Two-way public interaction with farmers: किसानों से दोतरफा सार्वजनिक संवाद करें

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किसनों के शांतिपूर्ण आंदोलन को हिंसक बनाने के लिए सरकार की उकसाऊ नीतियां बेहद चिंताजनक हैं। शांतिपूर्ण प्रदर्शन के लिए नई दिल्ली के नियत स्थान जंतर मंतर आ रहे किसानों पर लाठीचार्ज, वाटरकैनन और अन्य बाधायें किसी भी स्तर पर सही नहीं ठहराई जा सकती हैं। किसानों को दिल्ली से कई सौ किमी दूर हरियाणा, यूपी की सीमाओं पर रोकना अदूरदर्शिता ही कहलाएगी। राष्ट्रीय राजमार्गों को पुलिस और सरकार द्वारा पत्थरों के बैरीकेड लगाकर बंद कर देना। सड़कों को पुलिस प्रशासन द्वारा खोदकर गहरे खड्डे कर देना कैसे उचित ठहराया जा सकता है। तीन दिनों से चल रहे किसानों ने अब तक कहीं उग्र रूप नहीं दिखाया है। गांधीवादी तरीके से वह आगे बढ़ रहे हैं मगर सरकार पुलिस को ढाल बनाकर उनपर हमले करवा रही है। उन्हें जगह जगह रोककर परेशान किया जा रहा है। यह चिंताजकन है कि हमारी सरकारें अपने मतदाताओं जो अन्नदाता भी हैं, से आखिर बात क्यों नहीं करना चाहती हैं। उनके सवालों का समाधान क्यों नहीं कर रही हैं।

आक्रोषित किसानों के आंदोलन का का स्वरूप दिल्ली की सीमाओं पर बिगाड़ना, दुखद और चिंताजनक है। न केवल यूपी, हरियाणा पुलिस, बल्कि दिल्ली पुलिस के लिए भी वह चुनौती बन गये हैं। केंद्र सरकार यह नहीं चाहती कि किसी भी तरह का विरोध मार्च दिल्ली में आयोजित हो, इसलिए पंजाब से होते हुए हरियाणा के रास्ते दिल्ली में घुसने की कोशिश करने वाले किसानों के खिलाफ लगातार बल प्रयोग किया जा रहा है। यूपी से दिल्ली आने वाले सभी रास्तों पर पुलिस यूं लगा दी गई है कि वहां दुश्मन आ रहा हो। सीमा पर बैरिकेडिंग के चलते दिल्ली, गाजियाबाद, नोएडा, सोनीपत, गुरुग्राम, फरीदाबाद और सिंघु बॉर्डरों पर वाहनों के लंबे जाम लगे हैं। एनसीआर की मेट्रो सेवाएं भी बंद हो गई हैं।

यह अपने आप में ऐतिहासिक और दुखद घटना है कि किसानों को किसी भी तरह से दिल्ली पहुंचने से रोका जा रहा है। हालांकि, पुलिस का यही कहना है कि सीमा को सील नहीं किया गया है, मगर दिल्ली आने वाले वाहनों की न सिर्फ जांच की जा रही है बल्कि पूरी रोड ही बंद कर दी गई हैं। दिल्ली पुलिस ने केंद्र के निर्देश पर कहा था कि किसान अगर कोरोना महामारी के समय में दिल्ली आने का प्रयास करेंगे, तो सख्ती बरती जाएगी। बहरहाल, आम लोगों या किसानों को हुई परेशानी के लिए राजनीति को भी जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह साफ कर चुके हैं कि वह किसानों के साथ हैं, वह दिल्ली में शांतिपूर्ण मार्च करना चाहते हैं तो उन्हें रोकना नहीं चाहिए। पंजाब के किसानों के मार्च को देखते हुए हरियाणा से भी भारी संख्या में किसान निकल पड़े हैं। पंजाब के मुख्यमंत्री ने भी किसानों की मांग को लेकर दिल्ली में धरना दिया था। वह राष्ट्रपति से मिलकर उन्हें किसानों के सवालों से अवगत करना चाहते थे मगर पहली बार राष्ट्रपति ने किसी चुनी गई सरकार के मुख्यमंत्री से मिलने को वक्त ही नहीं दिया था। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने किसानों की मांग पूरी करने के लिए अपने राज्य में केंद्र के तीनों कानूनों को काला कानून बताते हुए लागू न करने का विधेयक विधानसभा में पास करवाया था। वह अपनी ओर से किसानों की मांग के अनुरूप कानून बनाने की कोशिश कर चुके हैं, पर वह जानते हैं कि केंद्र सरकार की सहमति के बिना यह कानून मंजूर नहीं होगा।

पंजाब में किसानों का प्रदर्शन लगातार जारी है, अत: प्रदर्शन का स्थान बदलने की राजनीति कतई अचरज का विषय नहीं है। पंजाब के बजाय अगर दिल्ली में किसान अपनी आवाज उठाएं, तो यह पंजाब के अनुकूल है, लेकिन समस्या हरियाणा सरकार को भी हो रही है। पंजाब के किसानों के दिल्ली कूच के प्रयास को रोकने के लिए केंद्र सरकार और भाजपा ने हरियाणा सरकार को पूरा जोर लगाने का जिम्मा सौंपा है। पंजाब और हरियाणा के मुख्यमंत्रियों के बीच ट्विटर पर जंग छिड़ी है। पंजाब के मुख्यमंत्री ने दिल्ली की ओर मार्च कर रहे किसानों को रोकने के लिए भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली हरियाणा सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि किसानों के खिलाफ बल प्रयोग करना पूरी तरह अलोकतांत्रिक व असांविधानिक है। इसका हरियाणा के मुख्यमंत्री ने ट्वीट करते हुए जवाब दिया कि मैंने पहले ही कहा है और मैं इसे फिर कह रहा हूं कि मैं राजनीति छोड़ दूंगा, अगर एमएसपी पर कोई परेशानी होगी, इसलिए कृपया निर्दोष किसानों को उकसाना बंद कीजिए।
दो पड़ोसी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के बीच इस तरह के अप्रिय संवाद से साफ है, राज्यों के बीच में स्वस्थ संवाद और समन्वय का अभाव होने लगा है। वैचारिक या राजनीतिक मतभेद के आधार पर संघर्ष चल रहा है, तो क्या इसका नुकसान राष्ट्रीय राजधानी को भुगतना पड़ेगा? ऐसे मतभेद के रहते क्या किसानों की समस्या का समाधान हो सकता है?  समय रहते उचित मंचों पर किसानों की बात सुनी जाये और उनको संतुष्ट किया जाये। किसानों से दुतरफा संवाद सार्वजनिक मंच पर हो जिससे सभी भ्रांतियां दूर हो सकें।

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