Have respect for JNU, do not abuse: जेएनयू के प्रति श्रद्धा रखिए, गाली मत दीजिए

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जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय ‘जेएनयू’ में फीस बढ़ोतरी के खिलाफ अब भी आंदोलन जारी है। उस आंदोलन के खिलाफ भी एक नैरेटिव बनाकर अभियान चलाया जा रहा है। जेएनयू विरोधियों को यह समझना चाहिए कि वह अनमोल है। उसे गाली देना ठीक नहीं। हां, हर विषय के निगेटिव-पोजिटिव पक्ष होते हैं। हो सकता है कि जेएनयू में भी कुछ खामियां हों। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि जेएनयू की गुणवत्ता और वहां निकलने वाली प्रतिभाओं को सिरे से खारिज कर दिया जाए। वैसे जेएनयू का विरोध करना इन दिनों फैशन हो गया है। पढ़ने की बात छोड़ दें, कभी जेएनयू कैंपस नहीं जाने वाले अनपढ़, अर्धशिक्षित और मैट्रिक, इंटर फेल भी इन दिनों जेएनयू जैसे अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय के खिलाफ नफरत भरा अभियान चला रहे हैं। इसे देशद्रोही संस्था और ना जाने क्या-क्या घोषित कर रहे हैं। जेएनयू विरोधियों को यह संदेश देना चाहता हूं कि उसके प्रति नफरत मत फैलाइए। जेएनयू को समझिए। जेएनयू के प्रति सकारात्मक धारणा को मजबूत कीजिए। जेएनयू भारत ही नहीं, दुनिया की बेहतरीन यूनिवर्सिटी में से एक है। ये सिर्फ मेरा ही नहीं, मोदी सरकार का भी यही मानना है। इस यूनिवर्सिटी ने देश-दुनिया को हजारों रिसर्च स्कोलर, आइएएस, आइपीएस, आइएफएस, लेखक, पत्रकार, प्रोफेसर, ब्यूरोक्रेट्स, नेता, मंत्री, थिंक टैंक दिए हैं और दे रहे हैं। वर्तमान में मोदी सरकार भी जेएनयू के थिंक टैंक की सलाह से ही चल रही है। अगर विश्वास नहीं हो तो जरा मोदी सरकार में जेएनयू की स्थिति जान लें या पता कर लें।
जेएनयू विरोधियों को जानकर हैरानी होगी कि मोदी सरकार को चलाने वालों में ज्यादातर लोग जेएनयू के ही पास आउट हैं। सबसे अहम मोदी सरकार की विदेश नीति तय करने वाले विदेश मंत्री एस जयशंकर जेएनयू के पास आउट हैं। इस सरकार की बेहद शक्तिशाली वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जेएनयू से हैं। पूर्व मंत्री सांसद नेहरू-गांधी परिवार की बहू और बीजेपी की नेता मेनका गांधी जेएनयू से ही शिक्षा ग्रहण कर चुकी हैं। भाजपा के ढेर सारे शीर्ष नीति निर्माता जेएनयू से हैं और मोदी समर्थक जेएनयू को गाली दे रहे हैं, जेएनयू को देशद्रोही साबित कर रहे हैं। स्वामी विवेकानंद फॉउंडेशन जिसे बीजेपी-आरएसएस का थिंक टैंक माना जाता है, जिसके पहले अध्यक्ष अजित डोभाल थे, उसके वर्तमान अध्यक्ष जेएनयू के पूर्व छात्र अरविंद गुप्ता हैं जो इससे पहले भारत सरकार के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी थे। जेएनयू को पानी पी पी कर गाली देने वालों को पता होना चाहिए कि पूर्व में देश के राष्ट्रपति जेएनयू को भारत के बेस्ट यूनिवर्सिटी का विशेष अवार्ड भी दे चुके हैं। मौजूदा उप राष्ट्रपति वैंकेया नायडू जी ने तो जेएनयू को एक्सीलेंस का पर्याय बताया है। भारत सरकार ही लगातार इसे सर्वश्रेष्ठ यूनिवर्सिटीज में कभी पहले, कभी दूसरे तो कभी तीसरे स्थान पर रखती है। फिर भी कुछ लोग जेएनयू को घटिया, कूड़ा, राष्ट्रद्रोही साबित करने पर तुले हैं। क्योकि अंध विरोधियों को देश के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और मानव संसाधन मंत्रालय पर भरोसा नहीं है।
