आचार्य दीप चन्द भारद्वाज, Shardiya Navratri 2025: हमारी सनातन संस्कृति के आधारभूत धार्मिक ग्रंथो में विशेष रूप से वर्ष में चार बार नवरात्रों का विधान है। वर्ष में दो बार गुप्त नवरात्र आते हैं। चैत्र मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नौ दिन नवमी तक एवं आश्विन मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से विजयदशमी तक। आश्विन मास में आने वाले नवरात्र शारदीय नवरात्र कहलाते हैं। शरद ऋतु की हल्की-हल्की शुरुआत होने के कारण इन्हें शारदीय कहा जाता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कहा जाता है कि दुर्गा देवी ने आश्विन के महीने में महिषासुर पर आक्रमण कर उससे नौ दिनों तक युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध किया था। इसलिए इन नौ दिनों को विशेष रूप से शक्ति की आराधना के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इन विशेष नौ दिनों में उपासक आदिशक्ति की दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती के रूप में उपासना करते हैं।
आदिशक्ति के यह तीनों रूप क्रमशः मनुष्य के अंतःकरण में विद्यमान पराक्रम, पुरुषार्थ,  धन वैभव, ज्ञान रूपी उत्कृष्ट धरोहर के प्रतीक हैं। ईश्वर स्वरूपा आदिशक्ति दुर्गा का स्वरूप हमारी आंतरिक चेतना में विराजमान है। हमारे मनीषियों ने भी कहा है कि या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः। अर्थात जो देवी प्रत्येक प्राणी में सूक्ष्म रूप से शक्ति और पराक्रम के रूप में चेतना में स्थित है उसको नमस्कार है।
वस्तुतः नवरात्रि अंतःशुद्धि का महापर्व है। प्रकृति के पांच तत्वों से निर्मित इस शरीर को इन नौ दिनों में प्रकृति के साथ संतुलन स्थापित करने का संदेश भी निहित है। ऋतु परिवर्तन होने के साथ इसका प्रभाव हमारे शरीर पर भी पड़ता है। इसलिए ऋषियों ने नौ दिनों तक व्रत और उपवास तथा सात्विक भोजन का विधान किया है। इससे शरीर में सात्विक गुण का प्रभाव बढ़ता है।
शास्त्रों में कहा गया है कि मनुष्य का अंतकरण सत्व, रजो और तमोगुण से निर्मित है। प्रकृति के साथ इसी आंतरिक चेतना को साधना और आध्यात्मिक उत्थान के माध्यम से परिष्कृत करने का उत्सव नवरात्र है। हमारे पर्वों की विशेषता है कि वह मनुष्य को प्रकृति, वैज्ञानिकता और ऋतु परिवर्तन के साथ लेकर चलते हैं। मनुष्य सांसारिक प्राणी है इसलिए प्रतिपल उसके मानस पटल पर तामसिक विचारों का प्रभाव पड़ता रहता है जिससे मानसिक अशांति, तनाव, दुखों के कारण मनुष्य भक्ति और उपासना के पद से विचलित हो जाता है।
संयम के साथ की गई आदिशक्ति की उपासना एवं साधना मनुष्य के आध्यात्मिक उत्थान में सहायक बनती है। जैसे कोई शिशु अपनी मां के गर्भ में नौ महीने रहकर पुष्टता को प्राप्त करता है, वैसे ही यह 9 दोनों का स्वर्णिम समय प्रकृति में मग्न होकर अपनी आंतरिक सृजनता को उत्कृष्ट बनाने का संदेश देता है। जिस प्रकार आदिशक्ति दुर्गा ने नौ दिनों तक शक्ति संचय कर   अशांति, पापाचरण, आतंक और हिंसा के पर्याय महिषासुर दानव का वध किया था, इसी प्रकार यह नवरात्र भी हमें पुरुषार्थ, पराक्रम और ओज को संचित करके अंतःकरण में विद्यमान आसुरी तत्वों को परास्त करने की दिव्य प्रेरणा देती है।
शारदीय नवरात्र आदिशक्ति दुर्गा की उपासना के माध्यम से आत्मिक उत्थान के मार्ग पर चलने का समय है। यम, नियम, संयम सात्विक आहार के माध्यम से शारीरिक शुद्धि को प्राप्त करके आत्मिक आनंद को इन नौ दिनों में अनुभूत करने का प्रयत्न प्रत्येक उपासक को करना चाहिए। शारदीय नवरात्र में एकाग्रचित के साथ आदिशक्ति की गई साधना मनुष्य को भौतिक सुख समृद्धि के साथ-साथ आत्मिक आनंद की अनुभूति करवाती है।