि स्थिति बिगड़ रही है,लेकिन उसे संभाल लिया।
 यही नही देश भर के हजारों छात्रों को सुरक्षित भिजवा नही शुरुवात की।बाकी राज्यों ने फिर पहल की।मजदूरों के लिये बसें चलवाई।सबसे पहले बाजार खोलने उधोगो में काम राजस्थान में पहल हुई।लॉक डाउन को कैसे खोला जाए केंद्र ने उनके सुझाव को माना।उसी तर्ज पर अब ओर राज्य भी चल पड़े।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से राहत पैकेज की घोषणा की गई।केंद्र के इस पैकेज को लेकर तमाम तरह के सवाल उठ रहे हैं।लेकिन गहलोत ने इस मामले में भी सीधी आलोचना नही की।उन्होंने लघु उधोगो को लोन देने के मामले में सवाल उठाये।गहलोत बराबर केंद्र से यही आग्रह कर रहे थे कि आर्थिक संकट के समय केंद्र को जल्द राहत पैकेज की घोषणा करनी चाहिये।इस पेकेज से बहुत राहत राज्यों को मिलेगी लगता नही है।लेकिन गहलोत अपनी स्टाइल में अपनी टीम के साथ कोरोना से 24 घण्टे लड़ाई लड़ रहे हैं।राजस्थान और राज्यों के मुकाबले काफी हद तक लड़ाई जीतता दिख रहा है।गहलोत की सूझबूझ की प्रबन्धन की नीति का बड़ा रोल होगा।
-अजीत मेंदोला
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