जानें रहस्य और मान्यताएं
Mahakaleshwar Bhasm Aarti, (आज समाज), नई दिल्ली: मध्य प्रदेश के उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर है। ये मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। ये मंदिर भारत के 12 ज्योतिलिंर्गों में से एक है। इस मंदिर की सबसे खास पहचान है, यहां होने वाली भस्म आरती। मंदिर में महाकाल की भस्म आरती की जाती है। ये आरती धार्मिक अनुष्ठान है। साथ ही भस्म आरती जीवन के सबसे बड़े और गहरे सत्य मृत्यु का प्रतीक भी मानी जाती है।
उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है, जहां भगवान शिव का अनूठा श्रृंगार किया जाता है। मंदिर में की जाने वाली भस्म आरती भगवान शिव को समर्पित की जाती है। माना जाता है कि भस्म आरती भगवान शिव को बहुत प्रिय है। ऐसे में आइए जानते हैं भस्म आरती का रहस्य और मान्यताएं।
भस्म चढ़ाने का रहस्य और मान्यताएं
वैराग्य और मृत्यु जीवन का अंतिम सत्य है। ये भस्म आरती का मूल संदेश है। भगवान शिव समय के नियंत्रक हैं। संसार की हर चीज नश्वर है और अंत में उसे राख हो जाना है। ये बात भस्म के माध्यम से दशार्यी जाती है। भगवान शिव स्वंय राख लगाते हैं और संदेश देते हैं कि भौतिक सुख-सुविधाएं क्षण भर की हैं। इनका नाश होना तय है, जबकि आत्मा अमर है।
भगवान को राख लगाने का अर्थ है कि उन्होंने मृत्यु पर विजय पा ली है, इसलिए उनको महाकाल भी कहा जाता है। भस्म आरती ब्रह्म मुहूर्त में की जाती है। ब्रह्म मुहूर्त में महाकाल अपने निराकार स्वरूप में होते हैं। जिसे महाकाल के इस स्वरूप का दर्शन मिलता है, उसे मृत्यु के बाद मोक्ष मिल जाता है। आरती के दर्शन से सभी नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियां समाप्त हो जाती हैं। सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है।
भस्म वैराग्य और त्याग का प्रतीक
यह आरती जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्ति दिलाती है। पहले महाकाल के शृंगार के लिए जो भस्म लाई जाती थी वो श्मशान घाट की राख होती थी। पंचतत्वों में विलीन हुए देह की राख को शिव को समर्पित किया जाता था, लेकिन अब गाय के गोबर और चंदन से बनी भस्म इस्तेमाल की जाती है। भस्म शुद्ध होती है। नकारात्मरक उर्जा दूर करती है। साथ ही यह वैराग्य और त्याग का भी प्रतीक मानी जाती है।
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