भगवान शिव हो सकते है रुष्ट
Shukra Pradosh Vrat, (आज समाज), नई दिल्ली: हिंदू मान्यता के अनुसार जब त्रयोदशी तिथि शुक्रवार के दिन पड़ती है तो उस दिन पड़ने वाला व्रत शुक्र प्रदोष व्रत कहलाता है। इस दिन विधि-विधान से पूजा करने पर साधक को शिव-पार्वती के साथ शुक्र देवता का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है। शुक्र देवता की कृपा से साधक सुखी जीवन जीता है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को रखने से जीवन में सुख-समृद्धि और सौभाग्य का वरदान मिलता है।

इस साल यह उपवास कल यानी 5 सितंबर को रखा जा रहा है। इस दिन भक्त भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करते हैं और उपवास रखते हैं। वहीं, कुछ साधक पूजा में कई सारी ऐसी गलतियां कर देते हैं, जिसे करने से बचना चाहिए, तो आइए इस आर्टिकल में जानते हैं कि शिवलिंग पर क्या नहीं चढ़ाना चाहिए?

तुलसी के पत्ते: भगवान शिव की पूजा में तुलसी के पत्तों का प्रयोग वर्जित माना गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, तुलसी का विवाह जालंधर नामक राक्षस से हुआ था, जिसका वध भगवान शिव ने किया था। इसलिए भगवान शिव की पूजा में तुलसी का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

  • हल्दी: हल्दी को स्त्री सौंदर्य का प्रतीक माना जाता है और यह मां पार्वती से संबंधित है। इसलिए भगवान शिव की पूजा में हल्दी का प्रयोग नहीं किया जाता है।
  • सिंदूर: सिंदूर को भी सौभाग्य और स्त्री शृंगार का प्रतीक माना गया है। महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए सिंदूर लगाती हैं, जबकि भगवान शिव को संहारक माना जाता है। इसलिए शिवलिंग पर सिंदूर नहीं चढ़ाया जाता है।
  • शंख से जल: भगवान शिव ने शंखचूड़ नामक राक्षस का वध किया था, जो शंख का प्रतीक था। इसलिए शिवलिंग पर शंख से जल चढ़ाना वर्जित माना गया है।
  • केतकी के फूल: भगवान शिव ने केतकी के फूल को श्राप दिया था। इसलिए शिवलिंग पर केतकी का फूल भी नहीं चढ़ाना चाहिए।
  • टूटे हुए चावल: पूजा में हमेशा साबुत चावल का ही इस्तेमाल करें। टूटे हुए चावल अपूर्णता का प्रतीक होते हैं, इसलिए उन्हें भगवान को नहीं चढ़ाने चाहिए।

प्रदोष व्रत की पूजा विधि

शुक्र प्रदोष व्रत के दिन सुबह स्नान करके साफ कपड़े पहनें। प्रदोष काल में भगवान शिव और माता पार्वती की विधिवत पूजा करें। शिव जी को बिल्व पत्र, धतूरा, भांग, दूध, दही, शहद, घी और जल अर्पित करें। पूजा करते समय ॐ नम: शिवाय मंत्र का जाप करें। पूजा के बाद प्रदोष व्रत कथा पढ़ें और आरती से पूजा पूर्ण करें।

पूजा का मुहूर्त

भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 5 सितंबर को सुबह 4 बजकर 8 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 6 सितंबर को सुबह 3 बजकर 12 मिनट पर इसका समापन होगा। इस दिन प्रदोष काल में पूजा का मुहूर्त शाम 6.38 से रात 8.55 तक रहेगा।

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