पितृ विसर्जन के नाम से भी जानते हैं सर्व पितृ अमावस्या को
Sarva Pitru Amavasya Deep Daan, (आज समाज), नई दिल्ली: सर्व पितृ अमावस्या 21 सितंबर रविवार को है। इस अमावस्या पर पितरों के लिए दीप जलाते हैं। इस दिन पितृ पक्ष का समापन होता है। पितर धरती लोक से वापस पितृ लोक जाते हैं। इस दिन लोग अपने पितरों को विदा करते हैं, इसलिए इसे पितृ विसर्जन कहते हैं। विसर्जन का अर्थ अंत, समापन, विदा करने, छोड़ने आदि से लिया जाता है।

इस दिन सभी तरह के पितरों के लिए तर्पण, श्राद्ध, पिंडदान, दान आदि करने का विधान है, इस वजह से इसे सर्व पितृ अमावस्या कहा गया है। सर्व पितृ अमावस्या के दिन पितरों के लिए दीप दान करने का विधान है। इस दिन हर व्यक्ति को अपने पितरों के लिए दीप जलाना चाहिए। आइए जानते हैं सर्व पितृ अमावस्या पर दीप दान की विधि।

जिनके निधन की तिथि मालूम नहीं उन पितरों का भी किया जाता है श्राद्ध

21 सितंबर रविवार को पूरे समय अमावस्या है। रात्रि 12:18 एएम तक अमावस्या रहेगी। आश्विन अमावस्या यानि सर्व पितृ अमावस्या के दिन उन पितरों का भी श्राद्ध करते हैं, जिनके निधन की तिथि मालूम नहीं है। सर्व पितृ अमावस्या पर ज्ञात-अज्ञात सभी पितरों के लिए तर्पण और श्राद्ध करते हैं।

आत्माओं की मुक्ति के लिए श्राद्ध जरूरी

ज्योतिषाचार्य पाण्डेय बताते हैं कि श्राद्ध चिंतामणि में इस बात का उल्लेख है कि किसी मृत व्यक्ति का 3 साल तक श्राद्ध नहीं होता है तो वह जीवात्मा प्रेत योनि में प्रवेश कर जाती है। धरती पर रहने वाली आत्माएं तमोगुण वाली होती हैं, इसलिए उनकी मुक्ति आवश्यक है। इस वजह से उनका श्राद्ध करना जरूरी हो जाता है।

दीपदान का महत्व

सर्वपितृ अमावस्या पर दोपहर में 3 या 6 ब्राह्मणों को भोजन, वस्त्र और दक्षिणा देकर विदा करने की परंपरा है। शाम के समय पितरों के लिए दीपदान किया जाता है।

मान्यता है कि दीपदान से पितरों के मार्ग में अंधकार नहीं रहता और वे संतुष्ट होकर अपने वंश की उन्नति का आशीर्वाद देकर पितृलोक लौटते हैं। यह पितृपक्ष का अंतिम दिन है जब पितरों को विदा किया जाता है और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जाती है। इस दिन श्राद्ध, दान-पुण्य और दीपदान का विशेष महत्व है।

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