निरोगी काया के लिए जानें क्‍या करना होगा ……

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सच्चे अर्थों में जीवन उतने ही समय का माना जाता है, जितना स्वस्थतापूर्वक जिया जा सके। कुछ अपवादों को छोड़कर अस्वस्थता अपना निज का उपार्जन है। सृष्टि के सभी प्राणी प्राय जीवन भर निरोग रहते हैं। मनुष्य की उच्छृंखल आदत ही उसे बीमार बनाती है। जीभ का चटोरापन अतिशय मात्रा में अखाद्य खाने के लिए बाधित करता रहता है। जितना भार उठ नहीं सकता, उतना लादने पर किसी का भी कचूमर निकल सकता है। बिना पचा सड़ता है और सड़न के रक्त प्रवाह में मिल जाने से जहां भी अवसर मिलता है, रोग का लक्षण उभर पड़ता है।

अस्वच्छता, पूरी नींद न लेना, कड़े परिश्रम से जी चुराना, नशेबाजी जैसी आदत स्वास्थ्य को जर्जर बनाने का कारण बनते हैं। खुली हवा और रोशनी से बचना, घुटन भरे वातावरण में रहना भी बीमारी का बड़ा कारण है। भय या आक्रोश जैसे उतार-चढ़ाव भी मनोविकार बढ़ाते और व्यक्ति को सनकी, कमजोर व बीमार बनाते हैं।

शरीर को निरोगी बनाकर रखना कठिन नहीं है। आहार, श्रम एवं विश्राम का संतुलन बिठाकर हर व्यक्ति आरोग्य एवं दीर्घजीवन पा सकता है। दूसरे नियम भी ऐसे नहीं, जिनकी जानकारी आमजन को न हो सके। उन्हें थोड़े से प्रयास से जाना जा सकता है। आलस्य रहित, श्रमयुक्त व्यवस्थित दिनचर्या का निर्धारण करना सरल है। स्वाद को नहीं-स्वास्थ्य को लक्ष्य करके उपयुक्त भोजन की व्यवस्था हर स्थिति में बनानी संभव है। सुपाच्य आहार समुचित मात्रा में लेना जरा भी कठिन नहीं है।

शरीर को उचित विश्राम देकर हर बार तरोताजा बना लेने के लिए कहीं से कुछ लेने नहीं जाना पड़ता। यह सब असंयम एवं असंतुलन वृत्ति के कारण नहीं सध पाता और हम सुर दुर्लभ देह पाकर भी नर्क जैसी यातनाग्रस्त स्थिति में पड़े रहते हैं। शारीरिक आरोग्य के मुख्य आधार संयम एवं नियमितता ही है, इनकी उपेक्षा करके मात्र औषधियों के सहारे आरोग्य लाभ का प्रयास मृग मरीचिका के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।

आवश्यकता पड़ने पर औषधियों का सहारा लाठी की भांति लिया तो जा सकता है, किन्तु चलना तो पैरों से ही पड़ता है। शारीरिक आरोग्य एवं सशक्तता जिस जीवनीशक्ति के ऊपर आधारित है उसे बनाये रखना इन्हीं माध्यमों से संभव है। शरीर को प्रभु मन्दिर की तरह महत्त्व दें। उसे स्वच्छ, स्वस्थ एवं सक्षम बनाना अपना पुण्य कर्तव्य मानें। उपवास द्वारा स्वाद एवं अति आहार की दुष्प्रवृत्तियों पर अधिकार पाने का प्रयास करें। श्रमशीलता को दिनचर्या में स्थान मिले। थोड़ी-सी तत्परता बरतकर यह सब साधा जाना संभव है।

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