अखंड़ सौभाग्य का मिलेगा वरदान
Karva Chauth Vrat Katha, (आज समाज), नई दिल्ली: आज करवा चौथ का व्रत रखा जा रहा है। यह व्रत महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए रखती है। इस व्रत को करने से अखंड़ सौभाग्य का प्राप्ति होती है। साथ ही करवा चौथ व्रत का पूरा फल पाने के लिए इस दिन करवा माता की यह पौराणिक कथा का पाठ करना बेहद जरुरी है।

करवाचौथ व्रत की कथा

प्राचीन समय की बात है एक गांव में करवा नाम की एक स्त्री रहती थी। जो बहुत ही पतिव्रता थी। एक दिन करवा का पति स्नान करने के लिए नदी पर दया। जैसे ही वह स्नान के लिए नदी में उतरा वहां मगरमच्छ आ गया और उसने करवा के पति कै पैर पकड़ लिया। मगरमच्छ धीरे धीरे उसे नदी में खींचने लगा। करवा का पति बुरी तरह से घबरा गया और अपने प्राण संकट में देखकर करवा को जोर जोर से आवाज लगाने लगा।

अपने पति की आवाज सुनकर करवा नदी के तट पर पहुंची जहां मगरमच्छ उसके पति के प्राण लेने पर तुला था। करवा के हाथ में एक कच्चा धागा था। उसने तुरंत ही एक कच्चे धागे से मगर को बांध दिया। इसके बाद करवा यमराज के पास पहुंची। करवा यमकाज से बोली कि मेरे पति का पैर मगरमच्छ ने पकड़ लिया है। करवा ने यमराज से प्रार्थना करते हुए कहा कि मगर को मेरे पति के पैर पकड़ने के अपराध में आप अपने बल से नरक में भेज दो।

यमराज ने करवा से कहा कि हे देवी मैं चाहकर भी ऐसा नहीं कर सकता हूं। क्योंकि, मगर की आयु अभी शेष है। करवा ने तब यमराज से कहा कि अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो मैं आपको श्राप दे दूंगी। करवा के ऐसे वचन सुनकर यमराज सोच में पड़ गए और करवा के साथउस नदी पपर पहुंचे जहां उस मगर ने करना के पति के पैर पकड़ रखा था। फिर यमरोज ने गरमच्छ को यमपुरी भेज दिया और करवा की निडरता और अपने पति के प्रति निष्ठा को देखकर उसके पति को दीघार्यु का आशीर्वाद दिया।

करवाचौथ का व्रत करने वाली सभी महिलाओं को इस कथा का पाठ जरुर करना चाहिए और दोनों हाथ जोड़कर करवा माता से प्रार्थना करनी चाहिए की हे करवा माता जैसे आपने अपने पति की रक्षा की, वैसे सबके पतियों की रक्षा करना।

करवा चौथ की दूसरी कथा

शाकप्रस्थपुर वेदधर्मा ब्राह्मण की विवाहिता पुत्री वीरवती ने भी करवाचौथ का व्रत किया था। जैसा कि करवा चौथ व्रत का नियम है कि चंद्रोदय होने के बाद ही भोजन किया जाता है। वैसे ही वीरवती को भी भोजन करना था लेकिन, उससे भूख नहीं सही गई और वह व्याकुल हो उठी।

उसके भाइयों से अपनी बहन का भूख से ऐसा हाल देखी नहीं गया और उन्होंने पीपल की आड़ में आतिशबाजी का सुंदर प्रकाश फैलाकर चंद्रोदय दिखा दिया और वीरवती के व्रत का पारण बिना चंद्रोदय ही करा दिया। जिसका परिणाम यह हुआ कि वीरवती के पति की मृत्यु हो गई। इसके बाद वीरवती ने बारह महीने तक प्रत्येक चतुर्थी को व्रत रखा और करवा चौथ के दिन उसकी तपस्या से उसका पति पुन: वापस मिल गया।

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