- मामले में आरोपियों के बरी होने के उपरांत गरमाई राजनीति
राजीव रंजन तिवारी, (आज समाज): मालेगांव ब्लास्ट मामले में सभी आरोपियों के बरी होने के बाद सियासी गलियारों में सवाल उठने लगा है कि आखिर कांग्रेस कथित ‘भगवा आतंकवाद’ वाले नैरेटिव को कैसे कायम रख पाएगी, क्योंकि अदालत के फैसले के बाद कांग्रेस का यह मुद्दा खत्म होता नजर आ रहा है। मामले में 17 साल बाद एनआईए की विशेष अदालत ने पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया है।
विपक्ष फैसले पर सवाल खड़े करने पर आमादा
भाजपा के नेता एक तरफ जहां अदालत के फैसले का स्वागत कर रहे हैं वहीं विपक्ष सवाल खड़े करने पर आमादा है। इस प्रकार आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी आरंभ है। अदालती फैसले के बाद यह मुद्दा एक बार फिर चर्चा में है। सवाल किया जा रहा है कि कांग्रेस व अन्य विपक्षी दल ‘भगवा आतंकवाद’ के कथित नैरेटिव को किस तरह से बचापाएंगे। क्योंकि अदालत ने जिन टिप्पणियों के साथ आरोपियों को बरी किया है, उससे स्पष्ट हो गया है कि उक्त घटना में कोई भी हिन्दूवादी नेता शामिल नहीं था।
सत्तारूढ़ भाजपा खेमे में खुशी की लहर
इसे लेकर सत्तारूढ़ भाजपा खेमे में खुशी की लहर है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि आतंकवाद न कभी भगवा था, न है और न ही कभी होगा। अब सच सामने आ गया है। भाजपा सांसद रवि किशन ने कहा कि हमें समझ नहीं आ रहा कि खुश हुआ जाए या दुखी। रवि किशन ने कहा कि जिस कांग्रेस ने ‘भगवा आतंकवाद’ शब्द गढ़ा, आज उन्हें इसका जवाब देना होगा। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ ने कहा कि इस फैसले से फर्क पड़ा है, वे इसे चुनौती देंगे। भाजपा कुछ भी कहे, लेकिन ये कोर्ट का फैसला है और इसे चुनौती दी जा सकती है।
फैसले ने कांग्रेस के बड़े मुद्दे को नरम किया
दरअसल, कांग्रेस पर भाजपा द्वारा यह आरोप लगाया जाता रहा है कि वह ‘भगवा आतंकवाद’ का नैरेटिव गढ़कर देश के बहुसंख्यक समाज को अपराधी बताने की साजिश रच रही है। काफी हद तक इसे प्रचारित भी किया गया। लेकिन आज के फैसले ने कांग्रेस के इस बड़े मुद्दे को नरम कर दिया है।
रमजान के महीने में हुआ था धमाका
29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित मालेगांव में रमजान के महीने में एक जबरदस्त धमाका हुआ था। इस धमाके में छह लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे। हालांकि, आरोपियों की गिरफ्तारी के 17 साल बाद अब एनआईए कोर्ट ने इस मामले में महाराष्ट्र के आतंकरोधी दस्ते (एटीएस) की जांच में कई खामियां मिलने की बात कही। साथ ही इन आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत भी न पेश किए जाने का मामला उठा।
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