जेएनयू और इसके मूल्यों को गाली देने वाले जेएनयू के छात्र रहे आईएएस दीपक रावत, आईपीएस मनु महाराज के वीडियो शेयर करते हैं, मगर जेएनयू को देशद्रोही बताते हैं। जेएनयू को देशद्रोह का केंद्र बताते हैं, मगर उन्हें नहीं पता कि नक्सल से लड़ने वाली आईपीएस संजुक्ता पाराशर, देश के किसी भी राज्य के सीएम की पहली महिला सुरक्षा अधिकारी आईपीएस (असम मुख्यमंत्री के) सुभाषिनी शंकर जेएनयू की छात्रा रह चुकी हैं। देश में राजनैतिक भ्रष्टाचार और आतंकवाद के खिलाफ आजादी के बाद की सबसे बड़ी और कामयाब लड़ाई जेएनयू  में पढ़े पत्रकार  विनीत नारायण ने  1993 से   2000 तक अकेले लड़ी थी । मगर, विरोधियों को फुरसत नही कि देश जोड़ने वाले और राष्ट्र निर्माण में जेएनयू के योगदान के बारे में जानें। जेएनयू विरोधी आंखें खोलो और किसी आइएएस अधिकारी से पता करो कि आईएएस प्रशिक्षण अकादमीए मसूरी से ‘मास्टर इन पब्लिक मैनेजमेंट’ की डिग्री उन्हें कौन प्रदान करता है। आपको बता दें कि देश के सारे आईएएस अधिकारियों को ये डिग्री जेएनयू से मिलती है। देश के तमाम सैन्य अधिकारियों ‘एनडीए पासआउट’ से पूछो कि उन्हें देश की रक्षा करने की डिग्री कौन देता है। सेना के अफसरों को राष्ट्रीय रक्षा अकादमी की डिग्री भी जेएनयू से ही मिलता है, जिसके बाद ही वे भारतीय सेना के शीर्ष अधिकारी तक बनते हैं।
देश की सर्वोच्च नीति निर्माण संस्था नीति आयोग जो कि पूरे देश के लिए योजना निर्माण में सबसे बड़ी संस्था हैं उसके सीईओ प्रधानमंत्री मोदी के सबसे प्रिय अधिकारियों में से एक अमिताभ कांत जी कहां से पढ़कर यहां तक पहुंचे हैं। अमिताभ कांत ने नीति निर्माण का ज्ञान जेएनयू से ही लिया था। जो आदमी समूचे देश के लिए नीति बना रहा है वह भी जेएनयू से है पर कुछ लोग जेएनयू को आतंकवादियों का अड्डा ही बता रहे हैं। एक बात जानकर तो जेएनयू विरोधियों को बेहद दुखद होगा कि आतंकी कसाब को फांसी दिलाने वाले चले अभियान ‘आॅपरेशन एक्स’ के प्रणेता और महाराष्ट्र के पूर्व एडिशनल चीफ सचिव अमिताभ राजन के बारे में। अमिताभ राजन ने जेएनयू से ही सोशियोलॉजी में पीएचडी की है। उनके बारे में बात नहीं कर आप अफजल गुरु गैंग के समर्थकों पर ही फोकस करेंगे। क्योंकि आपको तो सिर्फ विरोध करना है। इसलिए आपको अमिताभ राजन नहीं दिखेंगे। इस समय मोदी सरकार द्वारा नियुक्त नीदरलैंड के राजदूत वेणु राजमोनी, कोमोरोस के राजदूत अभय कुमार समेत 15 से ऊपर देशों के राजदूतए उच्च इंवॉय जेएनयू से हैं। मगर विरोधियों को जेएनयू देशद्रोह का केंद्र वेश्यालय और ना जाने क्या क्या दिखता है।
हाल ही में नोबेल जैसे दुनिया के अतिप्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त करने वाले भारतीय अभिजीत बनर्जी भी जेएनयू से थे। पर विरोधी अभिजीत बनर्जी में भी देशद्रोह का अंश खोज रहे हैं। वर्ल्ड बैंक के आर्थिक विशेषज्ञ रंजीत नायक, नाबार्ड के पूर्व निर्देशक, आरबीआई के पूर्व डिप्टी डायरेक्टर हारून रशीद खान जैसे आर्थिक विशेषज्ञों के बारे में विरोधी बात नहीं करेंगे। इतिहासए समाज विज्ञान, भाषा, साहित्य संस्कृति, विदेश नीति के ढेर सारे लेखक एवं विशेषज्ञ जिनकी किताबें न सिर्फ भारत के विश्वविद्यालयों में बल्कि यूपीएससी की परीक्षाओं के लिए भी पढ़े जाते हैं। जेएनयू से पढ़े हैं। इतनी उपलब्धियों के बावजूद विरोधियों के लिए जेएनयू देशद्रोह, आतंकवाद, अश्लीलता का अड्डा है। वहां के विद्यार्थी पढ़ाई छोड़ कर सब करते हैं, पर विडम्बना देखिए कि वर्तमान मोदी सरकार के अनुसार ही यह देश के सर्वश्रेष्ठ यूनिवर्सिटीज में से है। साथ ही, यह भी कहना चाहता हूं कि स्वामी विवेकानंद जी की मूर्ति का अपमान करने वालों, देश विरोधी नारे लगाने वालों पर कठोर कारवाई जरूरी है। किसी भी शिक्षिका या महिला पत्रकार के साथ दुर्व्यवहार करने वालों पर भी कठोर कारवाई की जरूरत है, ऐसे लोगो को चिन्हित कर एक्शन लेने की आवश्यकता है। घाव होता है तो आप उस अंग को काट कर फेंक नहीं देते हैंए इलाज कराते हैं। जो भी छात्र देश विरोध में संलिप्त पाए जाएं, राष्ट्र विरोधी नारे लगा रहे हों उनके खिलाफ कठोर कारवाई हो क्योंकि श्राष्ट्र प्रथम की अवधारणा जरूरी है। लेकिन जेएनयू के खिलाफ अनाप-शनाप आरोप लगाकर एक प्रतिष्ठित संस्था की छवि को धूमिल करना ठीक नहीं है।

राजीव रंजन तिवारी
(लेखक आज समाज के समाचार संपादक हैं।)
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