हर दिन के प्रदोष व्रत का होता है अलग-अलग नाम और महत्व
Pradosh Vrat (आज समाज), नई दिल्ली: प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित है और हर महीने में दो बार, कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। इस प्रकार से साल में कुल 24 प्रदोष व्रत आते है। मान्यता है कि यह व्रत करने से मनुष्य के दोष और दुख दूर हो जाते है। प्रदोष व्रत में, सूर्यास्त के समय, जिसे प्रदोष काल कहा जाता है, भगवान शिव की पूजा करना शुभ माना जाता है। हर दिन के प्रदोष व्रत का अलग-अलग नाम और महत्व होता है। प्रदोष काल में उपवास करना रात्रि जागरण करना चाहिए।

यह सभी दोषों का नाश करता है। किसी खास दिन पर जब प्रदोष व्रत होता है तो उस दिन के साथ इस व्रत का संयोग ओर भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। इसमें मुख्य रुप से सोमवार के दिन पड़ने वाला प्रदोष व्रत सोम प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है। मंगलवार के दिन पड़ने वाला प्रदोष व्रत भौम प्रदोष व्रत के रुप में जाना जाता है। शनिवार के दिन शनि प्रदोष व्रत और रविवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को रवि प्रदोष के रुप में जाना जाता है।

प्रदोष व्रत पूजा विधि

  • प्रदोष व्रत को करने वालों को द्वादशी की रात्रि से ही शुद्धता, सात्विकता एवं ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
  • अगले दिन त्रयोदशी तिथि को प्रात:काल स्नान आदि से निवृत होकर भगवान शिव का ध्यान करना चाहिए. शिवलिंग पर जलाभिषेक करना चाहिए।
  • ऊं नम: शिवायह्व मंत्र का जाप जितना संभव हो सके करना चाहिए।
  • यदि उपवास कर सकें तो उपवास का संकल्प करके पूरा दिन निराहार रहना चाहिए।
  • उसके पश्चात सूर्यास्त के बाद स्नान करके और शुभ मुहूर्त में भगवान शिव का विधि विधान के साथ पूजन करना चाहिए.
  • पूजा करते समय उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए।
  • भगवान शिव का पुष्प, बेलपत्र, पंचामृत, अक्षत, भांग, धतूरा, सफेद चंदन, दूध, धूप आदि से पूजन करना चाहिए।
  • जलाभिषेक करना चाहिए व शिव मंत्रों एवं शिव चालिसा का पाठ करना चाहिए।
  • भजन आरती पश्चात भगवान को भोग लगाना चाहिए और प्रसाद को सभी लोगों में बांटना चाहिए।
  • इस प्रकार विधि विधान के साथ पूजा करने के उपरांत ब्राह्मणों को भोजन खिलाना चाहिए और उन्हें दान दक्षिणा देकर उनसे आशिर्वाद प्राप्त करना चाहिए।

