भगवान गणेश को समर्पित है यह व्रत
Sankashti Chaturthi, (आज समाज), नई दिल्ली: सनातन धर्म में किसी भी शुभ और मांगलिक काम में सर्वप्रथम भगवान गणेश की विशेष पूजा-अर्चना करने का विधान है। संकष्टी चतुर्थी भगवान गणेश को समर्पित एक पवित्र व्रत है, जो हिंदू पंचांग के प्रत्येक चंद्र माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है। इस व्रत का उद्देश्य जीवन के कष्टों को दूर करना और सुख-समृद्धि प्राप्त करना है। आश्विन माह की शुरूआत 08 सितंबर से हुई है। सनातन धर्म में इस महीने को बेहद महत्वपूर्ण माना गया है।

आश्विन माह में कई पर्व और व्रत किए जाते हैं, जिनमें विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी का पर्व भी शामिल है। इस दिन महादेव के पुत्र भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करने का विधान है। साथ ही विशेष चीजों का भोग लगाया जाता है। अंगारकी संकष्टी चतुर्थी, जो चतुर्थी के दिन मंगलवार को पड़ती है, अत्यंत शुभ मानी जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, विधिपूर्वक चतुर्थी व्रत करने से साधक की सभी बाधाएं दूर होती हैं। साथ ही शुभ फल की प्राप्ति होती है।

संकष्टी चतुर्थी शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 10 सितंबर को दोपहर 3 बजकर 37 मिनट पर शुरू होगी और इसका समापन 11 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 45 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, चतुर्थी का व्रत 10 सितंबर (बुधवार) को रखा जाएगा।

इस दिन सूर्य सिंह राशि में रहेंगे और चंद्रमा शाम के 4 बजकर 3 मिनट तक मीन राशि में रहेंगे। इसके बाद मेष राशि में गोचर करेंगे। साथ ही इस दिन वृद्धि योग और ध्रुव योग भी बन रहे हैं, जिससे इस दिन का महत्व और भी बढ़ गया है।

वृद्धि और ध्रुव समेत शिववास योग

ज्योतिषियों के अनुसार, विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी के शुभ अवसर पर कई शुभ योग का निर्माण हो रहा है। इस दिन वृद्धि और ध्रुव समेत शिववास योग बन रहे हैं, जिन्हें बेहद शुभ माना जाता है।

मुहूर्त

  • ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 04 बजकर 31 मिनट से 05 बजकर 18 मिनट तक
  • विजय मुहूर्त: दोपहर 02 बजकर 23 मिनट से 03 बजकर 12 मिनट तक
  • गोधूलि मुहूर्त: शाम 06 बजकर 32 मिनट से 06 बजकर 55 मिनट तक
  • निशिता मुहूर्त: रात्रि 11 बजकर 55 मिनट से 12 बजकर 41 मिनट तक

संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि

  • सुबह जल्दी उठें और स्नान कर पीले कपड़ें पहनें।
  • चौकी पर कपड़ा बिछाकर भगवान गणेश की प्रतिमा विराजमान करें।
  • लाल फूल, दूर्वा, रोली और चंदन अर्पित करें।
  • देसी घी का दीपक जलाएं और आरती करें।
  • व्रत कथा का पाठ करें और मंत्रों का जप करें।
  • गणेश चालीसा का पाठ करें।
  • मोदक और लड्डू का भोग लगाएं।
  • जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति के लिए कामना करें।

संकष्टी चतुर्थी का महत्व

संकष्टी शब्द का अर्थ संकटों को हरने वाली होता है। मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से पूजा करने और व्रत रखने से जीवन में आने वाली सभी बाधाएं, समस्याएं, और कष्ट दूर हो जाते हैं। माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए यह व्रत रखती हैं।

साथ ही इस दिन पितरों को भी तर्पण और श्राद्ध करने से पितरों की कृपा बनी रहती है और पितृ दोष भी दूर होता है, जिससे परिवार में सुख-शांति बनी रहती है और धन संबंधित, करियर, रोग समेत सभी समस्याएं दूर रहती हैं।