जैन धर्मावलंबियों के लिए अत्यंत पवित्र और फलदायी होता है रोहिणी व्रत
Rohini Vrat, (आज समाज), नई दिल्ली: रोहिणी व्रत जैन धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन विशेष रूप से भगवान वासुपूज्य स्वामी की की पूजा की जाती है। इस दिन चंद्रमा की पूजा भी होती है। इस दिन चंद्रमा की पूजा का विशेष महत्व है, क्योंकि इस दिन चंद्रमा रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करता है, इसलिए ये दिन चंद्र पूजा का भी कहलाता है।

द्रिक पंचांग के अनुसार, आज यानी सात नवंबर को रोहिणी व्रत किया जाएगा। ये अगहन माह का रोहिणी व्रत है। जैन धर्मावलंबियों के लिए रोहिणी व्रत अत्यंत पवित्र और फलदायी होता है। आइए जानते हैं कि रोहिणी व्रत क्यों किया जाता है? साथ ही जानते हैं कि इस व्रत को कितने सालों तक करने से विशेष फल प्राप्त होता है?

क्यों किया जाता है रोहिणी व्रत?

रोहिणी व्रत व्रत मुख्य रूप से महिलाएं करती हैं। महिलाएं ये व्रत अपने परिवार और संतान की खुशहाली और दीर्घायु के लिए करती हैं। महिलाएं इस दिन निर्जला या फलाहार व्रत रखकर अपने परिवार के लिए सुख-समृद्धि और संतान की खुशहाली और दीघार्यु की कामना करती हैं। ये व्रत हर माह में एक बार पड़ता है, लेकिन विशेष तिथियों पर ये व्रत अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है।

कितने सालों तक व्रत करने का है विधान?

रोहिणी व्रत जैन धर्म के प्रमुख व्रतों में से एक है। यह व्रत रोहिणी नक्षत्र के दिन किया जाता है। जैन मान्यता के अनुसार, रोहिणी व्रत करने से व्यक्ति कर्म बंधन से मुक्त होता है। मोक्ष को प्राप्त करता है। रोहिणी व्रत लगातार 3, 5, या 7 वर्षों तक करने का विधान है। इस व्रत को लगातार तीन, पांच या सात साल तक करना होता है। यही नहीं पारण अनुष्ठान करने के बाद ही ये व्रत पूर्ण होता है। इसका विशेष फल तभी मिलता है।

रोहिणी व्रत की पूजा विधि

ब्रह्म मुहूर्त में उठकर पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। फिर आचमन कर व्रत का संकल्प लें और सूर्य भगवान को जल अर्पित करें। इसके बाद पूजा स्थल की साफ-सफाई करें। फिर वेदी पर भगवान वासुपूज्य की प्रतिमा स्थापित करें। इसके बाद पूजा में भगवान वासुपूज्य को फल-फूल, गंध, दूर्वा, नैवेद्य आदि अर्पित करें। सूर्यास्त होने से पहले पूजा कर फलाहार करें। अगले दिन पूजा-पाठ करने के बाद अपने व्रत का पारण करें। व्रत के दिन गरीबों को दान जरूर करें।

ये भी पढ़ें: उत्पन्ना एकादशी के दिन शिवलिंग पर चढ़ाएं ये चीजें