इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा-अर्चना करने का विधान
Govardhan Puja History, (आज समाज), नई दिल्ली: वैदिक पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर गोवर्धन पूजा का त्योहार मनाया जाता है। इस पर्व को मथुरा समेत देशभर में बेहद उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस शुभ अवसर पर गोवर्धन पर्वत की पूजा-अर्चना करने का विधान है और 56 भोग अर्पित किए जाते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन पूजा करने से साधक को सभी दुखों से छुटकारा मिलता है और भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होती है। ऐसे में आइए इस आर्टिकल में पढ़ते हैं गोवर्धन पर्वत की कथा।
गोवर्धन पूजा कथा
गोवर्धन पर्वत का वर्णन श्रीमद्भागवत पुराण में देखने को मिलता है। पौराणिक कथा के मुताबिक, एक बार का समय था कि इंद्रदेव को अभिमान हो गया था, तो ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्रदेव का घमंड तोड़ने के लिए एक लीला रची। एक दिन सभी ब्रजवासी पूजा की तैयारी कर रहे थे और भोग के लिए कई तरह के पकवान बना रहे थे। ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण ने माता यशोदा से पूछा कि ये सभी ब्रजवासी किस चीज की तैयारी कर रहे हैं।
तो उन्होंने बताया कि इंद्र देव पूजा की तैयारी कर रहे हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने माता से पूछा कि इंद्रदेव की पूजा किसलिए कर रहे हैं। उन्होंने आगे बताया कि इंद्रदेव इंद्रदेव की वर्षा से खूब पैदावार होती है। प्रभु ने कहा कि वर्षा करना इंद्र का कर्तव्य है। यदि पूजा करनी है, तो गोवर्धन पर्वत की करनी चाहिए, क्योंकि वहां पर हमारी चरती हैं।
इसके बाद सभी ब्रजवासी गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। इससे इंद्रदेव को क्रोध आया और बारिश शुरू कर दी, जिसकी वजह से इंद्रदेव प्रकोप से बचने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और पर्वत के नीचे शरण ली। इसके बाद इंद्र देव को अपनी गलती का अहसास हुआ। तभी से गोवर्धन पर्वत की पूजा की शुरूआत हुई।
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