SC On Neighbourhood Quarrels, (आज समाज), नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पड़ोसियों के बीच होने वाले झगड़े आम बात है और इस तरह के विवादों को आत्महत्या के लिए उकसाने का अपराध नहीं माना जा सकता। कर्नाटक की एक महिला को बरी करते हुए शीर्ष कोर्ट ने यह टिप्पणी की। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने निचली अदालत और कर्नाटक हाई कोर्ट (Karnataka High Court), दोनों के फैसलों को पलटते हुए, महिला को बरी कर दिया। 

महिला ने कलह के चलते कर ली थी आत्महत्या

महिला की 25 वर्षीय पड़ोसी ने कथित तौर पर लगातार झगड़े और कलह को सहन न कर पाने के कारण खुद को आग लगा ली थी और इसके लिए उसने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 306 के तहत पड़ोसन को कसूरवार बताया था। शीर्ष अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि तीखी बहस के बाद आत्महत्या करने के एक पड़ोसी के निर्णय के लिए दूसरे पड़ोसी को दंडित करना कानून की सीमा को पूरा नहीं करता।

पड़ोस के झगड़े सामाजिक जीवन में अनजान नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए अभियुक्त की स्पष्ट मंशा या उकसावे की जरूरत होती है, जिससे पीड़िता के पास यह कदम उठाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता। पीठ ने कहा, हालांकि अपने पड़ोसी से प्रेम करो’ आदर्श स्थिति है, लेकिन पड़ोस के झगड़े सामाजिक जीवन में अनजान नहीं हैं। ये सामुदायिक जीवन जितने ही पुराने हैं।

लोअर कोर्ट  ने 4 लोगों को बरी कर दिया, गीता को दोषी ठहराया

बता दें कि यह मामला 12 अगस्त, 2008 का है। विजयपुर निवासी पीड़िता ने खुद पर केरोसिन छिड़कने के बाद जलने से दम तोड़ दिया था। मौत से पहले पुलिस को दिए अपने बयान में उसने इसके लिए पांच पड़ोसियों के नाम लिए और उन पर अपने बच्चों को डांटने व उत्पीड़न और गाली-गलौज का आरोप लगाया। लोअर कोर्ट  ने 4 लोगों को बरी कर दिया, लेकिन एक महिला गीता को दोषी ठहराया था। अदालत ने कहा कि उसके शब्दों और कार्यों ने पीड़िता को आत्महत्या के लिए उकसाया।

आजीवन कारावास की भी सजा सुनाई गई थी

अदालत ने गीता को भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत पांच साल की जेल की सजा सुनाई।  पीड़िता अनुसूचित जाति से थी, इसलिए उसे अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत आजीवन कारावास की भी सजा सुनाई। अपील पर, कर्नाटक हाई कोर्ट ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत उसकी दोषसिद्धि को रद्द कर दिया, लेकिन धारा 306 के आरोप को बरकरार रखते हुए, सजा को घटाकर 3 साल कर दिया। इसके खिलाफ गीता सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी। 

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