पेगासस जासूसी : रिपोर्ट सही तो आरोप गंभीर, मामले की पहली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने की टिप्पणी 

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नई दिल्ली। पेगासस जासूसी मामले में सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को पहली बार सुनवाई हुई। प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एन वी रमण ने इस दौरान मामले में दायर विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि अगर रिपोर्टें सही हैं तो आरोप में सच में गंभीर हैं। गौरतलब है कि याचिकाकर्ताओं ने इस मामले की स्वतंत्र जांच करने का अनुरोध किया है। एडिटर्स गिल्ड आॅफ इंडिया, वरिष्ठ पत्रकार एन राम और शशि कुमार की तरफ से कोर्ट में वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल पेश हुए। सीजेआई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने कपिल सिब्बल सुनवाई की शुरुआत में कुछ सवाल पूछे। इस दौरान कपिल सिब्बल ने भी मामले को गंभीर बताया और सीजेआई से इस पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी करने का अनुरोध किया। सीजेआई ने अपने सवाल में सिब्बल से कहा, सारी चीजों पर जाने से पहले हमारे कुछ सवाल हैं। उन्होंने कहा, इसमें कोई अंदेशा नहीं कि अगर रिपोर्ट सही है तो आरोप गंभीर हैं। सीजेआई ने यह कहकर देरी का मुद्दा उठाया कि मामला 2019 में सामने आया था। उन्होंने कहा कि जासूसी की रिपोर्ट 2019 में सामने आई थी और मुझे नहीं पता कि क्या इस संबंध में ज्यादा जानकारी हासिल करने के लिए कोई कोशिश की गई थीं। सीजेआई ने कहा, वह यह नहीं कहना चाहते थे कि यह एक रुकावट थी। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि वह हर  मामले के तथ्यों में नहीं जा रहे हैं और अगर कुछ लोगों का दावा है कि उनके फोन को इंटरसेप्ट किया गया था तो टेलीग्राफ अधिनियम है जिसके तहत शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। कपिल सिब्बल ने कहा कि मैं समझ सकता हूं। उन्होंने कहा, इस मामले में कई सामग्रियों तक हमारी पहुंच नहीं है। उन्होंने मैं चाहता हूं कि पेगासस जैसे गंभीर मामले में शीर्ष अदालत भारत सरकार को नोटिस जारी करें। सुप्रीम कोर्ट ने सभी याचिकाकर्ताओं से कहा कि वे अपनी याचिका की प्रति केंद्र को दें। अब इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को करेगा।
याचिकाकर्ताओं में राजनेता व पत्रकार शामिल 
मामले में दायर विभिन्न याचिकाकर्ताओं में एडिटर्स गिल्ड आॅफ इंडिया, राजनेता, एक्टिविस्ट, और वरिष्ठ पत्रकार एन. राम व शशि कुमार शामिल हैं। सभी पेगासस जासूसी मामले की कोर्ट की निगरानी में एसआईटी से जांच की मांग की है।
हमारी निजता व मूल्यों पर हमला हुआ : सिब्बल 
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सुनवाई के दौरान कहा कि यह स्पाइवेयर  निजी संस्थाओं को नहीं बेचा जा सकता है। यह केवल सरकारी एजेंसियों को बेचा जाता है। उन्होंने कहा कि  एनएसओ प्रौद्योगिकी अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में शामिल है। वरिष्ठ वकील ने कहा कि पेगासस एक खतरनाक तकनीक है जो हमारी जानकारी के बिना हमारे जीवन में प्रवेश करती है। इसके चलते हमारे गणतंत्र की निजता, गरिमा और मूल्यों पर हमला हुआ है। उन्होंने कहा, संवैधानिक प्राधिकरण, पत्रकार, शिक्षाविद व अदालत के अधिकारी सभी स्पाइवेयर से प्रभावित हैं और सरकार को जवाब देना है कि इसे किसने खरीदा? हार्डवेयर कहां रखा गया था? सरकार ने प्राथमिकी दर्ज क्यों नहीं की?
मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा
याचिकाओं में कहा गया है कि सैन्य-श्रेणी के स्पाइवेयर का उपयोग करके बड़े पैमाने पर जासूसी की जा रही है और इससे लोगों के कई मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है। यह एक तरह से  स्वतंत्र संस्थानों में घुसपैठ, हमला और अस्थिर करने के प्रयास हैं, इसलिए इसपर जल्द किए जाने की सुनवाई की जरूरत है। याचिका में यह भी कहा गया है कि यदि सरकार या उसकी किसी भी एजेंसी ने पेगासस स्पाइवेयर का लाइसेंस लिया और किसी भी तरह से इसका इस्तेमाल किया तो केंद्र को इस पर जांच के माध्यम से खुलासा करने का निर्देश दिया जाए।
मामला बेहद गंभीर 
शिक्षाविद् जगदीप छोडकर की ओर से पेश वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने कहा, यह मामला बहुत गंभीर है। उन्होंने कोर्ट से मामले में स्वतंत्र जांच करने पर विचार करने की कोर्ट से अपील की। पत्रकारों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दत्तर ने नागरिकों की गोपनीयता और व्यक्तिगत गोपनीयता पर विचार किए जाने की सुप्रीम कोर्ट से अपील की। गिल्ड ने अपनी अर्जी, जिसमें वरिष्ठ पत्रकार मृणाल पांडे भी याचिकाकर्ता हैं, में कहा है कि उसके सदस्य और सभी पत्रकारों का काम है कि वे सूचना और स्पष्टीकरण मांग कर और राज्य की कामयाबी और नाकामियों का लगातार विश्लेषण करके सरकार के सभी अंगों को जवाबदेह बनाएं।
यह है मामला 
बता दें कि मीडिया संस्थानों के अंतरराष्ट्रीय संगठन ने खुलासा किया है कि केवल सरकारी एजेंसियों को ही बेचे जाने वाले इजराइल के जासूसी साफ्टवेयर के जरिए भारतीयों के 300 से अधिक मोबाइल नंबर हैक किए गए हैं। जिनके नंबर हैक किए गए हैं उनमें भारत के दो केन्द्रीय मंत्री, 40 से अधिक पत्रकार, विपक्ष के तीन नेता और एक न्यायाधीश सहित बड़ी संख्या में कारोबारी व अधिकार कार्यकर्ता शामिल हैं। सरकार ने हालांकि अपने स्तर पर खास लोगों की निगरानी संबंधी आरोपों को खारिज किया है। केंद्र कहा है कि इसका कोई ठोस आधार नहीं है या इससे जुड़ी कोई सच्चाई नहीं है।
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