प्रदेश में लगातार सामने आ रहे धान के अवशेषों में आग लगाने के मामले

Stubble Burning in Punjab (आज समाज), चंडीगढ़ : देश के लिए अनाज का पिटारा भरने वाला पंजाब हर बार धान कटाई के बाद अलग-थलग पड़ने लगता है। इसका कारण है धान के अवशेषों का निपटान। कोई वैज्ञानिक पद्धति न होने के कारण हजारों किसान इन अवशेषों को आग के हवाले करते हैं। जिससे वायु प्रदूषण बढ़ता है और सरकार के लिए समस्या खड़ी हो जाती है। यह मुद्दा इतना बढ़ जाता है कि यह सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच जाता है। इस बार भी पंजाब में 200 लाख टन पराली का निपटारा बड़ी चुनौती बन गया है। सुप्रीम कोर्ट की फटकार और सूबा सरकार के एक्शन के बावजूद पराली जलाने के मामलों पर रोक नहीं लग पा रही है। सितंबर में ही पराली जलने के केस आने शुरू हो गए हैं।

10 हजार अधिकारियों की तैनाती के बाद नहीं रुक रहे मामले

सरकार ने इस पर रोक लगाने के लिए 10 हजार अधिकारियों की फौज तैयार की है लेकिन इसके बावजूद बात नहीं बन रही। विशेषज्ञों के अनुसार पराली को जलाना पर्यावरण के लिए खतरनाक तो है ही लेकिन राजधानी दिल्ली के साथ ही पंजाब, हरियाणा व उत्तर प्रदेश को गैस चैंबर बनाने के लिए जिम्मेदार है। वर्ष 2024 के दौरान पंजाब में पराली जलाने के 10,909 मामले सामने आए थे। सरकार ने पराली प्रबंधन के लिए 1,48,451 सीआरएम मशीनें प्रदान की हैं। ड्रोन से भी नजर रखी जा रही है। पराली को जलाने से रोकने के लिए इससे पेलेट्स बनाना, बायोगैस तैयार करना और इंडस्ट्री में इस्तेमाल करना जैसे उपाय किए जा रहे हैं।

खेतों के अंदर व बाहर दोनों तरह से पराली के निपटारे के लिए किसानों को जागरूक किया जा रहा है, लेकिन बावजूद इसके सब इंतजाम नाकाफी साबित हो रहे हैं। सिर्फ 45 प्रतिशत के करीब पराली का ही निपटारा हो पा रहा है और बाकी बची पराली को किसान आग के हवाले कर देते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 17 सितंबर को अपने एक आदेश में पराली जलाने के मामले पर सख्त नाराजगी जताई थी।

ये हॉट स्पॉट जिलों में शामिल

पंजाब में आठ जिलों को हॉटस्पॉट की सूची में शामिल किया गया है। इन हॉटस्पॉट जिलों की बात करें तो पिछली बार फिरोजपुर में 1342, तरनतारन 876, संगरूर 1725, बठिंडा 750, मोगा 691, बरनाला 262, मानसा 618 और फरीदकोट में पराली जलाने के 551 मामले सामने आए थे।

केवल किसानों को जिम्मेदार ठहराना सही नहीं : राजेवाल

संयुक्त किसान मोर्चा के नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा कि हर बार धान कटाई के बाद इसके अवशेषों के निपटारे का सवाल खड़ा हो जाता है। सभी सरकारें किसानों को जिम्मेदार मानती हैं और उनपर कार्रवाई की जाती है जोकि सही नहीं है। राजेवाल ने कहा कि सरकार को पराली के प्रबंधन के लिए उचित प्रबंध करने चाहिए जो अभी तक नाकाफी है। कोई भी किसान जानबूझकर अपनी पराली को आग के हवाले नहीं करना चाहता है इसलिए सबसे पहले किसानों की समस्या समझना जरूरी है। पराली की समस्या और पर्याप्त संसाधनों का पता लगाने के लिए एक सर्वे किया जाना चाहिए जिसके बाद सब साफ हो जाएगा।

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