जानें किस वार को कौन सा प्रदोष व्रत आता है

  • सोम प्रदोष व्रत: सोमवार जो भगवान शिव और चंद्र देव का दिन माना गया है, तो इस दिन प्रदोष व्रत का आना अत्यंत ही शुभदायक और कई गुना शुभ फलों को देने वाला होता है। सोमवार को त्रयोदशी तिथि आने पर प्रदोष व्रत रखने से मानसिक सुख प्राप्त होता है, अगर चंद्रमा कुंडली में खराब हो तो इस दिन व्रत का नियम अपनाने पर चंद्र दोष समाप्त होता है। सौभाग्य एवं परिवार के सुख की प्राप्ति होती है.
  • भौम प्रदोष व्रत: मंगलवार के दिन प्रदोषव्रत का आगमन संतान के सुख को देने वाला और मंगल दोष से उत्पन्न कष्टों की निवृत्ति प्रदान करने वाला होता है। इस दिन व्रत रखने पर स्वास्थ्य संबंधी कष्ट दूर होते हैं। क्रोध की शांति होति है और धैर्य साहस की प्राप्ति होती है। प्रदोष व्रत विधिपूर्वक करने से आर्थिक घाटे से मुक्ति मिलती है। कर्ज से यदि परेशानी है तो वह भी समाप्त होती है। रक्त से संबंधी स्वास्थ्य समस्याओं से मुक्ति के लिए भौम प्रदोष व्रत अत्यंत लाभदायी होता है.
  • बुध प्रदोष व्रत: बुधवार के दिन आने वाले प्रदोष व्रत को सौम्य प्रदोष, सौम्यवारा प्रदोष, बुध प्रदोष कहा जाता है। इस दिन व्रत करने से बौद्धिकता में वृद्धि होती है। वाणी में शुभता आती है। जिन जातकों की कुण्डली में बुध ग्रह के कारण परेशानी है या वाणी दोष इत्यादि कोई विकार परेशान करता है तो उसके लिए बुधवार के दिन प्रदोष व्रत करने से शुभ लाभ प्राप्त होते हैं, बुध की शुभता प्राप्त होती है। छोटे बच्चों का मन अगर पढा़ई में नहीं लग रहा होता है तो माता-पिता को चाहिए की बुध प्रदोष व्रत का पालन करें इससे लाभ प्राप्त होगा।
  • गुरु प्रदोष व्रत: बृहस्पतिवार/गुरुवारा के दिन प्रदोष व्रत होने पर गुरु के शुभ फलों को आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। बढ़े बुजुर्गों के आशीर्वाद स्वरुप यह व्रत जातक को संतान और सौभाग्य की प्राप्ति कराता है। व्यक्ति को ज्ञानवान बनाता है और आध्यात्मक चेतना देता है।
  • शुक्र प्रदोष व्रत: शुक्रवार के दिन प्रदोष व्रत होने पर इसे भृगुवारा प्रदोष व्रत के नाम से भी पुकारा जाता है। इस दिन व्रत का पालन करने पर आर्थिक कठिनाईयों से मुक्ति प्राप्त होती है। व्यक्ति के जीवन में शुभता एवं सौम्यता का वास होता है। इस व्रत का पालन करने पर सौभाग्य में वृद्धि होती है और प्रेम की प्राप्ति होती है।
  • शनि प्रदोष व्रत: शनिवार के दिन त्रयोदशी तिथि होने पर शनि प्रदोष व्रत होता है। शनि प्रदोष व्रत का पालन करने से शनि देव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। कुंडली में मौजूद शनि दोष या शनि की साढ़ेसाती अथवा ढैय्या से मिलने वाले कष्ट भी दूर होते हैं। शनि प्रदोष व्रत द्वारा पापों का नाश होता है। हमारे कर्मों का फल देने वाले शनिमहाराज की कृपा प्राप्त होती है। कार्यक्षेत्र और व्यवसाय में लाभ पाने के लिए भी शनि प्रदोष व्रत अत्यंत असरकारी होता है।
  • रवि प्रदोष व्रत: त्रयोदशी तिथि के दिन रविवार होने पर रवि प्रदोष व्रत होता है। इस दिन को भानुवारा प्रदोष व्रत के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान शिव की अराधना के साथ-साथ सूर्य देव की उपासना भी करनी अत्यंत शुभ फलदायी होती है। ये व्रत करने से आपको जीवन में यश ओर कीर्ति की प्राप्ति होती है. राज्य एवं सरकार से लाभ भी मिलता है। यदि किसी कारण से सरकार की ओर से कष्ट हो रहा हो या पिता से अलगाव अथवा सुख की कमी हो तो, इस रवि प्रदोष व्रत को करने से सुखद फलों की प्राप्ति होती है। कुण्डली में अगर किसी भी प्रकार का सूर्य संबंधी दोष होने पर इस व्रत को करना अत्यंत लाभदायी होता है।

प्रदोष व्रत कथा

प्रदोष व्रत के नाम से अनेक कथाएं प्रचलित हैं, जिसमें से एक कथा अनुसार चंद्रमा को जब श्रापवश क्षय रोग होता है तब इसके कारण चंद्रमा की रोशनी (प्रकाश) का नाश होने लगता है। चंद्र देव भगवान शिव की भक्ति करते हैं और इनसे अपने कष्ट को दूर करने की प्रार्थना करते हैं।

भगवान शिव, चंद्रमा की भक्ति से प्रसन्न होकर उनके कष्ट का निवारण करके उन्हें श्राप से मुक्ति प्रदान करते हैं, और जिस दिन चंद्रमा को इस कष्ट से मुक्ति प्राप्त होती है. वह त्रयोदशी तिथि का समय होता है. भगवान शिव नेण त्रयोदशी के दिन चंद्रमा को पुन: जीवन अर्थात उनका प्रकाश प्रदान किया अत: इसीलिए इस दिन को प्रदोष कहा जाने लगा।

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