भारत में, महिलाओं को काँच, सोने, चाँदी या अन्य सामग्रियों से बनी रंग-बिरंगी चूड़ियाँ पहने देखना आम बात है।
चूड़ियाँ सिर्फ़ एक आभूषण नहीं हैं - इनका गहरा सांस्कृतिक, पारंपरिक और वैज्ञानिक महत्व भी है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि महिलाएं इन्हें क्यों पहनती हैं? आइए जानें।
चूड़ियाँ महिलाओं के सोलह श्रृंगार का एक अनिवार्य हिस्सा मानी जाती हैं और इनका विवाह से गहरा संबंध है।
विवाहित महिलाओं के लिए, चूड़ियाँ प्रेम, समृद्धि और उनके पति की लंबी आयु का प्रतीक हैं। इन्हें सुंदरता और परंपरा का प्रतीक भी माना जाता है।
दिलचस्प बात यह है कि चूड़ियाँ पहनना सिर्फ़ परंपरा नहीं है - इसके कई वैज्ञानिक लाभ भी हैं।
कलाई पर चूड़ियों का गोलाकार आकार और हल्का सा घर्षण एक्यूप्रेशर बिंदुओं को सक्रिय करता है, जिससे स्वस्थ रक्त प्रवाह बनाए रखने में मदद मिलती है।
विज्ञान बताता है कि चूड़ियाँ मन को शांत करने और आँखों को आराम पहुँचाने में मदद कर सकती हैं।
सोने और चाँदी की चूड़ियाँ शरीर में सकारात्मक ऊर्जा बनाए रखने में मदद करती हैं, जबकि चूड़ियों के टकराने से उत्पन्न ध्वनि आसपास के वातावरण में सकारात्मकता फैलाती है।
हरी चूड़ियाँ शांति और शांत स्वभाव का प्रतिनिधित्व करती हैं। माना जाता है कि लाल चूड़ियाँ नकारात्मक ऊर्जा को दूर भगाती हैं और शक्ति प्रदान करती हैं।