दिल के मरीज हैं तो बचें एंटीबायोटिक से

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आमतौर पर ली जाने वाली एंटीबायोटिक के प्रति हृदय रोगियों को सावधान रहना चाहिए। इन दवाओं के सेवन से हृदय रोगियों की मौत की आशंका बढ़ सकती है। दरअसल अमेरिकी खाद्य एवं दवा प्रशासन (यूएसएफडीए) ने लोगों को आगाह किया है कि सामान्य संक्रमण में ली जाने वाली एंटीबायोटिक सेवन के कई वर्षों बाद भी जानलेवा हो सकती हैं।  विशेषज्ञों ने बताया कि त्वचा, कान, साइनस और फेफड़ों में संक्रमण के लिए दी जाने वाली एंटीबायोटिक क्लैरिथ्रोमाइसिन के प्रति भी सावधान किया है। इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए विशेषज्ञों ने हृदय रोग से पीड़ित मरीजों के आंकड़ों पर 10 वर्षों तक अध्ययन किया। शोध के दौरान उन्होंने देखा कि दो हफ्ते से अधिक समय तक क्लैरिथ्रोमाइसिन दवा का सेवन करने वालों में हार्ट अटैक या अचानक मौत की आशंका अधिक थी।

क्लैरिथ्रोमाइसिन और अजिथ्रोमाइसिन एक ही समूह की दो आमतौर पर दी जाने वाली दवाएं हैं। हालांकि एफडीए की मंजूरी से क्लैरिथ्रोमाइसिन का इस्तेमाल 25 साल से भी अधिक समय से किया जाता रहा है। एफडीए का कहना है कि क्लैरिथ्रोमाइसिन एंटीबायोटिक के मैक्रोलाइड्स समूह में आती है, जो संक्रमण से लड़ने के लिए बैक्टीरिया में प्रोटीन के उत्पादन को रोकती है। वास्‍तव में आम उपयोग में, प्रतिजैविक या एंटीबायोटिक एक पदार्थ या यौगिक है, जो जीवाणु को मार डालता है या उसके विकास को रोकता है। एंटीबायोटिक रोगाणुरोधी यौगिकों का व्यापक समूह होता है, जिसका उपयोग कवक और प्रोटोजोआ सहित सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखे जाने वाले जीवाणुओं के कारण हुए संक्रमण के इलाज के लिए होता है।

“एंटीबायोटिक” शब्द का प्रयोग 1942 में सेलमैन वाक्समैन द्वारा किसी एक सूक्ष्म जीव द्वारा उत्पन्न किये गये ठोस या तरल पदार्थ के लिए किया गया, जो उच्च तनुकरण में अन्य सूक्ष्मजीवों के विकास के विरोधी होते हैं। इस मूल परिभाषा में प्राकृतिक रूप से प्राप्त होने वाले ठोस या तरल पदार्थ नहीं हैं, जो जीवाणुओं को मारने में सक्षम होते हैं, पर सूक्ष्मजीवों (जैसे गैस्ट्रिक रसऔर हाइड्रोजन पैराक्साइड) द्वारा उत्पन्न नहीं किये जाते और इनमें सल्फोनामाइड जैसे सिंथेटिक जीवाणुरोधी यौगिक भी नहीं होते हैं। कई एंटीबायोटिक्स अपेक्षाकृत छोटे अणु होते हैं, जिनका भार 2000 Da से भी कम होता हैं।

औषधीय रसायन विज्ञान की प्रगति के साथ-साथ अब अधिकतर एंटीबायोटिक्ससेमी सिंथेटिकही हैं, जिन्हें प्रकृति में पाये जाने वाले मूल यौगिकों से रासायनिक रूप से संशोधित किया जाता है, जैसा कि बीटालैक्टम (जिसमें पेनसिलियम, सीफालॉसपोरिन औरकारबॉपेनम्स के कवक द्वारा उत्पादितपेनसिलिंस भी शामिल हैं) के मामले में होता है। कुछ एंटीबायोटिक दवाओं का उत्पादन अभी भी अमीनोग्लाइकोसाइडजैसे जीवित जीवों के जरिये होता है और उन्हें अलग-थलग रख्ना जाता है और अन्य पूरी तरह कृत्रिम तरीकों- जैसे सल्फोनामाइड्स,क्वीनोलोंसऔरऑक्साजोलाइडिनोंससे बनाये जाते हैं। उत्पत्ति पर आधारित इस वर्गीकरण- प्राकृतिक, सेमीसिंथेटिक और सिंथेटिक के अतिरिक्त सूक्ष्मजीवों पर उनके प्रभाव के अनुसार एंटीबायोटिक्स को मोटे तौर पर दो समूहों में विभाजित किया जा सकता हैं: एक तो वे, जो जीवाणुओं को मारते हैं, उन्हें जीवाणुनाशक एजेंट कहा जाता है और जो बैक्टीरिया के विकास को दुर्बल करते हैं, उन्हें बैक्टीरियोस्टेटिक एजेंट कहा जाता है।

