Right to privacy and spying on Pegasus: निजता का अधिकार और पेगासस की जासूसी

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इस सप्ताह एक बड़ी खबर अखबारों में आयी कि दुनिया के 1400 लोगों की जासूसी उनके फोन में स्थित व्हाट्सएंप के जरिए एक मैलवेयर पैगासस द्वारा की गई है। यह खबर इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि संचार क्रांति के इस कालखंड में जब दुनिया मुट्ठी में सिमट कर आ गयी है तो उस हथेली में पड़े मोबाइल के द्वारा कोई सरकार या कोई एजेंसी हमारी सारी गतिविधियों की निगरानी कर सकती है और यह निगरानी या जासूसी या स्नूपिंग हमारे जीवन, प्रतिष्ठा और अस्तित्व के लिये खतरनाक बन सकती है। आज का विमर्श इसी विषय पर है।
भारत मे एक आकलन के अनुसार व्हाट्सऐप के यूजरों की संख्या लगभग 40 करोड़ है। सस्ते स्मार्टफोन और सस्ते डेटा सेवाओं के कारण लोगों ने यह संदेश और चित्र आदान प्रदान सेवा अपने फोन में ले रखी है। व्हाट्सएप्प मेरे पास भी है। पर उसमे सबसे अधिक सन्देश गुड मॉर्निंग के आते हैं। दरअसल यह एक आसान औपचारिकता है। कुछ पारिवारिक फोटो भी आती जाती रहती हैं। अमूमन व्हाट्सऐप कॉल से मैं बात नहीं करता हूँ। कारण, आवाज कट जाती है और उससे बेहतर बात तो फोन से होती है। पर यही उपयोगी और व्हाट्सऐप के अनुसार इनक्रिप्टेड संदेश द्वारा सुरक्षित एप्प अब फोन में सेंध लगाने का एक माध्यम बन गया है। व्हाट्सऐप, सोशल मीडिया दिग्गज फेसबुक का एक एप्प है। फेसबुक ने जब यह खुलासा किया कि व्हाट्सऐप में एक मैलवेयर पैगासस जिसे इजरायल की एक कम्पनी ने विकसित किया है को घुसपैठ करा कर मोबाइल फोन की जासूसी की है तो दुनिया भर में हंगामा मच गया। खबर है कि जिन 1400 लोगों की जासूसी की गयी है व्हाट्सऐप उन्हें खबर भेज कर अवगत और आगाह कर रहा है। पश्चिमी देश अपनी निजता और व्यक्ति स्वातंत्र्य को लेकर अधिक संवेदनशील होते हैं। अत: उन्होंने इस मामले को गंभीरता से लिया है। इस अवैध जासूसी के कारण निजता के अधिकार और व्यक्ति स्वातंत्र्य पर पुन: नए सिरे से देश मे बहस छिड़ गयी है।
अब एक उत्कंठा यह होती है कि यह पैगासस वायरस क्या बला है ? जैसे किसी भी कम्प्यूटर या मोबाइल में जो आॅपरेटिंग सिस्टम होता है वह किसी न किसी सॉफ्टवेयर से चलता है। यह सॉफ्टवेयर या प्रोग्राम ही उस कम्प्यूटर या मोबाइल के आॅपरेटिंग सिस्टम के सहारे तमाम काम जिनके लिये वह सॉफ्टवेयर बना होता है, वह करता है। उसी प्रकार कुछ शरारती तत्व कुछ ऐसे प्रोग्राम या सॉफ्टवेयर बना देते हैं जो कम्प्यूटर में काम कर रहे नियमित सॉफ्टवेयर को वह काम करने से रोक देता है या उसके द्वारा किये गए कार्य को बिगाड़ देता है या करप्ट कर देता है। ऐसे कामबिगाड़ू प्रोग्राम को वायरस कहते हैं। पैगासस वायरस ऐसा ही एक जटिल वायरस या मैलवेयर है। हालांकि एन्टी वायरस प्रोग्राम या सॉफ्टवेयर भी आते हैं पर वे भी तकनीकी आधार पर उन्नत पैगासस सॉफ्टवेयर को कितना न्यूट्रल कर सकते हैं यह एन्टी वायरस के तकनीकी सक्षमता पर निर्भर करता है।
इस मैलवेयर के बारे में तकनीकी जानकारी विजय शुक्ल जो एक साइबर सुरक्षा के एक्सपर्ट हैं, द्वारा प्राप्त हुई है पढें,
