Kuch alag to hai Amit Shah : कुछ अलग तो हैं, अमित शाह!

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प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सम भाव से रहना कोई आसान काम नहीं है। यह किसी योगी या साधक के वश की ही बात है। आमतौर पर लोग ऐसी स्थितियों से हार मान लेते हैं, टूट जाते हैं, बिखर जाते हैं। लेकिन जो लोग खिलाफ स्थितियों को अपने अनुकूल बना लेते हैं, ऐसे लोगों की सफलता असंदिग्ध है। अमित शाह की यही खूबी, उन्हें अन्य राजनेताओं से अलग करती है। अमित भाई के अंदर अगर यह खूबी नहीं होती,  तो 2010 में केंद्र की मनमोहन सरकार के गृह मंत्री पी चिदंबरम ने जिस तरह से उन्हें फंसाने का कुचक्र रच कर उनका राजनैतिक कैरियर नष्ट करने की कोशिश की थी, उसमें से किसी भी साधारण नेता के बच निकलने की सोची तक नहीं जा सकती थी। मगर वे बिलकुल नहीं घबराए।
प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सम भाव से रहना कोई आसान काम नहीं है। यह किसी योगी या साधक के वश की ही बात है। आमतौर पर लोग ऐसी स्थितियों से हार मान लेते हैं, टूट जाते हैं, बिखर जाते हैं। लेकिन जो लोग खिलाफ स्थितियों को अपने अनुकूल बना लेते हैं, ऐसे लोगों की सफलता असंदिग्ध है। अमित शाह की यही खूबी, उन्हें अन्य राजनेताओं से अलग करती है। अमित भाई के अंदर अगर यह खूबी नहीं होती,  तो 2010 में केंद्र की मनमोहन सरकार के गृह मंत्री पी चिदंबरम ने जिस तरह से उन्हें फंसाने का कुचक्र रच कर उनका राजनैतिक कैरियर नष्ट करने की कोशिश की थी, उसमें से किसी भी साधारण नेता के बच निकलने की सोची तक नहीं जा सकती थी। मगर वे बिलकुल नहीं घबराए। उन्हें यकीन था, कि न्याय उनके साथ है। गुजरात के गृहमंत्री का पद छोड़कर वे सीबीआई के समक्ष सहज भाव से पेश हुए। सीबीआई ने उन्हें गिरफ्तार किया। पहले तो तीन महीने साबरमती जेल में रखा, फिर उन्हें राज्य से भी बदर किया गया। उन पर आरोप था, कि अमित शाह गुजरात में रह कर गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं। ऐसी परिस्थितियां उनके सामने उत्पन्न की गईं, जिनसे कोई भी राजनेता हार मान सकता है, किंतु अमित शाह ने इसे चुनौती समझा, और वह कर दिखाया, जो इसके पूर्व कभी नहीं हुआ था।
गुजरात सूबे से निष्कासन के बाद अमित शाह दिल्ली आ गए, यहां पर कौटिल्य मार्ग स्थित गुजरात भवन के एक कमरे में परिवार समेत बसेरा डाला। यहां उन्होंने दो काम किए। एक तो अपने विरुद्ध लगे सभी मुकदमों की खुद पैरवी करने की ठानी, तथा दूसरे अपनी राजनीति को हिंदी प्रदेशों में टारगेट किया, वह भी खास तौर पर उत्तर प्रदेश में। वह एक ऐसा प्रदेश था, जहां पिछले ढाई दशक में जातियों और धर्म के नाम पर राजनीतिक खेल खेला जा रहा था। गंगा-यमुना के उपजाऊ मैदान में बसा यह सूबा विकास की दौड़ में सबसे पीछे आ गया था। शिक्षा, कारोबार, पुलिसिंग और प्रशासन में शून्य इस सूबे का कोई धनी-धोरी नहीं था। अमित भाई ने वहां जाकर इस बात को शिद्दत के साथ महसूस किया। एक गैर हिंदी भाषी व्यक्ति एक हिंदी भाषी राज्य में अपनी नई राजनीति की शुरुआत करे, यह अजूबा लग सकता है, लेकिन असंभव नहीं। वहां पर स्थितियां अमित भाई के प्रतिकूल थीं, किंतु अमित भाई ने अपनी राजनीति की जमीन वहीं तलाशनी शुरू की। 2010 की सितंबर में वे वाराणसी गए, और गंगा आरती के समय ही तय किया, कि वे गंगा को स्वच्छ करने के बाद ही दम लेंगे। 2012 आते-आते उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने आरोपों से बरी कर दिया, और गुजरात लौटने की अनुमति दी।
केंद्र की मनमोहन सिंह सरकार मान कर चल रही थी, कि अब गुजरात में मोदी सरकार की वापसी संभव नहीं है, क्योंकि भाजपा के सबसे सफल रणनीतिकार दो साल सूबे से बाहर रहे। पर उसका यह भरोसा झूठा निकला। गुजरात में नरेंद्र मोदी की सरकार तीसरी बार सत्तारूढ़ हुई तथा पहले से ज्यादा सदस्यों को जिता कर लाई। साथ ही अमित शाह खुद भी नारनपुर की नई बनी विधान सभा सीट से चुनाव जीते, इस तरह वे पांचवी बार लगातार विधायक चुने गए। 