PM Modi On RSS At Red Fort | राजीव रंजन तिवारी | लाल किला के प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का गौरव गान विपक्षी दलों को रास नहीं आएगा। खैर, इससे क्या फर्क पड़ने वाला है? चाहें कोई कुछ भी सोचे। प्रधानमंत्री ने जिस तरह से संघ के 100 वर्षों के संघर्ष की विजय गाथा को बताने की कोशिश की है, उससे विपक्ष को मिर्ची लगना लाजिमी है। जो दल संघ की विचारधारा के खिलाफ राजनीतिक रोटियां सेंकते रहे हैं, उन्हें इसकी तारीफ और वह भी लाल किले से, कैसे बर्दाश्त होगी?
याद कीजिए, 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा ने अपने हित में किए गए संघ के संघर्षों को भुलाने की कोशिश की थी। लेकिन, अब उसी पार्टी के सबसे लोकप्रिय नेता और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अगर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के मिशन पर काम करने वाले इस संगठन का गौरव गान करना पड़ा है, तो इसके पीछे भी निश्चित रूप से एक मजबूत पृष्ठभूमि तैयार हो रही होगी। मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर संघ की सौ वर्ष की संघर्ष यात्रा को जिस अंदाज में पेश किया है, उसमें देश के राजनीतिक इतिहास, इसके वर्तमान और भविष्य की भी परछाई की झलक दिखी।
प्रधानमंत्री ने कहा कि देश के निर्माण में हर किसी का योगदान होता है। मैं बहुत गर्व के साथ एक बात का जिक्र करना चाहता हूं कि 100 साल पहले एक संगठन का जन्म हुआ, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। 100 साल की राष्ट्र की सेवा, एक बहुत ही गौरवपूर्ण स्वर्णिम पृष्ठ है। व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण के संकल्प को लेकर के 100 साल तक मां भारती का कल्याण का लक्ष्य लेकर स्वयं सेवकों ने मातृभूमि के कल्याण के लिए अपना जीवन समर्पित किया। सेवा, समर्पण, संगठन व अप्रतिम अनुशासन, यह जिसकी पहचान रही है, ऐसा संघ दुनिया का सबसे बड़ा एनजीओ है। सौ साल का उसका समर्पण का इतिहास है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर उस वक्त संघ को लेकर भाषण दिया है, जब कांग्रेस की अगुवाई वाला विपक्ष सरकार और चुनाव आयोग के खिलाफ ‘वोट चोरी’ का आरोप लगाकर मोर्चा खोले हुए है। हालांकि, विपक्ष के दावों पर न तो चुनाव आयोग ने कोई भरोसा किया है और न ही सुप्रीम कोर्ट ने ही चुनाव आयोग की प्रक्रियाओं पर किसी तरह से उंगली उठाया है। लेकिन, विपक्ष ने भाजपा की अगुवाई वाली सरकार को घेरने की कोशिशें नहीं छोड़ी हैं। विपक्ष सरकार से इस कदर दूरी बनाकर चल रहा है कि उसने लोकसभा और राज्यसभा के नेता विपक्ष को भी लाल किला पर आयोजित मुख्य समारोह में उपस्थित नहीं होने दिया।
विपक्ष के इस रवैए से संसद का मॉनसून सत्र पहले ही लगभग धुल ही चुका है। ऐसे में पीएम मोदी का खुलकर देश के सबसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय कार्यक्रम में आरएसएस की इस तरह से सराहना करना, स्पष्ट संकेत है कि अब उनकी सरकार और पार्टी राष्ट्रवाद के मोर्चे पर और भी खुलकर आगे बढ़ेगी। पिछले करीब सवा साल में आरएसएस को लेकर भाजपा के स्टैंड में यह जमीन और आसमान वाला बदलाव है। 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने एक साक्षात्कार में कह दिया था कि शुरू में हम अक्षम होंगे, थोड़ा कम होंगे, आरएसएस की जरूरत पड़ती थी। आज हम बढ़ गए हैं। सक्षम हैं…तो बीजेपी अपने आप को चलाती है…यही फर्क है। नड्डा के इस बयान से पार्टी को नुकसान हुआ।
संघ के बाबत दिए गए बयान पर भाजपा को अपनी गलती का एहसास हुआ। नतीजतन हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा नेताओं ने आरएसएस के स्वयं सेवकों को रिझाने-मनाने की कोशिशें की। इसमें महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का बहुत बड़ा रोल रहा। राजग को लोकसभा में सबसे ज्यादा नुकसान कहीं हुआ था तो उसमें महाराष्ट्र भी था। लेकिन फडणवीस की कोशिशों के बाद संघ ने भाजपा की जीत सुनिश्चित करने के लिए जमीनी स्तर पर फिर से पूरे जोश और उत्साह से काम करना शुरू किया। फिर एक के बाद एक परिणाम पार्टी के पक्ष में आते चले गए। लोकसभा चुनावों के बाद झारखंड छोड़कर महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली जैसे राज्यों में भाजपा की सरकारें बनीं। जम्मू-कश्मीर में भी पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया।
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