यह भी जानें
आज एंटीबायोटिक्स सबसे ज़्यादा प्रिस्क्राइब की जानेवाली दवा बन गई है और चूंकि इससे तुरंत आराम मिलता है, इसलिए हम भी चाहते हैं कि डॉक्टर एंटीबायोटिक ज़रूर दे. कई डॉक्टर भी ज़रूरी न होने पर भी एंटीबायोटिक्स लिख देते हैं. कुल मिलाकर दुनियाभर में एंटीबायोटिक्स का उपयोग की बजाय दुरुपयोग हो रहा है.

सबसे पहले तो ये जान लें कि एंटीबायोटिक्स बेहद इफेक्टिव दवा ज़रूर है, लेकिन ये हर बीमारी का इलाज नहीं है. ये भी ध्यान रखें कि एंटीबायोटिक्स सिर्फ़ बैक्टीरियल इंफेक्शन से होनेवाली बीमारियों पर असरदार है. वायरल बीमारियों, जैसे- सर्दी-ज़ुकाम, फ्लू, ब्रॉन्काइटिस, गले में इंफेक्शन आदि में ये कोई लाभ नहीं देती.ये वायरल बीमारियां ज़्यादातर अपने आप ठीक हो जाती हैं. हमारे शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता इन वायरल बीमारियों से ख़ुद ही निपट लेती हैं. इसलिए अपनी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की कोशिश करें.

एंटीबायोटिक के साइड इफेक्ट्स

* उल्टी महसूस होना या चक्कर आना
* डायरिया या पेटदर्द
* एलर्जिक रिएक्शन. कई बार एलर्जी इतनी गंभीर हो सकती है कि आपको इमर्जेंसी केयर की ज़रूरत पड़ सकती है.
* महिलाओं में वेजाइनल यीस्ट इंफेक्शन की शिकायत भी हो सकती है.

क्यों हैं ख़तरनाक?
* एंटीबायोटिक्स के प्रति हमारा रवैया बेहद लापरवाही भरा है और हम इसे आम दवा समझकर धड़ल्ले से इसका सेवन करते हैं.
* ये सस्ती हैं और आसानी से उपलब्ध भी.
* केमिस्ट बिना किसी डॉक्टर की पर्ची के भी एंटीबायोटिक्स बेचते हैं.
* 70-75% डॉक्टर्स सामान्य सर्दी-ज़ुकाम के लिए भी एंटीबायोटिक्स लिख देते हैं.
* आश्‍चर्यजनक तौर पर 50% मरीज़ ख़ुद एंटीबायोटिक्स दवाएं लेने पर ज़ोर देते हैं.
इन लक्षणों को अनदेखा न करें
* आमतौर पर एंटीबायोटिक्स 24-48 घंटों में असर दिखाने लगती हैं. अगर एंटीबायोटिक्स लेने के बाद भी आपको आराम नहीं आ रहा है या

निम्न लक्षण दिखाई दे रहे हैं, तो फ़ौरन डॉक्टर से संपर्क करेंः
* एंटीबायोटिक्स लेने के बावजूद तीन दिन से ज़्यादा बुख़ार.
* बढ़ता-घटता बुख़ार, तेज़ कंपकंपी, लो ब्लड प्रेशर आदि बैक्टीरिया के इंफेक्शन के संकेत हैं.
* डायरिया या पेचिश.
* गर्दन, जांघ के ऊपरी हिस्से या बगल में सूजन भरी गांठ.
* तेज़ सिरदर्द.
* स्किन रैशेज़ या फुंसियां, जिन्हें छूने पर दर्द हो. डॉक्टर से ये बातें ज़रूर बताएं-
* डॉक्टर आपको एंटीबायोटिक्स प्रिस्क्राइब कर रहे हैं और अगर आप पहले से कोई और दवाएं ले रहे हैं.
* अगर आप कोई डायट प्लान फॉलो कर रहे हैं या कोई हर्बल सप्लीमेंट्स ले रहे हैं.
* अगर आपको किसी एंटीबायोटिक्स की एलर्जी है. तो इस बारे में अपने डॉक्टर को ज़रूर बताएं, ताकि डॉक्टर उस हिसाब से आपको एंटीबायोटिक्स लिखकर दे.

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