In ‘SAMANA SAWALO KA’ Hariyana Agriculture Minister Om Prakash Dhankhar with group editor ITV network multimedia Ajay Shukla : हम बेहतर व्यवस्था की तरफ बढ़ रहे हैं : ओम प्रकाश धनखड़

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अंबाला। मक्खन रोज निकलना चाहिए, ऐसा नहीं कि मक्खन एक दिन निकालने से सब हो जाएगा। 4065 करोड़ रुपए किसानों के खाते में पहुंचा चुके हैं। हमने सभी कृषि क्षेत्र की सभी बिंदुओं को कवर कर लिया है। अब तो स्वामीनाथन जी भी कह रहें हैं कि पूरा इंप्लीमेंट हो गया है। स्वामीनाथन कह चुके हैं कि मैंने जो कुछ भी कहा भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने उसका इंप्लीमेंट किया है। स्वामीनाथन की सभी सिफारिशों पर काम हो रहा है। हम बाजरा खरीद को सिस्टम में लेकर आए, पिछली बार 18 लाख कुंतल की खरीद की। हरियाणा के किसानों को बिक्री कला इजराइल से सीखना है। यह बातें हरियाणा के कृषि मंत्री ओम प्रकाश धनखड़ ने इंडिया न्यूज हरियाणा पर सामना सवालों का में समूह संपादक मल्टीमीडिया अजय शुक्ल के सवालों का जवाब देते हुए कहीं। प्रस्तुत हैं अजय शुक्ल के सवाल और धनखड़ के जवाब के प्रमुख अंश।

सवाल : अभी हाल के दिनों में इंडियन नेशनल दल और जेजेपी के नेताओं ने कहा कि अपने चौधरी देवीलाल से लेकर पूर्व प्रधानमंत्री और उप प्रधानमंत्री के योगदान को नकारा है। किसान नेता कहे जाने वाले देवीलाल सहित अन्य को आपने नजरअंदाज किया है। ऐसा आरोप है कि आपने कहा कि इन लोगों ने कुछ नहीं किया।
जवाब: ऐसा हमने नहीं कहा, बात ध्यान से सुनने और समझने की है। देश का किसान बारबार यह मुद्दा उठाता रहा है कि उसको फसलों के लाभकारी मूल्य मिले। 1966 में देश में प्राइज कमीशन बनाया गया। 1980 में उसे फूड एंड प्राइज कमीशन का नाम दे दिया गया। प्राइज कमीशन जिस आधार पर कैल्कुलेशन करता था कि फसलों के दाम किस तरह से दिए जाएं। इसमें किसान का फायदा कहीं नहीं था। इसमें राष्टÑीय और अंतरराष्टÑीय प्राइज से लेकर अन्य बात को देखते थे। मैंने यह कहा कि देवगौड़ा भी कृषि क्षेत्र से आते थे। चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री और चौधरी देवीलाल उप प्रधानमंत्री बने। किसानों की लगातार यह मांग थी कि कास्ट एंड प्राइज के फार्मूले पर किसानों का फायदा जोड़ा जाए। इसको जोड़ने का काम केवल नरेंद्र मोदी ने किया कि हम 50 प्रतिशत लाभ फसलों के दाम में देंगे। मैंने कहा कि वह उस पर पहुंचे, लेकिन किसानों की पापुलर मांग को पूरा नहीं कर पाए।

सवाल: आपने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक किसानों की बड़ी मांग को लेकर काम किया। आप पर एक सवाल आता है कि आप किसान मोर्चा के प्रमुख रहे आपने किसानों की लड़ाई लड़ी। आपका कहना था कि नरेंद्र मोदी जिस दिन प्रधानमंत्री बनेंगे, उस दिन सबसे पहली कलम से स्वामीनाथन रिपोर्ट को लागू करेंगे। ऐसे में आप कृषि मंत्री बन गए इन सब स्थितियों में सारी चीजों को देखने के बाद स्वामीनाथन रिपोर्ट गायब है।
