Kaal Bhairav Jayanti Special: जानें कालभैरव ने क्यों काटा था ब्रह्मा जी का पांचवां सिर

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Kaal Bhairav Jayanti Special: जानें कालभैरव ने क्यों काटा था ब्रह्मा जी का पांचवां सिर
Kaal Bhairav Jayanti Special: जानें कालभैरव ने क्यों काटा था ब्रह्मा जी का पांचवां सिर

कैसे बने काशी नगरी के कोतवाल
Kaal Bhairav Jayanti Special, (आज समाज), नई दिल्ली: भक्ति, अनुशासन और निर्भयता के प्रतीक भगवान कालभैरव की जयंती आज यानी बुधवार को श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई जा रही है। मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान शिव के क्रोध से प्रकट हुए कालभैरव देव ने सृष्टि में संतुलन, न्याय और धर्म की पुनर्स्थापना की थी। यह तिथि केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह हमें यह भी स्मरण कराती है कि जीवन में भय, अहंकार और अन्याय पर संयम, सत्य और श्रद्धा की विजय ही सच्ची साधना है। इस दिन कालभैरव देव की आराधना से साहस, आत्मबल और रक्षण की प्राप्ति होती है।

कालभैरव अवतरण की कथा

प्राचीन ग्रंथों में वर्णन मिलता है कि एक बार देवताओं के बीच यह प्रश्न उठा कि त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश में सबसे श्रेष्ठ कौन हैं। इस प्रश्न पर मतभेद हुआ तो ब्रह्मा जी ने स्वयं को सर्वोच्च बताकर अभिमानवश भगवान शिव के प्रति अपमानजनक बातें कहीं। यह सुनकर भगवान शिव क्रोधित हो उठे और उसी क्रोधाग्नि से उनके तीसरे नेत्र से एक प्रचंड ज्योति प्रकट हुई और उसी ज्योति से भगवान कालभैरव का अवतार हुआ।

भगवान कालभैरव का जन्म ब्रह्मा जी के अहंकार को समाप्त करने और सृष्टि में संतुलन स्थापित करने के लिए हुआ था। कहा जाता है कि जब ब्रह्मा जी ने अपने क्रोध में सीमा लांघ दी, तब कालभैरव ने अपने त्रिशूल से उनके पांच में से एक सिर को अलग कर दिया। यह घटना केवल दंड नहीं थी, बल्कि यह अहंकार पर विनम्रता की विजय का प्रतीक बनी। तभी से मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान कालभैरव के प्रकट होने का दिवस कालभैरव जयंती बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाने लगा।

काशी के रक्षक भगवान कालभैरव

शिवपुराण में उल्लेख मिलता है कि जब भगवान शिव ने काशी को मोक्षभूमि घोषित किया, तब उसकी रक्षा का भार उन्होंने कालभैरव देव को सौंपा। तभी से वे काशी के कोतवाल और रक्षक देवता माने जाते हैं। ऐसा विश्वास है कि जब तक कोई भक्त कालभैरव देव के दर्शन नहीं कर लेता, तब तक उसकी काशी यात्रा अधूरी मानी जाती है। परंपरा के अनुसार श्रद्धालु पहले कालभैरव मंदिर में पूजा करते हैं, और फिर काशी विश्वनाथ तथा अन्नपूर्णा माता के दर्शन करते हैं।

यह परंपरा केवल आस्था नहीं बल्कि एक गहरा संदेश भी देती है कि मोक्ष की नगरी में प्रवेश से पहले व्यक्ति को अपने भीतर के भय, अहंकार और नकारात्मकता का त्याग करना आवश्यक है। भगवान कालभैरव यही सिखाते हैं कि सच्चा भक्त वही है जो संयम, श्रद्धा और विनम्रता के साथ धर्म के मार्ग पर चलता है।

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