” हैकिंग का खतरा आज के युग का सबसे बड़ा चैलेन्ज है। हैकिंग से थोड़ी सी शरारत से लेकर व्यक्ति की जान, माल , देश की सुरक्षा तक को भयंकर खतरा हो सकता है। ताजा ताजा मार्केट में नया पेगासस आया है। पेगासस नाम ग्रीक माइथोलोजी में एक पंखों वाले दैवीय घोड़े का नाम है, जो पेसिडोन नामक देवता की संतान है। अगस्त 2016 में पहली बार इस स्पायवेयर  ने अपना पहला टारगेट एक मानवाधिकार एक्टिविस्ट को बनाने की कोशिश की थी।  पेगासस को इजराइल की एक फर्म एनएस ग्रुप द्वारा विकसित किया गया है। पेगासस हैकर को फोन के कैमरे, माइक्रोफोन, फाइलों, फोटो और यहां तक कि एन्क्रिप्टेड संदेशों और ईमेल तक पहुंच की अनुमति देता है। बहुत आसानी से. हैकर को आपके फोन को सिर्फ एक व्हाट्सऐप कॉल ही करना होता है। आप कॉल रिसीव करो या न करो, आपकी मर्जी, पंखो वाले दैवीय अश्व महाराज आपके फोन में बैठकर आपके सभी मतलब सभी मेसेज, फोटो फलाना ढकाना सब अपने मालिक हैकर को बिना कोइ नागा किये समय समय पर भेजता रहेगा।हाट्सऐप ने एनएसओ ग्रुप पर मुकदमा दायर किया है , इनके पास पेगासस के मारे सभी लोगों के नाम भी हैं । अब व्हाट्सऐप और एक डिजिटल सिक्योरिटी फर्म सिटिजन लैब उन लोगों को अलर्ट मैसेज भेज रही है जो प्रभावित हुए हैं। आपको अलर्ट मेसेज नही आया , मतलब आप अभी तक बचे हो।
मीडिया से यह जानकारी प्राप्त हुयी है कि दुनियाभर में कुल 1400 लोगो की जासूसी इस तकनीक से की गयी है। निश्चित ही ये सभी महत्वपूर्ण व्यक्ति होंगे।  कुछ के नाम सार्वजनिक भी हुये हैं। भारत मे भी कुछ पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकतार्ओं और सोशल एक्टिविस्ट लोगों की जासूसी की गयी है। एक खबर के अनुसार, व्हाट्सअप ने कांग्रेस की नेता प्रियंका गांधी को भी उनकी जासूसी किये जाने की कोशिश करने की सूचना दी है। जासूसी हुयी या नहीं, यह नहीं पता लग पाया। इस खतरनाक वायरस पेगासस के बारे में एक और नयी बात पता चली है कि, एक व्यक्ति के व्हाट्सऐप एकाउंट की निगरानी या जासूसी के लिये इस वायरस पर पचास लाख रुपये सालाना  व्यय आता है। अब सवाल यह उठता है कि इतनी बडी धनराशि भारत मे कौन, किसकी, जासूसी के करने के लिये व्यय कर रहा है और किसके कहने पर कर रहा है ? इस जासूसी से किसको लाभ मिल रहा है। जासूसी भी किसी की अनवरत नहीं की जाती है क्योंकि फिर भेद खुल जाने का खतरा भी रहता है। यह किसी खास डेटा के लिये या सूचना के लिये ही कुछ समय तक की जाती है। फिर मानवाधिकार कार्यकर्ताओ की जासूसी से किसे लाभ हो रहा है और कौन इतनी बड़ी धनराशि खर्च कर के जासूसी कर रहा है ? इन सारे सवालों का जवाब जब जांच हो तो पता चले। फिलहाल सरकार और व्हाट्सएप्प में भी सूचना देने और न देने पर मतभेद है। सरकार का कहना है कि उसे व्हाट्सएप्प ने पैगासस वायरस से जासूसी किये जाने की सूचना नहीं दी जबकि व्हाट्सएप्प ने सरकार के इस आरोप से इनकार किया है।
जैसा कि ऊपर यह बात स्पष्ट हो गयी है कि, जासूसी करने वाला मालवेयर पेगासस, इजरायल की एक कम्पनी द्वारा विकसित किया गया है और वही इसे बनाती भी है और फिर वह उसे सरकारों को बेच देती हैं। इजरायल के पहले यह वायरस अमेरिका की एक कम्पनी बनाती थी। इजरायल बाद में इस मामले में कूदा है। अब सरकारें इस वायरस का उपयोग वैध और कानूनी रूप से कानून के हित मे उपयोग करती हैं या वह भी चोरी छिपे अपने किसी राजनीतिक उद्देश्य के लिये इसका दुरुपयोग करती हैं यह इजरायल की कम्पनी का सिरदर्द नहीं है। वैसे ही जैसे बंदूक बनाने वाली फैक्ट्री ने बंदूक बना दिया और बेच दिया, अब यह बंदूक खरीदने वाले के ऊपर है कि वह उसका कैसे उपयोग करे। अब सरकार को यह बताना है कि उस पेगासस से किसने, किनकी, और क्यों जासूसी की गयी। कंपनी के मालिकों ने साफ कहा है कि उन्होंने यह सॉफ्टवेयर सरकारों को ही बेचा है।

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