जानें इसके पीछे की पौराणिक कथाएं और महत्व
Suryadev Puja, (आज समाज), नई दिल्ली: हिंदू धर्म में सूर्य देव को प्रत्यक्ष देवता माना जाता है, यानी वह ईश्वर जिनका दर्शन हम प्रतिदिन कर सकते हैं. सूर्य न केवल इस सृष्टि को ऊर्जा देते हैं, बल्कि ज्योतिष और धार्मिक मान्यताओं में भी इनका स्थान सर्वोच्च है। सप्ताह का हर दिन किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित है, लेकिन रविवार का दिन विशेष रूप से भगवान भास्कर यानी सूर्य देव की उपासना के लिए निर्धारित है।
पर क्या आपने कभी सोचा है कि रविवार को ही सूर्य देव की पूजा क्यों की जाती है? इसके पीछे न सिर्फ ज्योतिषीय कारण हैं, बल्कि कई रोचक पौराणिक कथाएं और गहरा आध्यात्मिक महत्व भी छिपा हुआ है। आइए, इस विशेष दिन की महत्ता और इससे जुड़ी कथाओं के बारे में विस्तार से जानते हैं।
ज्योतिषीय और धार्मिक महत्व
सप्ताह के सातों दिनों का संबंध नौ ग्रहों से है। ज्योतिष शास्त्र में, रविवार का दिन सीधे तौर पर सूर्य ग्रह से जुड़ा हुआ है।
- ग्रहों के राजा: सूर्य को नवग्रहों का राजा और आत्मा का कारक माना जाता है। यह व्यक्ति के आत्मबल, आत्मविश्वास, सम्मान, स्वास्थ्य और नेतृत्व क्षमता को प्रभावित करता है।
- सूर्य को बल देना: कुंडली में सूर्य की स्थिति मजबूत होने पर व्यक्ति को मान-सम्मान, सफलता और आरोग्य प्राप्त होता है। रविवार के दिन इनकी पूजा करने से कुंडली में कमजोर सूर्य को बल मिलता है और सभी दोष (जैसे पितृ दोष, ग्रह दोष) शांत होते हैं।
- सात दिनों के फल की प्राप्ति: धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति किसी कारणवश प्रतिदिन सूर्य देव की पूजा नहीं कर पाता है, तो रविवार के दिन सच्चे मन से उनकी उपासना करने पर उसे सातों दिन की पूजा का फल प्राप्त होता है।
रविवार को सूर्य पूजा से जुड़ी पौराणिक कथाएं
एक पौराणिक कथा के अनुसार, जब यह सृष्टि आरंभ हुई, तब ब्रह्मा जी के मुख से सबसे पहले ॐ शब्द निकला। यह ॐ ही सूर्य का तेजरूपी सूक्ष्म रूप माना जाता है। इसके बाद ब्रह्मा जी के चारों मुखों से चार वेदों की उत्पत्ति हुई, जो इस ॐ के साथ एकाकार हो गए। इस वैदिक तेज को ही आदित्य (सूर्य) कहा गया, जो सृष्टि के अविनाशी कारण हैं।
चूंकि सूर्य का प्राकट्य सृष्टि के आरंभ में ही हुआ, और उन्होंने ही पूरे ब्रह्मांड को प्रकाश और ऊर्जा प्रदान की, इसलिए उन्हें पहला और सबसे महत्वपूर्ण देवता माना गया। सप्ताह में रविवार को पहला दिन माना जाता है, इसलिए यह दिन स्वत: ही सूर्य देव को समर्पित हो गया।
रविवार व्रत और वृद्धा की कथा
रविवार व्रत कथा के अनुसार, एक नगर में एक गरीब और बूढ़ी महिला रहती थी। वह नियमित रूप से रविवार का व्रत रखती थी और सूर्य देव को जल अर्पित करती थी। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने उसे एक गाय प्रदान की। उस गाय के गोबर से उसे सोना प्राप्त होता था, जिससे उस वृद्धा का घर धन-धान्य से संपन्न हो गया।
वृद्धा की समृद्धि देखकर उसकी पड़ोसन को ईर्ष्या हुई। पड़ोसन के बहकावे में आकर राजा ने वृद्धा की गाय छीन ली। राजा के महल में गाय के आते ही, गोबर की जगह पूरे महल में गंदगी फैल गई और दुर्गंध आने लगी। तब रात में सूर्य देव ने राजा को स्वप्न में दर्शन दिए और बताया कि यह गाय उस वृद्धा की है, जो उनकी परम भक्त है और नियमित रूप से रविवार का व्रत करती है।
राजा को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ। उसने तत्काल गाय को वृद्धा को लौटा दिया और अनेक उपहार देकर उसका सम्मान किया। उसी दिन से राजा ने पूरे नगर में रविवार का व्रत रखने और सूर्य देव की उपासना करने का आदेश दिया। इस कथा से यह मान्यता स्थापित हुई कि रविवार का व्रत और पूजा करने से दरिद्रता दूर होती है और सुख-समृद्धि आती है।
रविवार को कैसे करें सूर्य देव की पूजा?
- अर्घ्य देना: सूर्योदय के समय स्नान करके, तांबे के लोटे में जल, लाल चंदन, लाल फूल और अक्षत मिलाकर ॐ घृणि सूर्याय नम: मंत्र का जाप करते हुए सूर्य देव को अर्घ्य दें।
- आदित्य हृदय स्तोत्र: इस दिन ह्यआदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करना बहुत ही शुभ माना जाता है, जिससे सभी मनोकामनाएं जल्दी पूरी होती है।
- दान: इस दिन लाल वस्त्र, गुड़, गेहूं, तांबे के बर्तन आदि का दान करने से सूर्य देव प्रसन्न होते हैं।
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