Today’s generation can learn a lot from Gavaskar: आज की पीढ़ी बहुत कुछ सीख सकती है गावसकर से

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अंशुमन गायकवाड़। मैं खुशकिस्मत हूं कि मुझे सुनील मनोहर गावसकर के साथ खेलने का मौका मिला। टेस्ट क्रिकेट में मुझे उनका लम्बा साथ मिला। मुझे यह बात बहुत ही गुदगुदाती है कि मेरी कुछ बातें उनसे बहुत मिलती जुलती हैं। उनका जन्म मुम्बई के जिस पुरंदरे अस्पताल में हुआ, मेरा जन्म भी उसी अस्पताल में हुआ। हम दोनों के नाम में जी शब्द आता है। वह मेरे अच्छे दोस्त हैं और मैं आज भी उनके सम्पर्क में हूं। हमने एक साथ अच्छे दिन बिताए। सुनील अपना जन्मदिन अच्छे तरीके से सेलिब्रेट करें और एक नई पारी की शुरुआत करें। जैसे उनकी पारी आॅन द फील्ड यादगार रही, वैसे ही आॅफ द फील्ड भी वह अपने जन्मदिन को यादगार बनाएं। ईश्वर उन्हें लम्बी उम्र दे। यही मेरी उन्हें दिल से दुआ है।
मुझे याद है वेस्टइंडीज का वह दौरा, जिसमें एंडी रॉबर्ट्स, मैल्कम मार्शल और माइकल होल्डिंग जैसे खूंख्वार तेज गेंदबाज खेला करते थे। तब जितनी अच्छी गेंदबाजी, उस सीरीज में देखने को मिली, उतनी ही अच्छी बल्लेबाजी गावसकर की ओर से देखने को मिली। गावसकर का प्रदर्शन उनके सामने बेहतरीन रहा। वह तकनीक के मास्टर थे। मैंने उनके जैसी तकनीक न तो तेंडुलकर में देखी, न द्रविड़, गांगुली या लक्ष्मण में देखी और न ही वैसी तकनीक विराट में ही देखने को मिली। मैं जब उनके साथ बल्लेबाजी करता था तो वेस्टइंडीज के पास चार-चार तेज गेंदबाज हुआ करते थे, जो किसी भी बल्लेबाज का क्रीज पर टिकना हराम कर देते थे पर गावसकर जिस तरह से उन्हें खेलते थे तो ऐसा लगता था कि उस धारदार गेंदबाजी में भी कोई दम नहीं है।
मैं दूसरे छोर पर गावसकर की इस अप्रोच को देखा करता था। उन्हें देखकर मुझमें काफी आत्मविश्वास आता था। तब मुझे भी लगने लगता था कि सामने कोई अटैक नहीं है। मैं गावसकर की देखादेखी मनोवैज्ञानिक तौर पर पूरी तरह से तैयार हो चुका था। यही वजह है कि हमने एक मौके पर वेस्टइंडीज का 403 रन का पहाड़नुमा लक्ष्य हासिल कर लिया था। तब मैंने गावसकर के साथ पारी की शुरुआत की थी। नौबत यहां तक आ गई थी कि क्लाइव लॉयड की कप्तानी उस हार से जा सकती थी।
इसी तरह जमैका के बाद का मैच भी मुझे याद है जब विश्वनाथ, बृजेश पटेल और मेरे सहित कुल पांच खिलाड़ी चोटिल हो गये थे। तब माइकल होल्डिंग और डेनियल ने बाउंसरों और बीमर गेंदों की झड़ी लगा दी थी।  बाइसत की शिकायत सुनील गावसकर ने अम्पायर से की तो अम्पायर ने कहा कि दरअसल आप लोगों को शॉर्टपिच गेंदों को खेलने की आदत नहीं है। जो चल रहा है, ठीक है। इस बात को सुनकर गावसकर बेहद गुस्से में आ गये थे। मैंने पहली बार गावसकर को इतने गुस्से में देखा था। मैंने उन्हें समझाया कि शांत हो जाओ। तब उन्होंने मुझसे कहा था कि मुझे यहां मरना नहीं है। मुझे घर जाकर अपने बच्चे को देखना है। रोहन गावसकर का उन दिनों जन्म हुआ था।

कुछ लोग इंग्लैंड के जैफरी बॉयकाट से उनकी तुलना करते हैं। यह ठीक है कि बॉयकाट अच्छे खिलाड़ी थे और तकनीकी तौर पर भी काफी मजबूत थे लेकिन एक सच्चाई ये भी है कि जितने रन गावसकर ने बनाए, उतने बॉयकाट नहीं बना पाए। गावसकर उनके मुकाबले ज्यादा सम्पूर्ण बल्लेबाज थे। मेरा मानना है कि आज के क्रिकेटर गावसकर की तकनीक और उनकी खेलने की शैली से बहुत कुछ सीख सकते हैं। उनके टेम्परामेंट से सीख सकते हैं। आज लोग आक्रामक हैं लेकिन गावसकर की आक्रामकता उनकी बल्लेबाजी में झलकती थी। वह खेल के दौरान ज्यादा पचड़ों में नहीं पड़ते थे। वह अपने खेल पर पूरी तरह से केंद्रित रहते थे। गेंदबाज की आंखों में आंखे डालने से भी परहेज करते थे। उन्होंने विश्व क्रिकेट को दिखाया कि कैसे मैदान पर शांत रहा जाता है। उनकी एकाग्रता से भी आज की पीढ़ी बहुत कुछ सीख सकती है।
(लेखक सुनील गावसकर के साथ लम्बे समय तक टेस्ट टीम के सदस्य रहे। इसके बाद वह टीम इंडिया के कोच और मुख्य चयनकर्ता भी रहे)

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