गीता का पाठ करने से मन को मिलती है शांति
Pitru Paksha Upaay, (आज समाज), नई दिल्ली: गीता को हिंदू धर्म गंथों में पवित्र माना गया है। गीता का पाठ करने से मन को शांति मिलती है। गीता के 18वें अध्याय को पढ़ने से विपत्ति से छुटकारा और ग्रहों के प्रभाव होने वाले नुकसान से बचने का लाभ भी मिलता है। यूं तो गीता को कभी भी पढ़ा जा सकता है लेकिन पितृ पक्ष में गीता का पाठ करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है, इसलिए पितृ पक्ष में गीता का विशेष महत्व बताया गया है।

कई लोग पितृदोष से भी ग्रसित होते हैं और इसके कई लक्षण भी उन्हें दिखाई देते हैं, जैसे कि परिवार में आकस्मिक निधन या दुर्घटना होना, लंबे समय तक बीमारी का बने रहना, परिवार में विकलांग बच्चे का जन्म होना, बच्चों द्वारा असम्मान व प्रताड़ना का व्यवहार करना, गर्भ धारण न होना, झगड़ा होना इत्यादि। गीता के सातवें अध्याय में इसका महत्व बताया गया है। भागवत गीता के पाठ से भी पितृ दोष से मुक्ति पाई जा सकती है।

सातवें अध्याय के 30 श्लोकों का कराए पाठ

अगर आप भी पितृपक्ष के दौरान पितृ दोष से मुक्ति पाना चाहते हैं तो धार्मिक ग्रंथ श्रीमद्भागवत गीता के मुताबिक पितृपक्ष में पितृदोष से मुक्ति के लिए यथा शक्ति ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए। इसके अलावा ब्राह्मण से श्रीमद्भागवत गीता के सातवें अध्याय में वर्णित सभी 30 श्लोकों का पाठ कराना चाहिए। इससे पितृ प्रेत योनि से मुक्त होते हैं और पितृदोष भी समाप्त होता है।

प्रेत योनि से मुक्त होते हैं पितृ

गीता के सातवें अध्याय में पितरों के बारे में बताया गया है, इस अध्याय के पाठ से भी पितृ दोष से मुक्ति पाई जा सकती है। गीता का 7वां अध्याय पितृ मुक्ति और मोक्ष से जुड़ा है। इस अध्याय के पाठ से पितृ प्रेत योनि से मुक्त होते हैं और पितृदोष भी समाप्त होता है।

इन चीजों का भी करें दान

हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, अगर यह श्राद्ध पितृ पक्ष की लगन में किया जाए, तो इस श्राद्ध का फल कई गुना तक बढ़ जाता है। विभिन्न देवताओं, ऋषियों तथा पितृ देवों को तिल मिश्रित जल अर्पित करने की क्रिया ही तर्पण कहलाती है और तर्पण करना ही पिंडदान करना कहलाता है। पिंडदान में पिंड बनाकर भी दान किया जाता है।

पुराणों की माने, तो सबसे बड़ा पुत्र अपने पिता तथा अन्य पूर्वजों का श्राद्ध तथा पिंडदान कर सकता है। यदि बड़ा पुत्र न हो, तो फिर छोटा पुत्र भी इस विधि को कर सकता है। पितृपक्ष के दौरान निम्न 10 वस्तुओं का दान महत्वपूर्ण है, जिसमें गाय, भूमि, वस्त्र, काला तिल, सोना, घी, गुड़, धान, चाँदी, नमक, इन वस्तुओं का दान आता है।

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