गणपति की पूजा करने से दुख, संकट और बाधाएं होती हैं दूर
Sankashti Chaturthi, (आज समाज), नई दिल्ली: मार्गशीर्ष माह में आने वाली यह संकष्टी चतुर्थी ‘गणाधिप संकष्टी चतुर्थी’ के नाम से जानी जाती है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और विधि-विधान से गणपति की पूजा करने से जीवन के सभी दुख, संकट और बाधाएं दूर होती हैं। साथ ही, सुख, सौभाग्य और धन की वृद्धि होती है। इस व्रत का समापन चंद्र दर्शन के बाद ही होता है, इसलिए यह बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है।
यह व्रत हर महीने की कृष्ण पक्ष चतुर्थी को रखा जाता है, लेकिन जब यह दिन शनिवार या मंगलवार को पड़ता है, तो इसे अंगारकी संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन विधिवत रूप से गणपति बप्पा की पूजा करने से सभी संकट दूर होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। पंचांग के अनुसार, साल 2025 में गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का व्रत 8 नवंबर 2025, शनिवार को रखा जाएगा।
संकष्टी चतुर्थी की पूजा विधि
सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें। हाथ में जल, चावल और फूल लेकर व्रत का संकल्प लें।भगवान गणेश की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। उन्हें रोली, अक्षत, दूर्वा, लाल फूल और जनेऊ अर्पित करें। गणपति को मोदक या तिल के लड्डू का भोग लगाएं, क्योंकि तिल इस व्रत में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।
धूप-दीप जलाकर ह्यॐ गं गणपतये नम: मंत्र का जाप करें और गणाधिप संकष्टी चतुर्थी की कथा पढ़ें। शाम को चंद्रोदय होने पर चंद्रमा को जल, दूध, चंदन और अक्षत मिलाकर अर्घ्य दें। चंद्र दर्शन और अर्घ्य के बाद सात्विक भोजन या फलाहार ग्रहण करके व्रत का पारण करें।
क्यों है चंद्र दर्शन का विशेष महत्व?
संकष्टी चतुर्थी का व्रत सूर्योदय से शुरू होता है और चंद्र दर्शन के बाद ही पूर्ण माना जाता है। इस व्रत में चंद्रमा की पूजा और अर्घ्य का विशेष विधान है।
- व्रत का पारण: संकष्टी चतुर्थी का व्रत तब तक पूर्ण नहीं होता जब तक व्रती चंद्रमा के दर्शन न कर ले और उन्हें अर्घ्य न दे दे। चंद्र दर्शन के बाद ही व्रत का पारण (तोड़ा) जाता है।
- चंद्र दोष की समाप्ति: ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार, जो लोग चंद्र दोष से पीड़ित होते हैं, उन्हें इस दिन चंद्रमा को अर्घ्य देने से चंद्र दोष दूर करने में मदद मिलती है।
- शुभ फल की प्राप्ति: चंद्रमा को अर्घ्य देने से व्रत का संपूर्ण फल प्राप्त होता है और मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का धार्मिक महत्व
माना जाता है कि संकष्टी चतुर्थी पर भगवान गणेश के गणाधिप स्वरूप की पूजा की जाती है, जो गणों के अधिपति हैं। इस दिन व्रत रखने से भक्तों के सभी संकट (कष्ट) दूर होते हैं और जीवन में सुख-शांति का वास होता है।
इसीलिए इसे संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। यह व्रत विशेष रूप से माताओं द्वारा अपनी संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है। भगवान गणेश को बुद्धि, ज्ञान और विवेक का देवता माना जाता है। उनकी आराधना से बुद्धि में वृद्धि होती है और हर कार्य में सफलता मिलती है।