जवाब: स्वामीनाथन रिपोर्ट कहां गायब है। अब तो स्वामीनाथन जी भी कह रहे हैं कि पूरा इंप्लीमेंट हो गया। स्वामीनाथ कह चुके हैं कि मैंने जो कुछ भी कहा भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने उसका इंप्लीमेंट किया है। उन्होंने 50 प्रतिशत लाभ की बात की तो वह हमने देना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा कि किसानों का कंप्लसेशन अच्छे से करो, उन्होंने दस हजार की सिफारिश की थी, हमने 12 हजार कर दिया है। उन्होंने बेटर वाटर मैंनेजमेंट के लिए कहा, उस पर हम लगातार काम कर रहें हैं। उन्होंने जो दिशा दिखाई उस पर हमारी केंद्र और प्रदेश की सरकार चलने का काम कर रही है। उत्पादक को केंद्र सरकार ने छह हजार देना शुरू किया, हरियाणा प्रदेश सरकार ने कहा कि हम भी छह हजार देंगे। स्वामीनाथन की सभी सिफारिशों पर काम हो रहा है।
सवाल : आप कहतें हैं कि स्वामीनाथन की सभी सिफारिशों पर काम हो रहा है। विपक्ष इसी बात को लेकर आपको घेरता है कि आप कहतें हैं कि काम हो रहा है। पांच साल आपने केंद्र और राज्य में गुजार दिए, केंद्र में आपकी सरकार दोबारा आ गई। इन सब स्थितियों के बावजूद अभी उनमें कितने पर आप पाइप लाइन पर हैं और कितना काम हो गया है।
जवाब: देखिए हो रहा है और होता रहेगा। मक्खन रोज निकलना चाहिए, ऐसा नहीं कि मक्खन एक दिन निकालने से सब हो जाएगा। 4065 करोड़ रुपए किसानों के खाते में पहुंचा चुके हैं। हमने सभी कृषि क्षेत्र की सभी बिंदुओं को कवर कर लिया है।
सवाल: आप कहतें हैं कि किसानों की सभी मांग को कवर कर लिया गया है। विपक्ष कहता है कि किसानों को मुआवजा मिल ही नहीं रहा है।
जवाब: मैं 4065 करोड़ का आंकड़ा दे रहा हूं। ऐसा करके मैं 6.5 लाख किसानों के घर में पहुंच चुका हूं। अब वह यह कहतें हैं कि इन 50 फीसदी किसानों का मुआवजा रह गया है। सिस्टम के रास्ते में कहीं कमी रह गई है, यह बात वह कहतें हैं। विपक्ष यह नहीं कहता है कि सरसों और सूरजमुखी व बाजरे की खरीद नहीं हो रही है। अब वह कहतें हैं कि यह 50 किसान रह गए हैं। अब चीजें जहां पहुंचनी हैं पहुंचती हैं। कहीं फुल स्टाप नहीं आ जाएगा।

सवाल: आजकल आप डायवर्सीफिकेशन पर बात कर रहें हैं, कृषि को लेकर आप कह रहें हैं कि इनको करिए इसे न किया जाए। इन सब को लेकर जब आप बात करतें हैं तो क्या किसानों को मार्केट उपलब्ध करा रहें हैं।
जवाब: बाजरा सरकारी खरीद का हिस्सा कभी नहीं था। एक बार किसी सरकार ने दरियादिली से खरीद लिया तो अच्छी बात है। हम बाजरा खरीद को सिस्टम में लेकर आए, पिछली बार 18 लाख कुंतल की खरीद की। सरसों पर केंद्र 25 प्रतिशत तक देता था, हमने तो 70 लाख कुंतल खरीद लिया। हम इस रास्ते पर चल रहें हैं कि हमारा जो भी फसल उत्पादक है उसकी फसल को हम खरीदेंगे। कुछ ऐसी फसलें हैं जिसमें केंद्र सरकार मदद नहीं करती है, फिर भी हम खरीदते हैं। हमारा यह वादा है कि किसानों की सभी फसल को हम खरीदेंगे। मक्का पर हमने कहा कि अगर किसान धान से मक्का पर आता है तो दस हजार रुपए देने के साथ उसके मक्के की फसल की खरीद करेंगे। रही बात सब्जियों की तो हमने कहा कि जब सब्जियां नहीं बिकेंगी तो हम भावंतर भरपाई से पूरा करेंगे। मैं तो कहता हूं कि हम बेहतर व्यवस्था की तरफ बढ़ रहें हैं।
