तालिबान का खौफ, अमेरिका विमान में भरे 640 से अधिक अफगान नागरिक

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काबुल। अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद वहां के लोग इतने सहमे हुए हैं कि वे जैसे-तैसे देश छोड़कर भागना चाहते हैं। एयरपोर्ट पर विमान में सवार होने के लिए भीड़ इस तरह जुट रही है जैसे कोई बस स्टेशन हो या रेलवे स्टेशन का अनारक्षित डब्बा। यही नहीं, अफगानिस्तान में रह रहे दूसरें देशों के लोग भी किसी भी कीमत पर स्वदेश लौटना चाहते हैं। इसका मुख्य कारण है कि सभी को तालिबान से अपनी जान व कड़े कानूनों का डर है। अफगानिस्तान के लोगों में तालिबान के खौफ की एक तस्वीर देखकर साफ पता चल रहा है कि किस तरह वे डरे सहमे हैं। मंगलवार को देखा गया कि किस तरह अमेरिकी वायुसेना के विमान में कतर जाने वाले 640 से अधिक लोगों का हुजूम सवार हो गया है। यह तस्वीकर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही थी। लोगों में डर इतना है कि वे विमान के फर्श पर बैठकर जाने को तैयार हैं। कर्मचारियों के लिए यात्रियों को गिनना मुश्किल हो रहा था। लोगों के बीच इंच भर की जगह नहीं थी। इस बीच सी-17 विमान के एक रक्षा अधिकारी ने कहा, हम इतना ओवरलोड लेकर उड़ान नहीं भरना चाहते थे, लेकिन घबराए हुए अफगानिस्तानी नागरिक मानने को तैयार नहीं थे और जबरदस्ती विमान में सवार हो गए। उन्होंने बताया कि उन शरणार्थियों को विमान से उतारने की कोशिश करने के बजाय चालक दल ने उन्हें ले जाने का फैसला किया। रक्षा अधिकारी ने कहा, लगभग 640 अफगान नागरिक अपने गंतव्य पर सुरक्षित पहुंच गए। हैं। इसी सप्ताह सोमवार को भी काबुल एयरपोर्ट पर उस समय एक भयावह दृश्य  देखने को मिला था, जब उड़ान भरते समय अमेरिकी वायुसेना के विमान के टायरों के ऊपर बनी जगह पर कुछ लोग सवार हो गए थे। बाद में विमान जब ऊंचाई पर पहुंच गया तो लोगों ने संतुलन खो दिया और तीन की आसमान से गिरकर मौत हो गई। तालिबान में हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि 60 देशों ने तालिबान से गुहार लगाई है कि जो नागरिक अफगानिस्तान में नहीं रहना चाहते, उन्हें देश छोड़कर जाने दिया जाए।
120 भारतीयों को लेकर वतन लौटा विमान

नई दिल्ली। काबुल स्थित दूतावास को फिलहाल बंद कर अपने सभी कर्मचारियों को वतन वापस बुला लिया है। अफगानिस्तान की राजधानी काबुल से 120 से अधिक यात्रियों को लेकर भारतीय वायुसेना का विमान सी-17 ग्लोबमास्टर विमान मंगलवार को पहले गुजरात के जामनगर में लैंड हुआ और फिर यह दिल्ली पहुंचा। सोमवार को भी राजनयिकों और सुरक्षा कर्मियों सहित करीब 40 लोग को दिल्ली पहुंचे।  विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने ट्वीट किया, ‘मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए यह फैसला किया गया है कि काबुल में हमारे राजदूत और सभी भारतीय कर्मचारी तुरंत भारत आएंगे। बता दें कि राजदूत रुद्रेंद्र टंडन ने पिछले साल अगस्त में काबुल में अपना कार्यभार संभाला था।
उत्तराखंड के 80 पूर्व सैनिक लाए जाएंगे वापस
