प्रतिबिंब के बराबर सौभाग्य की होती है प्राप्ति
Karva Chauth Special, (आज समाज), नई दिल्ली: करवा चौथ पर विवाहित महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। मान्यता है कि करवा चौथ का व्रत रखने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। सरगी से शुरू होकर, यह व्रत छलनी से चंद्र देव और पति के दर्शन के बाद समाप्त होता है। इस दिन छलनी से पति का चेहरा देखना सौभाग्य प्राप्ति से जुड़ा है। आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं।
क्यों छलनी से देखा जाता है पति का चेहरा
सनातन धर्म में करवा चौथ व्रत का खास महत्व है। इस पर्व में चंद्र दर्शन के बाद व्रत खोला जाता है। इस समय पति का चेहरा भी छलनी से देखा जाता है। जानकारों की मानें तो पति की लंबी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत की जाती है। इस शुभ अवसर पर करवा माता की पूजा की जाती है।
इस व्रत के पुण्य-प्रताप से व्रती को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। छलनी से पति का चेहरा देखने पर प्रतिबिंब के बराबर सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इसके लिए छलनी से चंद्र देव के दर्शन किया जाता है। इसके बाद पति का चेहरा देखा जाता है।
चंद्रमा न दिखने पर क्या करें
इसके साथ ही धूप, पान सुपारी, दीप ओर इलायची जैसी सामग्री लेनी है और फिर पंडित को बुलाकर कथा भी सुन सकते हैं। उन्होंने बताया कि कई बार बादल होने की वजह से चंद्रमा नहीं दिखता है, तो ऐसे में महिलाएं एक उपाय कर सकती है, जिसमें उन्हें एक पीतल या कांस्य की थाली में चंद्रमा की सिंदूर या फिर आटा से आकृति बनानी है और फिर छन्नी में उस चंद्रमा की आकृति को देखकर पूजा कर सकती हैं।
करवा चौथ पर चंद्रमा की पूजा क्यों है जरूरी
करवा चौथ या संकष्टी चतुर्थी के जितने भी व्रत हैं, उनमें रात के समय में चंद्रमा की पूजा करना और अर्घ्य देना महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके बिना व्रत पूर्ण ही नहीं होगा। उसके बिना आप पारण भी नहीं कर सकते हैं। आप सोचें कि केवल गणेश जी, माता गौरी और शिव जी की पूजा कर लें, लेकिन चंद्रमा की पूजा न करें और अर्घ्य न दें तो व्रत हो गया। ऐसा नहीं है। व्रत तब पूरा होता है, जब आप पारण कर लेते हैं। करवा चौथ व्रत में यह अनिवार्य नियम है कि चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही पति के हाथों जल पीकर व्रत को तोड़ना है।
पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, गणेश जी को जब हाथी का सिर लगा तो चंद्र देव उनके रूप को देखकर हंसने लगे। यह देखकर गणेश जी अपमानित महसूस करने लगे और क्रोधित हो गए। चंद्रमा को अपनी सुंदरता पर अभिमान था। तब गणेश जी ने चंद्र देव को श्राप दिया कि वे अपनी चमक और सुंदरता खो देंगे। उस श्राप के प्रभाव से चंद्र देव कांतिहीन होने लगे।
उनको अपनी भूल का एहसास हुआ तो उन्होंने गणेश जी से क्षमा मांगी और श्राप से मुक्त करने की प्रार्थना की। इस पर गणेश जी ने कहा कि श्राप वापस नहीं हो सकता है, लेकिन आपकी कांति कृष्ण पक्ष में 15 दिन कम होगी और शुक्ल पक्ष में 15 दिन बढ़ेगी। पूर्णिमा पर आप पूर्ण रूप से संसार को प्रकाशमय करेंगे।
इसके साथ ही गणेश जी ने चंद्र देव को आशीर्वाद दिया कि जो भी व्यक्ति कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को व्रत रखेगा और गणपति बप्पा की पूजा करेगा, उसे रात में चंद्रमा की पूजा करके अर्घ्य देना होगा, अन्यथा यह व्रत पूरा नहीं होगा। तब से संकष्टी चतुर्थी यानि हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के व्रत में चंद्र पूजा और अर्घ्य देना अनिवार्य हो गया। उसके बाद ही पारण किया जाता है। करवा चौथ व्रत भी कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को रखते हैं।
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