नोट करें पूजा विधि, मंत्र और आरती
Dhanteras Puja Vidhi, (आज समाज), नई दिल्ली: धनतेरस का त्योहार हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। इस साल यह त्योहार आज मनाया जा रहा है। आज के दिन शुभ मुहूर्त में भगवान धन्वंतरि की पूजा करने का विशेष महत्व होता है। ऐसा करने से आरोग्य की प्राप्ति होती है। साथ ही, धनतेरस पर कुबेर देवता और माता लक्ष्मी की पूजा-आरती भी अवश्य करनी चाहिए। ऐसे में आइए विस्तार से जानें कि धनतेरस पर पूजा का शुभ मुहूर्त क्या रहेगा, पूजन विधि, आरती और मंत्र।

धनतेरस

इस साल 18 अक्टूबर के दिन दोपहर में 12 बजकर 20 मिनट से त्रयोदशी तिथि शुरू होगी और इसका समापन अगले दिन 19 अक्टूबर को दोपहर के 1 बजकर 52 मिनट पर होगा। शास्त्रों के अनुसार, प्रदोष काल में कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी तिथि जिस दिन लगती है उसी दिन धनतेरस मनाने की परंपरा है। ऐसे में आप 18 अक्टूबर को धनतेरस की पूजा विधि-विधान से कर सकते हैं। हालांकि, अगर आप खरीदारी 18 तारीख को न कर पाएं, तो 19 अक्टूबर को दिन के 1 बजकर 52 मिनट तक खरीदारी की जा सकती है।

धनतेरस की पूजा करने का शुभ मुहूर्त

शनिवार, 18 अक्टूबर को त्रयोदशी तिथि में प्रदोष काल के समय धनतेरस की पूजा करना सबसे शुभ रहेगा। पूजा करने का शुभ मुहूर्त 18 अक्टूबर को शाम के वक्त 5 बजकर 4 मिनट से लेकर 6 बजकर 35 मिनट तक रहेगा। इस अवधि के दौरान भगवान धन्वंतरि, माता लक्ष्मी और कुबेर देवता की पूजा करना सबसे उत्तम रहेगा। इसके अलावा, आप लाभ चौघाड़िया में यानी शाम को 6 बजकर 41 मिनट से लेकर 7 बजकर 38 मिनट के बीच में भी पूजा की जा सकती है।

धनतेरस पूजन विधि

कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को शाम के समय एक दीप को तेल से भरकर प्रज्वलित करें। इसके बाद, फूल-माला, धूप, कपूर आदि से विधि-विधान पूजा करें। फिर, अपने घर के द्वार पर अन्न के ढेर पर एक दीपक जलाएं। इस बात का ध्यान रखें कि रातभर दीपक जलते रहना चाहिए। इसे बीच में बिल्कुल भी नहीं बुझने देना चाहिए।

  • धनतेरस पर उदय व्यापिनी तिथि में गोशाला या गायों के आने-जाने के मार्ग में आठ हाथ लंबी और चार हाथ चौड़ी वेदी बनाकर उसपर सर्वतोभद्र लिखें और उसके ऊपर छत्र के आकार का वृक्ष बनाकर उसमें विविध प्रकार के फल, पुष्प और पक्षी बनाएं।
  • वृक्ष के नीचे मण्डल के मध्य भाग में गोवर्द्धन भगवान की, उनके वाम भाग में रुक्मिणी, मित्रविन्दा, शैब्या और जाम्बवतीकी, दक्षिण भाग में सत्यभामा, लक्ष्मणा, सुदेवा और नाग्नजिति की, उनके अग्र भाग में नन्द बाबा, पृष्ठ भाग में बलभद्र और यशोदा तथा कृष्ण के सामने सुरभी, सुनन्दा, सुभद्रा और कामधेनु गौ-इनकी सुवर्णमयी सोलह मूर्तियां स्थापित करें।
  • उन सबका नाम मंत्र (यथा गोवर्द्धनाय नम: आदि) से पूजन करके गवामाधार गोविन्द रुक्मिणीवल्लभ प्रभो। गोपगोपीसमोपेत गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तु ते। से भगवान को और रुद्राणां चैव या माता वसूनां दुहिता च या। आदित्यानां च भगिनी सा न: शान्तिं प्रयच्छतु। से गौ को अर्घ्य दे एवं सुरभी वैष्णवी माता नित्यं विष्णुपदे स्थिता। प्रतिगृह्णातु मे ग्रासं सुरभी मे प्रसीदतु। से गौ को ग्रास दें।
  • इस प्रकार अलग-अलग प्रकार के फल, पुष्प, पकवान आदिसे पूजन करके बांस के पात्रों में सप्त धान्य और सात मिठाई भरकर सौभाग्यवती स्त्रियों को दे।
  • इस प्रकार तीन दिन पूजा करनी चाहिए और व्रत रखने वाली इसी विधि से व्रत कर सकते हैं। इसके बाद, चौथे दिन प्रात: स्नानादि करके गायत्री के मंत्र से तिलों की 108 आहुति देकर व्रत का विसर्जन करें तो इससे सुख और संपत्ति का लाभ होता है।

धन्वंतरि भगवान की पूजन विधि

  • धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा के लिए उनकी तस्वीर को लकड़ी की चौकी पर वस्त्र बिछाकर स्थापित करें।
  • इसके बाद, आचमनी से जल लेकर तीन बार आचमन करें।
  • भगवान धन्वंतरि की प्रतिमा पर जल का छिड़काव करके रोली और अक्षत से टीका करें।
  • इसके बाद, वस्त्र और कलावा अर्पित करें। पूजा के आरंभ में पहले भगवान गणेश के मंत्रों का जाप करें और उनका ध्यान करें।
  • प्रथम पूजनीय गणपतिजी की पूजा करने के बाद हाथ में फूल और अक्षत लेकर धन्वंतरि भगवान का ध्यान करें और उन्हें प्रणाम करते हुए फूल व अक्ष अर्पित कर दें। साथ ही, ह्यओम श्री धनवंतरै नम:ह्ण का जाप करें।

धन्वंतरि भगवान का मंत्र

  • ओम नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धनवंतराये:
    अमृतकलश हस्ताय सर्वभय विनाशाय सर्वरोगनिवारणाय,
    त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप
    श्री धन्वंतरि स्वरूप श्री श्री श्री अष्टचक्र नारायणाय नम:।

धन्वंतरि भगवान की आरती

ओम जय धनवंतरि देवा, जय धनवंतरि देवा,
जरा-रोग से पीड़ित, जन-जन सुख देवा।
तुम समुद्र से निकले, अमृत कलश लिए,
देवासुर के संकट आकर दूर किए।
आयुर्वेद बनाया, जग में फैलाया,
सदा स्वस्थ रहने का, साधन बतलाया।
भुजा चार अति सुंदर, शंख सुधा धारी,
आयुर्वेद वनस्पति से शोभा भारी।
तुम को जो नित ध्यावे, रोग नहीं आवे,
असाध्य रोग भी उसका, निश्चय मिट जावे।
हाथ जोड़कर प्रभुजी, दास खड़ा तेरा,
वैद्य-समाज तुम्हारे चरणों का चेरा।
धनवंतरिजी की आरती जो कोई जन गावे,
रोग-शोक न आवे, सुख-समृद्धि पावे।
ओम जय धनवंतरि देवा…