देहरादून। अफगानिस्तान में अलग-अलग दूतावासों में सिक्योरिटी की नौकरी कर रहे उत्तराखंड के 80 पूर्व सैनिकों वापस लाने की कोशिश की जा रही है। उन्हें उनकी एजेंसी अलग-अलग फ्लाइटों से वापस ला रही है। एजेंसी के मुताबिक सभी लोग दोहा, कतर और यूके पहुंच गए हैं।  विदेश में सिक्योरिटी गार्ड आदि की नौकरी दिलाने के लिए सुमध गुरुंग एफएसआई नाम से सिक्योरिटी एजेंसी चलाते हैं। उन्होंने बताया कि उनकी एजेंसी के जरिए देश के करीब 150 पूर्व सैनिक अफगानिस्तान में अलग-अलग स्थानों पर सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि इनमें करीब 80 उत्तराखंड से हैं। वह सभी कर्मचारियों के संपर्क में हैं।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अमेरिका से की बात 
नई दिल्ली। भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अफगानिस्तान से भारतीयों को निकालने में अमेरिकी सहायता लेने के लिए अमेरिकी विदेश मंत्री से मंगलवार को न्यूयॉर्क में चर्चा की। अमेरिकी विदेश मंत्री ने जयशंकर को नागरिक उड़ानों के माध्यम से भविष्य में निकासी में पूर्ण समर्थन का आश्वासन दिया। जयशंकर  ने इसके बाद ट्वीट कर कहा, एंटनी ब्लिंकेन के साथ अफगानिस्तान की हालिया घटनाओं पर चर्चा की. काबुल में हवाई अड्डे के संचालन को बहाल करने की तात्कालिकता को रेखांकित किया. मैं इस संबंध में चल रहे अमेरिकी प्रयासों की गहराई से सराहना करता हूं। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने बताया कि दोनों शीर्ष राजनयिकों ने अफगानिस्तान संबंधी हालात पर चर्चा की।
भारत के पास ये हैं विकल्प 
नई दिल्ली। तालिबान के कब्जे के बाद  अफगानिस्तान सरकार का समर्थक भारत अब अफगानिस्तान में खुद को फंसा हुआ देखा रहा है।  सवाल यह है कि अफगानिस्तान पर तालिबान पर कब्जे के बाद भारत क्या करे? भारत का अफगानिस्तान में क्या भविष्य है? क्या भारत तालिबान सरकार को मान्यता देकर उनके साथ काम करेगा? इन सवालों के जवाब आसान नहीं है। डिफेंस एनालिस्ट, इंटरनेशनल रिलेशंस एक्सपर्ट्स और जियोपॉलिटिकल एक्सपर्ट्स के पास भी इसका कोई साफ सीधा जवाब नहीं है। उनका मानना है कि भारत के पास मुख्य तौर पर दो रास्ते हैं। पहला तो यह कि तालिबान के आने के बाद भारत अफगानिस्तान से निकल जाए। ऐसा होने से ये होगा कि भारत द्वारा अफगानिस्तान में किए गए दशकों के काम कुछ ही दिन में खत्म हो सकते हैं। दूसरा विकल्प यह कि भारत तालिबान से बात करे तो उसके साथ डील करते हुए काम करे। लेकिन यह ज्यादा मुश्किल भरा है, क्योंकि भारत सरकार अब तक अफगानिस्तान सरकार का समर्थन करती आई है। और अफगानिस्तान सरकार को ही अफगानों का प्रतिनिधि मानती रही है। एक्सपर्ट्स के अनुसार बीच का एक ही रास्ता है कि भारत को तालिबान से बातचीत शुरू करने की कोशिश करनी चाहिए और अफगानिस्तान में जारी विकास कामों को पूरा करना चाहिए। भले यह धीमे हो या सांकेतिक स्तर पर ही क्यों न हो। लेकिन एक ओर भारत यूनाइटेड नेशंस में अफगानिस्तान के भविष्य और तालिबान पर प्रतिबंधों को लेकर बात कर रहा और दूसरी ओर तालिबान शासन से समझौता भारत के लिए बेहद मुश्किल होगा।
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