पूरे नियम और श्रद्धा के साथ करना चाहिए कलश का विसर्जन
Kalash Visarjan, (आज समाज), नई दिल्ली: नवरात्र चल रहे है। नवरात्र के 9 दिनों में मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरुपों की पूजा की जाती है। इस दौरान मां दुर्गा की भक्ति से घर-परिवार में सकारात्मकता, सुख और समृद्धि का वास होता है। नौ दिनों तक देवी की विशेष पूजा-विधि संपन्न करने के बाद दशमी तिथि को कलश और दुर्गा प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है। मान्यता है कि जिस प्रकार नवरात्र की शुरूआत में विधिपूर्वक कलश स्थापना की जाती है, उसी तरह समापन पर उसका विसर्जन भी पूरे नियम और श्रद्धा के साथ होना चाहिए।
इस साल शारदीय नवरात्र 22 सितंबर से शुरू हुए थे। महाअष्टमी 30 सितंबर को और महानवमी 1 अक्टूबर को मनाई जाएगी। इसके बाद 2 अक्टूबर 2025 को दशहरा और दुर्गा माता की प्रतिमा और कलश का विसर्जन किया जाएगा। ऐसे में आइए जानते हैं कि नवरात्रि के आखिरी दिन विसर्जन के दौरान कलश के पानी और नारियल का क्या करना चाहिए।
कब होगा कलश और दुर्गा विसर्जन
वैदिक पंचांग के अनुसार, आश्विन मास की दशमी तिथि 1 अक्टूबर की शाम 07 बजकर 01 मिनट से शुरू हो जाएगी और 2 अक्टूबर की शाम 07 बजकर 10 मिनट तक रहेगी। ऐसे में उदया तिथि के आधार पर दशहरा और दुर्गा विसर्जन 2 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा। इस दिन माता के भक्त उन्हें विदा कर कलश का विसर्जन करते हैं, जिसे अत्यंत मंगलकारी माना गया है।
कलश विसर्जन की विधि
सबसे पहले कलश पर रखा नारियल उतारकर प्रसाद स्वरूप बांट दें। फिर कलश के अंदर का जल आम के पत्तों से पूरे घर में छिड़कें। यह क्रिया घर से नकारात्मकता हटाकर सौभाग्य लाने वाली मानी जाती है। चाहें तो यह जल पीपल के वृक्ष की जड़ों में भी अर्पित कर सकते हैं।
इसके बाद मिट्टी का बना कलश किसी नदी या स्वच्छ बहते हुए जल में प्रवाहित करें। अगर कलश में लौंग, सुपारी या कमलगट्टा जैसी सामग्री रखी हो तो उसे भी जल में प्रवाहित कर दें। ऐसा करने से पूजा विधि पूर्ण मानी जाती है।
कलश विसर्जन मंत्र
- कलश उठाते समय: आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्। पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर॥
- विसर्जन के समय: गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठ, स्वस्थानं परमेश्वरी। पूजाराधनकाले च पुनरागमनाय च॥
अखंड ज्योति का महत्व
नवरात्रि में जलाई गई अखंड ज्योति को समापन के समय बुझाना अशुभ माना जाता है। पूजा समाप्त होने पर उसकी बत्ती को अलग निकालकर सुरक्षित रख लें और बचा हुआ तेल अगली पूजा या हवन में प्रयोग करें। यह तेल पवित्र और अत्यंत शुभ फल देने वाला माना जाता है।
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