Positive politics wins: सकारात्मक राजनीति की जीत

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रामायण में हनुमान जी का चरित्र सबसे अलग था। उन्हें किसी भी बहाने सिर्फ राम की सेवा करनी थी। कोई उनके बारे में क्या बोलता है, उनको कोई फर्क नहीं पड़ता था। हनुमान के भक्त अरविंद केजरीवाल ने भी शायद इसी को मूल मंत्र बनाकर चुनाव लड़ा। किसी ने उन्हें कितना गंदा संबोधन किया हो, कोई फर्क नहीं पड़ता। उन्होंने सिर्फ अपने काम की राह पकड़ी। खुद को जनता के सेवक के रूप में प्रस्तुत किया। कई सालों तक काम करने के लिए अदालती और सियासी लड़ाई के बाद भी करने का जज्बा नहीं छोड़ा। किसी ने थप्पड़ मारा तो किसी ने कालिख फेंकी। किसी ने आतंकी तो किसी ने देशद्रोही बता दिया। यह उनका संयम और लगन ही थी, जो उन्हें तीसरी बार दिल्ली की जनता का विश्वास दिला सकी।
दिल्ली की जनता को आई लव यू बोलने वाले केजरीवाल प्रशासनिक और पुलिस सेवा के अफसरों के असहयोगात्मक रवैये पर भी मौन रहे। अड़ंगे वाली व्यवस्था से लड़ते, बीच का रास्ता निकाल अपनी राह चले। ताकतवर केंद्र सरकार से भी लोहा लेते रहे। हर हमले का जवाब सकारात्मक तरीके से दिया। जब कुछ समझ नहीं आया तो जनता को सच से रूबरू भी कराया। दिल्ली असल में मिनी इंडिया है। यहां देश के हर राज्य, भाषा और जाति-धर्म के लोग रहते हैं। उन सब का विश्वास हासिल करके अरविंद एक बार फिर ऐतिहासिक जनमत के साथ खड़े हैं। उनकी विजय सकारात्मक राजनीति की है, जो दूसरे पर आक्षेप नहीं लगाती बल्कि अपने किये की बात करती है। यही कारण है कि चुनाव प्रचार में वह कह सके, अगर आपको हमारा काम अच्छा लगा हो तो वोट देना, नहीं तो मत देना। यह जनादेश संकेत है कि देश को जाति-धर्म और तुष्टीकरण की राजनीति नहीं चाहिए। उसे सिर्फ काम चाहिए और वह भी विनम्रता से। अहंकार और आरोप जाहिलों को समझ आते हैं, शिक्षित और समझदार जनता को नहीं।

जय हिंद

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