कैसे हुई शनिदेव की उत्पति
Shanidev Pooja, (आज समाज), नई दिल्ली: ऐसा माना जाता है कि इस दिन शनिदेव की पूजा करने से व्यक्ति के बुरे कर्मों का प्रभाव कम होता है, शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या के अशुभ प्रभाव से राहत मिलती है, और जीवन में संतुलन व समृद्धि आती है। शनि महाराज को निर्णायक ग्रह कहा जाता है। शनि देव की प्रकृति काफी उग्र मानी जाती हैं जो कि अपना तत्काल प्रभाव दिखाते हैं।

शनिदेव का नाम आते ही लोगों में भय पैदा हो जाता है। कहते हैं जिन लोगों के ऊपर शनिदेव की टेढ़ी नजर होती है, उनके ऊपर तमाम तरह की विपत्तियां आती हैं, बीमारियां आने लगती हैं और मानसिक पीड़ा का दौर आरंभ हो जाता है। शनिदेव को न्याय का देवता माना गया है।

शनिवार के दिन शनि पूजा का महत्व

शनिदेव के गुरु महादेव हैं और उनसे ही शनिदेव को यह वरदान प्राप्त है कि वे हर किसी व्यक्ति को उनके कर्मों के अनुसार फल दें। कोई भी मनुष्य शनि के प्रकोप से कर्मों के अनुसार नहीं बच पाया है। अगर आपकी कुंडली में शनि कमजोर स्थिति में है, आप महादशा में हों या फिर जीवन में और बहुत तरह की परेशानियां हों, तो इन सभी मुश्किलों से छुटकारा पाने के लिए शनिवार के दिन शनि देव की पूजा की जाती है।

कैसे हुआ शनिदेव का जन्म

शनिदेव की उत्पत्ति को लेकर बहुत सी पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार, सूर्य का विवाह प्रजापति दक्ष की कन्या संज्ञा से हुआ था। संज्ञा से यम, यमुना और मनु पैदा हुए।

सूर्य देव का तेज उनकी पत्नी संज्ञा ज्यादा दिन तक सह नहीं पाई। ऐसे में संज्ञा अपनी छाया को सूर्य देव की सेवा में छोड़कर चली गई। कुछ दिनों बाद छाया से शनिदेव का जन्म हुआ।

शनिदेव की दृष्टि क्यों मानी जाती है अशुभ?

पौराणिक कथा के अनुसार, सूर्यपुत्र शनि का विवाह चित्रा रथ नामक गंधर्व से हुआ था जो स्वभाव से बहुत ही उग्र थीं। एक बार जब शनिदेव भगवान श्रीकृष्ण की आराधना कर रहे थे, तब उनकी पत्नी मिलन की कामना करने से उनके पास पहुंचीं, लेकिन शनिदेव भगवान की भक्ति में इतने लीन थे कि उन्हें इस बात का पता ही नहीं चला।

जब शनिदेव का ध्यान भंग हुआ तब उनकी पत्नी का रितु काल समाप्त हो चुका था, जिससे क्रोधित होकर उनकी पत्नी ने उन्हें श्राप दिया कि पत्नी होने पर भी आपने मुझे कभी प्रेम की दृष्टि से नहीं देखा। अब आप जिसे भी देखेंगे उसका बुरा होगा। इसी कारण शनि की दृष्टि में दोष माना जाता है।

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