2012 में गुजरात विधानसभा चुनाव में मोदी की पुन: वापसी से यह भी लगने लगा, कि अब केंद्र में भी भाजपा की सरकार आ सकती है। इसके लिए अमित भाई का अनुभव काम आया। अमित शाह पर बंदिशें हट चुकी थीं, लेकिन अब उन्होंने दिल्ली में रहकर दिल्ली के तख्त पर कमल खिलाने की ठानी। उन्होंने दिल्ली के जंगपुरा में तीन कमरों का एक घर लिया। और सीबीआई में अपने खिलाफ चल रहे मुकदमों का बारीकी से अध्ययन करने लगे। खूब देशाटन भी करते। हालांकि भाजपा से उनके ऊपर कोई दायित्त्व नहीं था, लेकिन ज्योतिष विद्या में पारंगत अमित शाह दो वर्ष बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा के सत्तारोहण की लकीरें पढ़ रहे थे। वे यह भी समझ रहे थे, कि भाजपा की जीत हिंदी भाषी राज्यों से ही संभव होगी। 2014 के लोकसभा चुनाव के करीब आने पर उन्हें भाजपा का राष्ट्रीय महासचिव बनाकर उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया। वे खूब समझ रहे थे, कि उत्तर प्रदेश की जनता सपा और बसपा के जातिवादी चक्रव्यूह से निकलने को आतुर है। कांग्रेस के पास इस प्रदेश के लिए न तो कोई स्पष्ट नीति है, न उसके पास कोई ईमानदार व सक्षम नेता है। ऐसे में अमित शाह की हर बूथ पर पहुंचने की कला काम आई, और इस सूबे की लोकसभा में अस्सी में से 73 सीटें जीत कर भाजपा ने इतिहास रच दिया। भाजपा को 2014 में जो 282 लोकसभा सीटें मिलीं। उसमें उत्तर प्रदेश का योगदान बहुत बड़ा था। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी से जीते। केंद्र में भाजपा की सरकार बन जाने के बाद अमित शाह को भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया। दिसंबर 2014 में सीबीआई ने उन्हें फर्जी मुठभेड़ के आरोप से बरी कर दिया।
अनिर्बान गांगुली और शिवानंद द्विवेदी की नई पुस्तक अमित शाह और भाजपा की यात्रा में अमित भाई की कार्यशैली, उनके व्यक्तित्त्व और उनकी जन-आस्थाओं पर विस्तार से वर्णन है। इन दोनों लेखकों ने अमित भाई को खूब करीब से देखने, जानने व समझने की कोशिश की है। इन लोगों ने उन्हें समझा भी है। उनके अतीत, उनके वर्तमान और उनके भविष्य को। अमित भाई जैसा राजनेता बनना आसान नहीं है। इसके लिए जो साधना और योग चाहिए, वह उनमें ही निहित है। गुजरात के एक संपन्न व्यवसायी परिवार में जन्मे अमित भाई चाहते तो अपने व्यवसाय को ही आगे बढ़ाते। पर बचपन से ही उनके दादा ने उनके अंदर लोक कल्याण और लोक सेवा की भावना का जो अंकुरण किया था, वही फला-फूला। अमित शाह के दादा गुजरात की बड़ौदा स्टेट के अधीन एक छोटी-सी रियासत मनसा के नगर सेठ थे। पिता मुंबई में बिजनेस करते थे। स्टॉक एक्सचेंज में फला-फूला कारोबार था। नागर वैष्णवों के इस अति धार्मिक परिवार के नैतिक मूल्य बहुत ऊंचे थे। इसीलिए बालक अमित को उनके दादा मनसा ले आए, और वहीं उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई। दादा के कड़े अनुशासन में। इसी पुस्तक में लेखक द्वय ने अमित शाह के हवाले से लिखा है, कि बड़ौदा स्टेट में महर्षि अरविंद आया-जाया करते थे, और उन्होंने अमित जी के दादा को बताया था, कि राजा को सदैव ऐसे निर्णय लेने का प्रयास करना चाहिए, जिससे जनता को लाभ हो, कुछ व्यक्तियों को नहीं! अमित भाई ने कहा की दादा को दी गयी सीख उन्होंने रट ली।
पुस्तक के अनुसार आज जब अमित शाह देश के गृह मंत्री हैं, और भाजपा के अंदर प्रधानमंत्री के बाद सर्वाधिक शक्तिशाली राजनेता, तब भी शाम को अक्सर वे अपनी पोती रुद्री को गोद में उठाकर नरसी मेहता का भजन गाते हैं- वैष्णव जन तो तेने कही, पीर पराई जाने रे! अमित शाह किसी भी सलाह को हलके में नहीं लेते। वे हर कार्यकर्ता से संवाद करते हैं। क्रिकेट और शतरंज के माहिर खिलाड़ी अमित शाह राजनीति की हर गोटी खूब सोच-समझ कर रखते हैं। अमित शाह की इतिहास दृष्टि वैज्ञानिक है, सोच आधुनिक है, लेकिन उनके मूल्य पुराने गांधीवादी वैष्णवी हैं। उनकी दादी, उनके दादा और मां गांधी जी के अनुयायी थे। 1977 में जब वे मात्र तेरह साल की उम्र के थे, तब उन्होंने सरदार वल्लभ भाई पटेल की बेटी मणिबेन पटेल के चुनाव के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया था। मणिबेन कांग्रेस से दुखी थीं, और पुराने गांधीवादियों को जोड़ना चाहती थीं। कांग्रेस से सबका मोह भंग होने लगा था। 1980 में जब जनसंघ ने भाजपा का रूप लिया, और गांधीवादी समाजवाद की संकल्पना की, तब नवयुवक अमित शाह का रुझान भाजपा की तरफ बढ़ा। वे विद्यार्थी परिषद और भारतीय जनता युवा मोर्चा से होते हुए भाजपा में आए और अपने रणनीतिक कौशल से शिखर तक पार्टी को पहुंचाया।
शंभूनाथ शुक्ल
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