संतान की लंबी उम्र और उज्ज्वल भविष्य के लिए निर्जला व्रत रखती हैं माताएं
Ahoi Ashtami, (आज समाज), नई दिल्ली: अहोई अष्टमी पर माताएं अपनी संतान की दीर्घायु और उज्ज्वल भविष्य के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। यह व्रत हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत संतान के स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए रक्षा कवच माना जाता है। पूरा दिन निर्जला व्रत रखने के बाद माताएं रात में तारों को जल अर्पित करने पर ही व्रत खोलती है। चंद्रमा को गुड़ की खीर का भोग लगाकर व्रत तोड़ा जाता है और बच्चों को भी प्रसाद के रूप में खीर खिलाई जाती है।

तारों को अर्घ्य देने का महत्व

अहोई अष्टमी पर तारों को जल अर्पित करने की परंपरा बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि जिस प्रकार आकाश में तारे सदैव चमकते रहते हैं, उसी प्रकार हमारे घर के सभी बच्चों का जीवन भी उज्ज्वल और सुरक्षित रहे। तारों को देवी अहोई का वंशज माना जाता है, इसलिए उनके प्रति श्रद्धा और पूजा का विशेष महत्व है।

देवी अहोई को बच्चों के सौभाग्य की रक्षक माना जाता है

अहोई अष्टमी व्रत बच्चों के स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इसे करने से बच्चों को सभी प्रकार की बीमारियों से सुरक्षा मिलती है और उनका भविष्य उज्ज्वल होता है। देवी अहोई को बच्चों के सौभाग्य की रक्षक माना जाता है। इस व्रत को करने से घर में सुख-समृद्धि आती है और बच्चे अपनी शिक्षा और करियर में उन्नति करते हैं।

माता अहोई को विशेष प्रिय है मालपुआ

अहोई अष्टमी पर मालपुए का भोग चढ़ाना शुभ माना जाता है, क्योंकि यह माता अहोई को विशेष प्रिय है। माता को मालपुए का भोग अर्पित करने से अहोई माता प्रसन्न होती हैं और संतान की रक्षा व कल्याण करती हैं।

मान्यता है कि अहोई अष्टमी पर अहोई माता को मालपुए का भोग लगाने से घर में सुख-समृद्धि आती है। यह भोग लगाने के अलावा, व्रत को पूरा करने में मदद करता है और परिवार के लिए शुभ माना जाता है। माता को मालपुए का भोग लगाने के बाद इसे प्रसाद के रूप में बच्चों को खिलाना भी शुभ माना जाता है।