• चौदह सहज पाठ सहित श्री गुरू ग्रंथ साहिब के अखंड पाठ का भोग डाला
  • धार्मिक दीवान में रागी जत्थों ने गुरू की महिमा का किया बखान

Jind News ,आज समाज, जींद। नौंवी पातशाही गुरु तेग बहादुर साहिब का शहीदी गुरूपर्व मंगलवार को ऐतिहासिक गुरूद्वारा गुरु तेग बहादुर साहिब में श्रद्धा से मनाया गया। गुरुद्वारा साहिब में सबसे पहले रखे गए चौदह सहज पाठ सहित श्री गुरू ग्रंथ साहिब के अखंड पाठ का भोग डाला गया। ततपश्चात गुरुद्वारा साहिब में धार्मिक दीवान सजाया गया। जिसमें गुरुद्वारा साहिब के हजूरी रागी भाई जसबीर सिंह रमदसिया के रागी जत्थे द्वारा निरोल गुरबाणी शब्द कीर्तन का गायन किया गया।

धर्म छोडऩा नही, धर्म की रक्षा करना मेरा कर्तव्य

गुरूघर प्रवक्ता बलविंदर सिंह के अनुसार 1675 में दिल्ली के औरंगजेब के दरबार में उनसे धर्म बदलने का दबाव बनाया गया लेकिन उन्होंने अपने सिद्धांतों से पीछे हटने के बजाय पूरी दृढ़ता के साथ कहा कि धर्म छोडऩा नही, धर्म की रक्षा करना मेरा कर्तव्य है। इसके बाद साजिश रची गई और उन्हें कैद किया गया। बाद में 24 नवंबर को उन्हें शहीद कर दिया गया।

गुरु तेग बहादुर की कहानी सिख धर्म के नौवें गुरू, एक महान योद्धा और आध्यात्मिक नेता की है। जो धार्मिक स्वतंत्रता के लिए शहीद हुए। वे औरंगजेब के शासनकाल में कश्मीरी पंडितों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ खड़े हुए। जब उन्हें जबरन इस्लाम कबूल करवाने का प्रयास किया गया तो उन्होंने सिर दिया पर सिर नहीं दिया का हवाला देते हुए धर्म और सम्मान की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया। उनके इस बलिदान के कारण उन्हें हिद की चादर भी कहा जाता है।

नहिं निंदिआ नहिं उसतति, जाकै लोभ मोह अभिमाना

भाई सतवीर सिंह ने अपने कथा प्रवचनों में गुरू तेग बहादुर साहिब की शहीदी का इतिहास सुनाया। नहिं निंदिआ नहिं उसतति, जाकै लोभ मोह अभिमाना। हरख सोग ते रहै निआरऊ नाहि मान अपमाना। जो निंदा या प्रशंसा से प्रभावित नहीं होता, जो लोभ, मोह और अभिमान से दूर रहता है, जो सुख-दुख और मान-अपमान से निर्लिप्त है, वही सच्चा ज्ञानी है  सच्चा धर्म समाज की सर्वोत्तम तरीके से सेवा करना सिखाता है।

गुरुघर के प्रवक्ता बलविंदर सिंह ने गुरु तेग बहादुर साहिब की शहीदी को नमन करते हुए कहा कि हमें श्री गुरु तेग बहादुर जी की महान शिक्षाओं को सदैव याद रखना चाहिए। हमें सुख, दुख, सम्मान और अपमान में स्थिर और संतुलित जीवन व्यतीत करना चाहिए। उनकी शिक्षाएं हमें उद्देश्यपूर्ण जीवन और समानता, सद्भाव नैतिक मूल्यों का पालन करने व सामाजिक जीवन में सुरूचिता बनाए बनाए रखने के मार्ग पर चलना सिखाती हैं।

दीवान की समाप्ति पर गुरु का अटूट लंगर भी संगतों में बरताया गया। वहीं जिले के गांव खरकबूरा व खटकड़ गांव में स्थित गुरूद्वारों में भी रखे गए श्री गुरू ग्रंथ साहिब के अखंड पाठ का भोग डाला गया तथा भाई सतवंत सिंह व भाई रिषिपाल सिंह के रागी जत्थे द्वारा शब्द कीर्तन गायन किया गया।

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