पितरों को जल देने से उनकी आत्मा को तृप्ति और मुक्ति मिलती है
Pitru Paksha Upaay, (आज समाज), नई दिल्ली: हर साल भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से पितृ पक्ष प्रारंभ होता है जो कि आश्विन महीने की अमावस्या तक चलते हैं। यह समय पितरों के लिए समर्पित माना गया है। इस दौरान पितरों को प्रसन्न करने के लिए कई विधि-विधान किए जाते हैं। पितृ पक्ष के दौरान पितरों को जल अर्पित करना भी जरूरी माना गया है।

माना गया है कि पितरों को जल देने से उनकी आत्मा को तृप्ति और मुक्ति मिलती है। साथ ही व्यक्ति को पितरों का आशीर्वाद भी मिलता है। ऐसे में उन्हें सही ढंग से जल अर्पित करना बेहद जरूरी है वरना पितृ नाराज हो सकते हैं और व्यक्ति को पितृ दोष का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में पितरों को नियमानुसार जल अर्पित करना बेहद जरूरी है।

नियम और समय

ऐसा माना जाता है कि अंगूठे से पितरों को जल अर्पित करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार हथेली के जिस भाग पर अंगूठा होता है, उसे पितृ तीर्थ कहा जाता है। इस दौरान पितरों को जल तर्पण करने के लिए 11:30 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक का समय सबसे उत्तम माना जाता है।

तर्पण की विधि

  • स्नान और दक्षिण दिशा: सबसे पहले पवित्र नदी में स्नान करें या घर पर ही स्नान करें। इसके बाद दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं।
  • सामग्री तैयार करें: एक तांबे के लोटे में सादा जल, काला तिल, जौ, गंगाजल, दूध और सफेद फूल मिलाकर तर्पण के लिए तैयार करें।
  • हाथों में कुशा लें: अपने दाहिने हाथ में कुशा (एक प्रकार की पवित्र घास) लें।
  • जल अर्पित करें: लोटे को सिर के ऊपर उठाकर अपने अंगूठे और तर्जनी उंगली के बीच के भाग से धीरे-धीरे पितरों को जल अर्पित करें। इसे पितृ तीर्थ कहते हैं।
  • मंत्र जाप करें: जल अर्पित करते समय पितरों के मंत्र का उच्चारण करें, जैसे “ओम पितृ देवतायै नम:।
  • तीन बार जल दें: पिता, पितामह और प्रपितामह जैसे पितरों के नाम लेकर तीन-तीन अंजलि जल अर्पित करें। कुल मिलाकर पितरों को कम से कम 11 बार जल अर्पित करना चाहिए।

इन बातों का भी रखें ध्यान

  • समय: कुतप वेला (मध्य दोपहर) में पितरों को तर्पण देना सबसे उत्तम माना जाता है।
  • आहार: इस अवधि में प्याज, लहसुन, मांस और मदिरा जैसे तामसिक भोजन से बचें।
  • आशीर्वाद: पितरों को जल अर्पित करने के बाद घर की सुख-शांति के लिए उनका आशीर्वाद लें।
  • दान: सामर्थ्य अनुसार अनाज और धन जरूरतमंदों को दान करें, इससे पितर प्रसन्न होते हैं।

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