खीरे को माना जाता है गर्भ का प्रतीक
Janmashtami Special (आज समाज) नई दिल्ली: जन्माष्टमी पर खीरे से जुड़ी एक विशेष परंपरा का पालन किया जाता है। रात के समय भगवान श्री कृष्ण के जन्म पर खीरा काटा जाता है, जिसका एक विशेष महत्व है। खीरे की यह परंपरा केवल एक धार्मिक रीति नहीं है, बल्कि यह हमें जीवन में पवित्रता, त्याग और भक्ति की ओर प्रेरित करती है। हमें भी अपने भीतर की नकारात्मकता को त्यागकर प्रकाश और सद्गुणों को अपनाना चाहिए। इस लेख के जरिए हम आपको बताएंगे खीरे से जुड़ी इस परंपरा के बारे में।

खीरें के बीच में रखा जाता है लड्डू गोपाल की मूर्ति को

लड्डू गोपाल।

जन्माष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप की पूजा की जाती है। लड्डू गोपाल की छोटी मूर्ति को ऐसे रखा जाता है मानो वह माता के गर्भ में हों। शास्त्रों के अनुसार खीरे को गर्भ का प्रतीक माना गया है, और उसमें भगवान को स्थापित करना उनके अवतार की स्मृति को दर्शाता है। यह परंपरा भक्ति की भावना को जीवंत करती है। साथ ही भक्त और भगवान के बीच एक गहरा आध्यात्मिक जुड़ाव भी स्थापित करती है।

रात 12 बजे हुआ था भगवान श्री कृष्ण का जन्म, इसलिए रात में काटा जाता है खीरा

भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अर्धरात्रि में हुआ था, इसलिए ठीक 12 बजे खीरे को काटा जाता है। इसे उनके जन्म का प्रतीक माना जाता है। जिस प्रकार माता देवकी के गर्भ से श्रीकृष्ण का जन्म हुआ और वे कारागार से मुक्त होकर नंद के घर पहुंचे थे। उसी प्रकार खीरे को चीरकर उसके बीज अलग किए जाते हैं। खीरे को काटना बंधन से मुक्ति, अंधकार से प्रकाश और अधर्म पर धर्म की विजय का संकेत देता है।

खीरे का शीतलता से संबंध, संतान सुख की होती है प्राप्ति

शास्त्रों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण को शीतलता प्रिय थी। खीरा स्वभाव से एक शीतल फल है। मान्यता है कि खीरे का प्रसाद ग्रहण करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है। खीरे का सेवन आधी रात के बाद ही इसका प्रसाद रूप में किया जाता है।

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