सच्चा प्यार वही, जिसमें त्याग हो, Premanand Maharaj ने समझाया असली अर्थ

हम में से ज़्यादातर लोग ज़िंदगी में सच्चे प्यार की चाहत रखते हैं। लेकिन क्या सच्चा प्यार वाकई होता है? इसे समझने के लिए, आइए प्रेमानंद महाराज के शब्दों पर गौर करें।

उनके अनुसार, प्यार एक बहुत ही खास एहसास है, और इसका सार अधिकार में नहीं, बल्कि त्याग में है।

सच्चा प्यार पाने में नहीं, बल्कि देने में है। अगर आप जिससे प्यार करते हैं, वह आपके लिए वैसा महसूस नहीं करता, तब भी आपको उसकी खुशी के लिए खुश होना चाहिए।

आज की दुनिया में, सच्चा प्यार मिलना बेहद दुर्लभ हो गया है।

प्रेमानंद महाराज बताते हैं कि ईश्वर के प्रति प्रेम ही एकमात्र शाश्वत प्रेम है। ईश्वर का नाम जपने और स्मरण करने से ही सच्ची संतुष्टि मिल सकती है।

वह आगे कहते हैं कि जब आप गलतियाँ करते हैं, तब भी ईश्वर आपके साथ रहते हैं, क्योंकि ईश्वरीय प्रेम बिना किसी शर्त के होता है।

इसके विपरीत, सांसारिक प्रेम अक्सर गुणों पर निर्भर करता है—समाज केवल सद्गुणों से ही प्रेम करता है, जबकि दोषों से मुँह मोड़ लेता है।