Importance of naming ceremony in scriptures: शास्त्रों में नामकरण संस्कार का महत्व

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 नाम में क्या रखा है? अपने नाटक में रोमंटिकता लाने के लिए शेक्सपियर ने ये बात लिख तो दी कि नाम में क्या रखा है लेकिन वे इस बात पर गौर करना भूल गये होंगे कि यदि उनका नाम नहीं होता तो उनकी कोई पहचान नहीं होती और वे इस दुनिया को सब कुछ देकर अमर होने की बजाय गुमनामी की मौत मरते। कोई नहीं जान पाता कि रोमियो जूलियट, जूलियस सीजर और ओथेलो जैसे प्रसिद्ध नाटकों को किसने लिखा। नाम व्यक्ति के लिए खास मायने रखता है। नाम अस्तित्व है, नाम पहचान है, परिचय है। इसलिए तो हर धर्म और देश में अलग-अलग रीति-रिवाजों से बच्चे का नाम रखा जाता है। नाम रखने की इस प्रक्रिया को नामकरण कहा जाता है। विशेषकर सनातन धर्म में नामकरण का बहुत महत्व है। आइये जानते हैं क्या होती है नामकरण की यह विधि और इस दिन कैसे की जाती है पूजा।
नामकरण की पूजा विधि
सनातन धर्म में शास्त्रानुसार बच्चे के जन्म के समय ग्रहों की दशा देखकर उसकी ेकुंडली बनाई जाती है। कुंडली अनुसार बच्चे की चंद्र राशि के आधार पर राशि के प्रथम अक्षर पर शिशु का नाम रखा जाता है। नामकरण संस्कार शिशु के जन्म के दसवें दिन या उसके बाद किसी शुभ मुहूर्त में किया जाता है। इस बीच परिजनों, मित्रों, शुभचिंतकों द्वारा बच्चे के लिए प्रदत अक्षर पर आधारित नाम के सुझाव लिए जाते हैं। इन्हीं नामों में से सबसे अच्छे नाम को चुन लिया जाता है। फिर नामकरण संस्कार के दिन घर में पूरे साफ-सफाई कर घर की सजावट की जाती है। शिशु को नहला कर नए वस्त्र पहनाये जाते हैं। बच्चे के माता-पिता नये वस्त्र धारण कर संस्कार में शामिल होते हैं।
नामकरण संस्कार के लिए छोटी पूजा की जाती है। इसके लिए माता-पिता शिशु को गोद में लेकर बैठते हैं। इसके बाद निर्धारित क्रम से मङ्गलाचरण, षट्कर्म, संकल्प, यज्ञोपवीत परिवर्तन, कलावा, तिलक एवं रक्षा-विधान तक का क्रम पूरा करके विशेष कर्मकांड प्रारम्भ किया जाता है। सिंचन के लिए तैयार कलश में मुख्य कलश का थोड़ा-सा जल या गंगाजल मिलाया जाता है। तत्पश्चात मंत्रोच्चारण के साथ बालक का संस्कार कराने वालों एवं उपकरणों पर सिंचन किया जाता है। इसके बाद संस्कार के लिए तैयार मेखला शिशु की कमर में बांधी जाती है। यह कटिबद्ध रहने का प्रतीक है। माना जाता है कि इससे शिशु में आलस्य नहीं रहता, वह चुस्त रहता है व कर्तव्यपरायण होता है। मधुर वाणी के लिए बच्चे को चांदी के चम्मच या अंगूठी आदि से बच्चे को शहद चटाया जाता है। इस तरह पंडित द्वारा विधि विधान से अन्य प्रक्रियाएं भी संपन्न कर माता-पिता से बच्चे के कान में उसके नाम का धीरे से उच्चारण करवाया जाता है। इस तरह नामकरण संस्कार की प्रक्रिया पूरी की जाती है।
नामकरण में इन बातों का रखें ध्यान
ाामकरण संस्कार घर में ही करवायें तो अच्छा होता है इसके अलावा, प्रज्ञा संस्थानों या यज्ञ स्थलों पर भी यह संस्कार कराया जाना उचित है। पूजा के लिए कलश पर रोली से ॐ, स्वस्तिक आदि शुभ चिह्न भी बनाएंं। शिशु की कमर में इस दिन सुतली या रेशम का धागा भी बांधा जाता है। नाम घोषणा में प्रयोग होने वाली थाली नई होनी चाहिए, जिसे नाम घोषणा के समय ही खोला जाये।
घर में सात्विक व्यंजनों का प्रयोग करें इससे भविष्य में बच्चे पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। पूजा के समय बच्चे को मां पास रखना अच्छा व शुभ माना जाता है। पारस्कर गृह्यसूत्र में जिखा है- दशम्यामुत्थाप्य पिता नाम करोति। कहीं-कहीं जन्म के दसवें दिन सृतिका का शुद्धिकरण यज्ञ द्वारा करा कर भी संस्कार संपन्न किया जाता है। कहीं-कहीं 100वें दिन या एक वर्ष बीत जाने के बाद नामकरण करने की विधि प्रचलित है। गोभिल गृह्यसूत्रकार के अनुसार-जननादृशरात्रे व्युष्टे शतरात्रे संवत्सरे वा नामधेयकरणम्। नामकरण संस्कार के संबंध में स्मृति-संग्रह में लिखा है।
आयुर्वर्चोअभिवृद्विश्च सिद्धिर्व्यवह्रतेस्तथा।
नामकर्मफलं त्वेतत् समुद्दिष्टं मनीषिभि:।।
अर्थात- नामकरण-संस्कार से आयु तथा तेज की वृद्धि होती है एवं लौकिक व्यवहार में नाम की प्रसिद्धि से व्यक्ति का अलग अस्तित्व बनता है। इस संस्कार में बच्चे को शहद चटाकर शालीनतापूर्वक मधुर भाषण कर, सूर्यदर्शन कराया जाता है और कामना की जाती है कि बच्चा सूर्य की प्रखरता-तेजस्विता धारण करे, इसके साथ ही भूमि को नमन कर देवसंस्कृति के प्रति श्रद्धापूर्वक समर्पण किया जाता है।
शिशु का नया नाम लेकर सबके द्वारा उसके चिरंजीवी, धर्मशील, स्वस्थ एवं समृद्ध होने की कामना की जाती है। पहले गुणप्रधान नाम द्वारा या महापुरूषों, भगवान आदि के नाम पर रखे नाम द्वारा यह प्रेरणा दी जाती थी कि शिशु जीवन भर उन्हीं की तरह बनने को प्रयत्नशील रहे। मनोवैज्ञानिक तथ्य यह है कि जिस तरह के नाम से व्यक्ति को पुकारा जाता है, उसे उसी प्रकार के गुणों की अनुभूति होती है। जब घटिया नाम से पुकारा जाएगा, तो व्यक्ति के मन में हीनता के ही भाव जागेंगे। अत: राम की सार्थकता को समझते हुए ऐसा ही नाम रखना चाहिए, जो शिशु को प्रोत्साहित करने वाला एवं गौरव अनुभव कराने वाला हो।

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