सवाल: आपने फल और सब्जियों की इंटरनेशनल लेबल की मंडी बनाने की बात कही थी। पांच साल बीतने को हैं और वह मंडी आज तक नहीं बनी।
जवाब: कांग्रेस के समय में इस मंडी पर एक तरह का विचार हुआ। कांग्रेस ने फ्रांस की एक मंडी को हायर करके भगाने का काम किया। जब हमारी सरकार बनी तो हम उस फ्रांस की एजेंसी से मिले और कहा कि आप हमारे यहां कार्य करें, तो एजेंसी के प्रतिनिधियों का कहना था कि हमें तो वहां से भगाया गया है, हम काम करना चाहते थे। बाद में हमने लोकल ही काम करने की कोशिश की, लेकिन इतनी बड़ी मंडी किसी ने बनाई नहीं थी, बड़ी मंडी बनाने के लिए बार-बार टेंडर निकालने के बाद भी लोग नहीं आए। फिर हमें लगा कि हम इस तरह से इसे नहीं कर पाएंगे। हमने एक स्पेशल परपज बनाया है जो खुद इस विषय पर काम करेगा।
सवाल: आप इस सारी बातों को लेकर कहते और दावा करते हैं तो ऐसी स्थिति में कह रहें हैं कि एक प्राधिकरण बनाया है, प्राधिकरण से किसान का क्या भला होगा, जब तक मंडी बनकर तैयार न हो, और किसान अपनी सब्जी उगा ले और बिकेगा नहीं तो किसान क्या करेगा, वह तो बबार्दी की कगार पर जाएगा।
जवाब: किसानों की खरीद के लिए पूरे हरियाणा में सब्जी मंडियों का नेटवर्क है। यह तो एक इंटरनेशनल लेबल की मंडी बनने की बात है। इसे गन्नौर के 600 एकड़ में बननी है, जहां पर आयात और निर्यात किया जा सकेगा। यहां तो आजादपुर मंडी को शिफ्ट करने का प्लान है। इसके साथ साथ दो मंडियां और विकसित करने जा रहें हैं पिंजौर में जहां एचएमटी थी और दूसरी गुरुग्राम में फूल की एक मंडी विकसित कर रहें हैं। हम नीदरलैंड की मंडी के संपर्क से रॉयल फलेरा की मदद से विकसित कर रहें हैं। हम तो किसानों को एक बढ़िया मंडी देना चाहते हैं।
सवाल: फूल की मंडी को लेकर एक बड़ी बात है कि हरियाणा में लोग फूल उगाने की बात करते हुए प्लानिंग से काम कर रहें हैं, लेकिन हरियाणा और पंजाब में अभी तक फूलों को लेकर बहुत बड़ा काम नहीं हुआ है। इसे लेकर क्या योजना है।
जवाब: हम एक फ्लोरीकल्चर सेंटर बना रहें हैं। इसमें केवल फूलों की खेती पर काम होगा। दूसरी बात यह कि फरीदाबाद, गुरुग्राम और झज्जर का इलाके में लोग बड़ी मात्रा में फूल की पैदावार करते हैं। इसलिए गुरुग्राम में एक फूल की मंडी विकासित कर रहें हैं, जिससे वहां के फूल पैदावार करने वालों को आसानी हो। फूलों की खेती में एक बात यह है कि वहां बाकी की सब्जियों और फलों की खेती तरह दिक्कत नहीं आती है। कारण यह है कि फल और सब्जियों के भाव ऊंचे जाते हैं तो सभी जगह हल्ला होता है। जब कोई अपने वरिष्ठ को 500 रुपए के 12 फूल वाला बुके देने जाता है तो उसे दिक्कत नहीं होती है। 500 रुपए में कोई 12 टमाटर नहीं खरीद सकता है। फ्लोरी कल्चर में कई बार रेट में दिक्कत नहीं आती है। इसलिए इसमें किसानों की अच्छी आमदनी हो सकती है।
सवाल: हिसार में कृषि विश्वविद्यालय है। कृषि को लेकर ऐसा माना जाता है कि हरियाणा कृषि का आइडियल राज्य है। इस राज्य का हिसार विश्वविद्यालय अब तक कोई ऐसा शोध नहीं ला सकी जिसको लेकर उल्लेखनीय उपब्धि कहा जा सके।
