आईपीएल को लेकर लगातार बढ़ रही हैं बीसीसीआई की परेशानियां

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नीटा शर्मा

इस बार आईपीएल-2020 का आयोजन एक तरह से आसमान से तारे तोड़ने से कम नहीं है। इसके रास्ते में दिक्कतें ही दिक्कतें आ रही हैं। पहले कोरोना की वजह से इसका आयोजन टला। फिर आईसीसी ने टी-20 वर्ल्ड कप के स्थगन की आधिकारिक घोषणा करने में काफी समय लगा दिया और अब वीवो का अच्छे खासे विरोध के बाद इसकी टाइटिल स्पॉन्सरशिप से हटना। समस्या यहीं खत्म नहीं हो जाती…इसकी राह में और भी कांटे हैं।

पिछले दिनों स्वदेशी जागरण मंच ने चाइनीज़ कम्पनियों के बहिष्कार की मांग की थी और इसे राष्ट्रीय सम्मान से जोड़ा गया, जिससे 2199 करोड़ रुपये का वीवो से करार बीच में ही स्थगित करना पड़ा। हालांकि इस बारे में अगले साल फिर इसका मूल्यांकन किया जाएगा और राष्ट्रीय सम्वेदनाओं के इस बारे में नज़रिए का फिर से आकलन किया जाएगा। आपको याद होगा कि पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में 20 भारतीय सैनिकों की शहादत के मद्देनज़र चाइनीज़ कम्पनियों से दूरी बनाने की देश भर में मुहीम शुरू कर दी गई थी।

अब स्वदेशी जागरण मंच ने मांग की है कि वीवो के हटने के बाद वे आईपीएल में उन कम्पनियों को भी स्वीकार नहीं करेंगे जिनमें चाइनीज़ कम्पनियों की हिस्सेदारी है। अगर इस मुद्दे पर भी बीसीसीआई पर दबाव पड़ा तो ये आयोजन ही चौपट होने की नौबत आ सकती है। इस समय पेटीएम, ड्रीम इलेवन और बायजूस ऐसी कम्पनियां हैं जहां चाइनीज़ कम्पनियों का पैसा लगा हुआ है। पेटीएम में चाइनीज़ कम्पनियो की भागीदारी 55 फीसदी है जबकि आईपीएल के एक अन्य स्पॉन्सर ड्रीम इलेवन में टेनसेंट नामक चाइनीज़ कम्पनी की भागीदारी 20 फीसदी है। इसी तरह बायजूस में भी इसी टेनसेंट कम्पनी की 15 फीसदी राशि लगी हुई है। ऐसी स्थिति में बीसीसीआई बैकफुट पर है। पहले ही कई टीम ओनर्स टाइटिल स्पॉन्सर के हटने पर बेहद नाराज़ हैं और अब इन कम्पनियों के हटने की स्थिति में बीसीसीआई की नींद हराम हो सकती है। गृहमंत्री अमित शाह के सुपुत्र जय शाह बीसीसीआई के सचिव हैं। हालांकि कार्यकाल खत्म होने तक वह ग्रेस पीरियड में चल रहे हैं। वह अपने प्रभाव का कितना इस्तेमाल करके इस दबाव से मुक्त होने का कोई रास्ता निकालते हैं, देखना दिलचस्प होगा।

आईपीएल टीम ओनर्स की आमदनी पहले ही बंद दरवाजों में आईपीएल कराने से बुरी तरह प्रभावित हुई है। ऊपर से यूएई में आवास और टिकट के खर्चों और विदेशी खिलाड़ियों के लिए टेस्ट कराने प्रक्रिया शुरू करने से उनके खर्चों में काफी इज़ाफा हो गया है। अपनी मांगों को लेकर जब वे बीसीसीआई के पास गये तो बोर्ड ने उन पर राज्य एसोसिएशनों के खर्चे डालकर ठेंगा दिखा दिया। बोर्ड ने साफ कर दिया था कि फ्रेंचाइज़ी टीम के मैच जिस संबंधित एसोसिएशन के ग्राउंड पर आयोजित कराए जाते हैं, वहां एक मैच का बीसीसीआई 50 लाख रुपये और इतनी ही राशि टीम ओनर्स की ओर से दी जाती है। आठ मैचों के लिए ये राशि आठ करोड़ रुपये बनती है और आठ टीमों के हिसाब से 64 करोड़ रुपये। बोर्ड का कहना है कि इस राशि को राज्य में ढांचागत सुविधाओं पर खर्चा किया जाता है। अब बोर्ड ने सभी टीम ओनर्स को इसका भुगतान करने का भी फरमान सुना दिया है।

अब बोर्ड की दिक्कत ये है कि बोर्ड को उन कम्पनियों के प्रस्ताव पर भी ध्यान देना पड़ रहा है जो उनके पहले से स्पॉन्सर कम्पनियों की प्रतिद्वंद्वी कम्पनियां हैं। अन-एकेडमी ऐसी ही कम्पनी है जिसकी बीसीसीआई से इन दिनों टाइटिल स्पॉन्सरशिप को लेकर बात चल रही है। यह कम्पनी बायजू की प्रतिद्वंद्वी कम्पनी है। इसी तरह एमेज़न, पतंजली और टाटा ग्रुप भी होड़ में है। फैंटेसी स्पोर्ट्स प्लेटफॉर्म ड्रीम इलेवन भी इस होड़ में था लेकिन सूत्रों का कहना है कि इस तरह के विरोधों के बाद निश्चय ही उसका दावा कमज़ोर हुआ है।

चाइनीज़ कम्पनियों से तौबा करने के सवाल पर फिर लौटते हैं। आप चाइनीज़ कम्पनियों से पीछा कहां कहां छुड़वाएंगे। क्या विराट कोहली का चाइनीज़ स्मार्ट फोन कम्पनी आईक्यूओओ से  मोटा करार नहीं है। क्या दूसरे खेलों में चाइनीज़ कम्पनियों का पैसा नहीं लगा। अब स्वदेशी जागरण मंच से जुड़े कार्यकर्ता कह रहे हैं कि भारतीय खिलाड़ी अपनी हैलमेट पर तिरंगा लगाते हैं तो फिर वो कैसे चाइनीज़ कम्पनियों के खिलाफ छिड़े अभियान को नज़रअंदाज़ कर सकते हैं। खबर है कि इस घटना क्रम के बाद बीसीसीआई सरकार से जुड़ी हाई अथॉरिटी के सम्पर्क में है। सवाल ये है कि क्या सरकार बीसीसीआई की खातिर आरएसएस से जुड़े संगठनों की मांग को नज़रअंदाज़ करेगी या इसके बदले में कोई सहमति बनाने में कामयाब होगी। कारण कुछ भी हो लेकिन यह सच है कि पूरा आयोजन यूएई में होने के बाद बीसीसीआई की परेशानियां लगातार बढ़ती जा रही हैं। देखना है कि 18 अगस्त को नए टाइटिल स्पॉन्सर की घोषणा के बाद इस नुकसान की कितनी भरपाई हो पाती है।

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