नहाय-खाय से लेकर पारण तक, जानें चार दिनों के महापर्व छठ पूजा की पूरी विधि
Chhath Puja, (आज समाज), नई दिल्ली: छठ पर्व मुख्य रूप से भारत के बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ हिस्सों में बड़े श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाने वाला एक अत्यंत महत्वपूर्ण त्योहार है। लेकिन अब यह पूरे भारत में पूरे हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देव और छठी मैया की पूजा के लिए समर्पित है और कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि (नहाय-खाय) से शुरू होकर चार दिन तक चलता है।

चारों दिनों में व्रती नहाय-खाय, खरना, संध्या अर्घ्य और उदय अर्घ्य की विधि का पालन करते हैं, जो उन्हें अनुशासन, संयम और भक्ति की शिक्षा देती है। यह पर्व शरीर और मन की शुद्धि तथा परिवार और समाज में प्रेम, सहयोग और विश्वास बढ़ाने का भी माध्यम है।

छठ पूजा का महत्व

छठ पर्व सूर्य देव और छठी मैया की पूजा का अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। इसे करने से न केवल स्वास्थ्य, समृद्धि और लंबी उम्र मिलती है, बल्कि परिवार में खुशहाली और संतोष भी बढ़ता है। चारों दिन की विधि व्रती को अनुशासन, संयम, भक्ति और आत्मनिरीक्षण का संदेश देती है।

व्रत और पूजा के दौरान शरीर, मन और आत्मा की शुद्धि होती है। यह पर्व केवल व्यक्तिगत आध्यात्मिक लाभ ही नहीं देता, बल्कि समाज और परिवार में आपसी प्रेम, सहयोग, विश्वास और एकजुटता को भी मजबूत करता है। छठ पर्व भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है।

नहाय-खाय (पहला दिन 25 अक्टूबर)

  • छठ पर्व का पहला दिन नहाय-खाय के नाम से जाना जाता है।
  • इस दिन व्रती स्नान करके शुद्ध और सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं।
  • भोजन में आमतौर पर सादा चावल, दाल और फल शामिल होते हैं।
  • इसका उद्देश्य शरीर और मन को शुद्ध करना और व्रत की सही शुरूआत करना है।
  • यह दिन व्रती के लिए खुद को देख पाने और संयम सीखने का पहला कदम है।
  • व्रती इस दिन अपने मन और कर्मों को शुद्ध करने पर पूरा ध्यान देती हैं।
    नहाय-खाय से व्रती अगले दिनों के व्रत के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार होती हैं।

खरना (दूसरा दिन 26 अक्टूबर)

  • छठ पर्व का दूसरा दिन खरना के नाम से जाना जाता है।
  • इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जल व्रत रखते हैं, भोजन और पानी त्यागते हैं।
  • शाम को व्रती खीर, फल और मीठे प्रसाद ग्रहण करके व्रत खोलते हैं।
  • साथ ही साथ इस प्रसाद को परिवार के सदस्यों को भी दिया जाता है।
  • इसके बाद फिर से निर्जल व्रत श्रद्धा और भक्ति के साथ जारी रहता है।
  • इस दिन का धार्मिक महत्व व्रती में संयम, तपस्या और श्रद्धा को बढ़ाना है।
  • व्रती अपने शरीर और मन को संयमित और शुद्ध बनाकर ईश्वर को समर्पित करते हैं।
  • खरना व्रती की भक्ति, अनुशासन और आत्मनियंत्रण का अभ्यास करने का अवसर होता है।

संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन 27 अक्टूबर)

  • तीसरे दिन व्रती नदी, तालाब या जलाशय के किनारे जाकर अर्घ्य देते हैं।
  • यह सूर्य को दिन में दिया जाने वाला पहला अर्घ्य माना जाता है।
  • व्रती शाम से रात तक निर्जल व्रत रखते हुए भक्ति में लीन रहती हैं।
  • इस दौरान वे श्रद्धा, भक्ति और अनुशासन के साथ ईश्वर से आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।
  • संध्या अर्घ्य व्रती के लिए आत्मशुद्धि और ईश्वर के प्रति समर्पण का प्रतीक है।
  • यह दिन व्रती के संयम और भक्ति भाव को और अधिक मजबूत करता है।

उदय या पारण (चौथा दिन 28 अक्टूबर)

  • चौथे और अंतिम दिन व्रती सूर्य उदय के समय नदी या तालाब के किनारे खड़े होते हैं।
  • इस दिन व्रत का पारण किया जाता है और शरीर तथा मन को शुद्धि प्राप्त होती है।
  • पारण के बाद व्रती को ऊर्जा, आशीर्वाद और आध्यात्मिक संतोष का अनुभव होता है।
  • यह दिन व्रती के समर्पण, भक्ति और परिवार की खुशहाली का प्रतीक माना जाता है।
  • उदय अर्घ्य व्रती के लिए ईश्वर से सीधे संपर्क और आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर है।
  • यह दिन पूरे चार दिन के व्रत और तपस्या का सार्थक और शुभ समापन होता है।

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