जवाब: हमारा विश्वविद्यालय देश के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में से एक है। इसकी बाकी एकेडमिक उपब्धियां कृषि को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अब हमारी दो विश्वविद्यालय और बन गई है। हमारे विश्वविद्यालय बेहतर काम कर रहें हैं। यहां पर पूरे दुनियां के विद्यार्थी पढ़ने के लिए आते हैं।
सवाल: ओम प्रकाश धनखड़ सिर्फ किसान नेता नहीं हैं। ओम प्रकाश धनखड़ खुद भी किसान हैं और पशु भी पालते हैं। बागवानी भी कर लेंते हैं। यह सब खुद करते हैं तो उनको किसानों के दर्द का एहसास भी होना चाहिए। आप मंडी का दौरा करिए, जब किसान अपनी फसल बेचने जाता है तो वह ट्रैक्टर के नीचे सोता है, उसके लिए कोई रेस्ट रूम नहीं होता।
जवाब: ज्यादातर मंडियों में किसान भवन है। यह ठीक है कि किसान अपनी फसल की रखवाली के लिए उसके पास रहता है। यह स्वभाविक है कि वह अपनी फसल से भरी ट्राली छोड़कर रेस्ट रूम में आराम करे। जब-जब किसान अपनी ट्राली छोड़कर किसान भवन में आराम करने जाता है तो उसका नुकसान ही होता है। एक मामले में इजराइल मेरे लिए आइडियल है। इजराइल के लोग बहुत बहादुर हैं। हम हरियाणा वाले ऐसे ही हैं, लड़ने में हम कम नहीं हैं। इजराइल के पास बिक्री कला है, बिक्री कला को हरियाणा के लोगों को इजराइल से सीखना है। अगर हम अपनी वस्तुएं बेंचना सीख गए तो जो इजराइली कौम है उसको टक्कर देने के बराबर होंगे।
सवाल: आपको हरियाणा का मैनीफैस्टो कमेटी का चेयरमैन बनाया गया है। क्या आप जनता के बीच जाकर जनता के सवालों और उनके मुद्दों को अपने घोषणा पत्र में शामिल करने की बात सोची है। जिससे लोकतंत्र का वास्तविक चेहरा सामने आ सके।
जवाब: मेरी नौ सदस्यों की कमेटी है। जिसको अलग-अलग गु्रप से जोड़ा गया है। मैं रेवाड़ी और करनाल में किसानों से बात करने खुद गया। हिसार में पशु पालकों से बात किया। फरीदाबाद में उद्योगपतियों से बात किया। हमारा प्रयास है कि हजारों प्रतिनिधियों से सीधे वार्ता करके उनके विचार को एकत्र किया जा रहा है। 18 ऐसी यात्रा निकाली है जो हर विधानसभा में जा रही है, इसमें सभी अपने अपने सुझाव दे सकते हंै। हमने इसपर म्हारे सपनों का हरियाणा (एमएसके हरियाणा) वेबसाइट भी दी है।
सवाल: अभय चौटाला ने कहा कि नए विधानसभा चुनाव का घोषणा पत्र बनाने जा रहे हैं, क्या पुराने वादों को पूरा कर चुके हैं।
जवाब: हम 100 प्रतिशत नहीं, लेकिन 99 प्रतिशत से अधिक घोषणाओं को पूरा करके आगे बढ़े हैं।
सवाल: आप कहतें हैं कि घोषणा पत्र से आगे गए हैं। भाजपा को कहा जाता था कि यह एक शहरी पार्टी है, लेकिन इस लोकसभा चुनाव में यह साबित कर दिया कि बहुत बड़ा इम्पैक्ट रखने लगी है। ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा इस तरह पहुंच गई, इसके पीछे आपकी क्या रणनीति थी।
जवाब: भाजपा पहले से ही ग्रामीण पार्टी थी। हमारे यहां आप यह बात कह सकते हैं, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हिमाचल में ग्रामीण पार्टी थी। यहां पर कुछ ऐसा बंटवारा हो गया था, डॉ. मंगल सेन प्रतिनिधित्व करते थे। हम हरियाणा में इस तरह से बढ़े कि अपनी सीट बढ़ाते गए। धीरे धीरे हम 100 प्रतिशत पर आ गए। अब ज्यादातर लीडरशिप गांव से आती है।

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